साइबर सुरक्षा जरूरी

साइबर हमलों में न केवल अनेक देशों की सरकारी एजेंसियों के हाथ होते हैं, बल्कि हैकरों के गिरोह भी ऐसे अपराधों को अंजाम देते हैं.

By संपादकीय | April 9, 2021 11:05 AM

जीवन के हर क्षेत्र में तेजी से डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल बढ़ रहा है, इसलिए उसकी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम भी जरूरी होता जा रहा है. देशों के रक्षा, वित्त और शासन से संबंधित साइबर प्रणाली पर हमला करना या उसकी तैयारी करना अब युद्ध नीति का हिस्सा हो चुका है. भारत ने भी ऐसे हमलों से बचाव के लिए कोशिशें शुरू कर दी हैं. रक्षा प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने बताया है कि ऐसे हमलों से बचाव के लिए सशस्त्र सेनाओं के साइबर संसाधनों को समायोजित करने और रक्षा क्षमता बढ़ाने के साथ हमलों से तुरंत उबरने की व्यवस्था की जा रही है.

भारत की चिंता अकारण नहीं है. चीन की बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए इस दिशा में ठोस प्रयासों की जरूरत बढ़ गयी है क्योंकि उसके पास ऐसे साइबर हमलों की क्षमता बहुत विकसित है. बीते साल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत सबसे अधिक साइबर हमलों का निशाना रहा है. साल 2020 में एशिया में हुए कुल ऐसे मामलों में सात प्रतिशत हमले भारत के विरुद्ध हुए थे. इनमें करीब 60 फीसदी हमले वित्त व बीमा क्षेत्र में हुए थे और इनके बाद मैन्युफैक्चरिंग और पेशेवर सेवाओं को निशाना बनाया गया था.

साल 2019 में भारतीय सेना के साइबर तंत्र पर 23 हमले हुए थे. पिछले साल भारत समेत विभिन्न देशों में कोरोना महामारी से निजात पाने के लिए टीका विकसित करनेवाली कंपनियों को ऐसे हमलों का सामना करना पड़ा था. ऐसी कारगुजारियों में न केवल अनेक देशों की सरकारी एजेंसियों के हाथ होते हैं, बल्कि हैकरों के गिरोह भी ऐसे अपराधों को अंजाम देते हैं तथा चुरायी गयी सूचनाओं को शत्रु देशों को बेचते हैं.

भारत में छोटे साइबर अपराधों, फर्जीवाड़े से लेकर व्यापक स्तर पर खतरनाक हैकिंग के मामले कई सालों से सामने आ रहे हैं. हालांकि सरकार और विभिन्न संस्थाओं ने लगातार यह भरोसा दिलाया है कि सुरक्षा के जरूरी उपाय किये जा रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि हमारी नीतिगत, ढांचागत और तकनीकी तैयारी संतोषजनक नहीं है. हॉर्वर्ड केनेडी स्कूल के एक हालिया शोध में साइबर सुरक्षा में 30 देशों की सूची में भारत को 21वें स्थान पर रखा गया था.

इस रिपोर्ट ने रेखांकित किया था कि भारत के पास राष्ट्रीय साइबर रणनीति नहीं है और न ही उसका इरादा आक्रामक क्षमता विकसित करने का है. रक्षा क्षेत्र के लिए 2019 के अंत में केंद्र सरकार ने डिफेंस साइबर एजेंसी बनाने का निर्णय लिया था. जनरल रावत के बयान से इंगित होता है कि यह एजेंसी अपने उद्देश्य की ओर अग्रसर हो रही है तथा आक्रामकता के लिए भी प्रयासरत है.

जानकारों का मानना है कि तकनीकी उपकरणों और संबंधित साजो-सामान के लिए चीन पर भारत की अत्यधिक निर्भरता भी हमारी सुरक्षा के लिए चिंता की बात है. भारत वैश्विक स्तर पर तकनीक के क्षेत्र में अग्रणी देशों में है. हमें इसका फायदा साइबर सुरक्षा बेहतर करने में उठाना चाहिए.

Posted By : Sameer Oraon

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