स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान

सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के तहत 2025 तक इस मद में सार्वजनिक खर्च को बढ़ा कर जीडीपी का ढाई फीसदी करने का संकल्प लिया है, जिसके लिए आवंटन बढ़ाना होगा.

By संपादकीय | November 30, 2020 6:10 AM

केंद्र सरकार अगले वित्त वर्ष के बजट में स्वास्थ्य के मद में आवंटन बढ़ाने पर विचार कर रही है. पिछले बजट में इस क्षेत्र के लिए 67,111 करोड़ रुपये निर्धारित थे, जिसमें 50 प्रतिशत की वृद्धि संभावित है. उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले कोरोना महामारी की रोकथाम के उपायों की समीक्षा करते हुए संसद की स्थायी समिति ने रेखांकित किया था कि देश की बड़ी जनसंख्या को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं पर सार्वजनिक खर्च बहुत ही कम है, जिसे बढ़ाया जाना चाहिए. उस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि स्वास्थ्य केंद्रों और सरकारी अस्पतालों में संसाधनों की कमी के कारण संक्रमितों का ठीक से उपचार नहीं हो पा रहा है.

अन्य विकासशील देशों की तुलना में भारत स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च करता है, जो सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का लगभग सवा फीसदी है. यह केंद्र व राज्य सरकारों का कुल खर्च है, जो लगभग 2.6 लाख करोड़ रुपये है. चीन में यह खर्च पांच प्रतिशत और ब्राजील में नौ प्रतिशत है. सार्वजनिक चिकित्सा की समुचित उपलब्धता नहीं होने के कारण लोगों को निजी क्लिनिकों व अस्पतालों में जाना पड़ता है, जहां उन्हें बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है. ग्रामीण क्षेत्रों एवं दूरस्थ स्थानों में तो यह समस्या और भी गंभीर है. इस स्थिति में बजट में आवंटन बढ़ाना एक सराहनीय कदम है.

सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के तहत पहले से ही 2025 तक इस मद में सार्वजनिक खर्च को बढ़ा कर जीडीपी का ढाई फीसदी करने का संकल्प लिया है. इस लक्ष्य को पाने के लिए आवंटन में निरंतर बढ़ोतरी की जरूरत होगी. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की पहलों, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, बीमा कार्यक्रमों, टीकाकरण, स्वच्छता अभियान आदि से भविष्य में व्यापक सुधार की आशा है. सरकार मेडिकल और नर्सिंग के शिक्षण-प्रशिक्षण के विस्तार के लिए प्रयासरत है. इन कार्यों के लिए धन की आवश्यकता है.

कोरोना महामारी का सबसे बड़ा सबक यही है कि हमें स्वास्थ्य सेवाओं को जनसुलभ बनाने को प्राथमिकता देनी होगी तथा इसमें केंद्र के साथ राज्य सरकारों को भी बढ़-चढ़ कर योगदान करना होगा. संसदीय समिति के इस उल्लेख का भी संज्ञान लिया जाना चाहिए कि यदि निजी अस्पताल कोरोना के जांच व उपचार के लिए ने मनमाने ढंग से पैसा नहीं लेते, तो महामारी से होनेवाली मौतों की संख्या कम हो सकती थी. अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज के साथ भी यही बात लागू होती है.

अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा उपचार पर खर्च कर देने की वजह से बड़ी संख्या में परिवार गरीबी का शिकार हो जाते हैं. स्वास्थ्य केंद्रों और चिकित्सकों के अभाव के कारण मामूली बीमारियां भी समय से उपचार न होने से गंभीर हो जाती हैं. कोरोना संक्रमण से जूझने का सारा बोझ सरकारी स्वास्थ्य तंत्र पर आने के अनुभव से यही सीख मिलती है कि यदि इसे सक्षम एवं साधन-संपन्न बनाया जाए, तो भविष्य में किसी महामारी से लड़ना आसान हो जायेगा.

Posted by: pritish sahay

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