लक्ष्मी सक्सेना
जल एवं स्वच्छता अधिकारी,
यूनिसेफ झारखंड
ranchi@unicef.org
हाल में हमें झारखंड की महिलाओं के एक समूह से मिलने का मौका मिला, जो माहवारी से जुड़ी मिथ्या धारणाओं को दूर करने और जागरूकता बढ़ाने के लिए लोगों के बीच कार्य कर रही हैं. वे लोगों को बता रही हैं कि माहवारी एक सामान्य और प्राकृतिक प्रकिया है, जिसके बारे में शर्म और झिझक महसूस करने की नहीं, बल्कि खुलकर बोलने की आवश्यकता है.
हमें इस बात की खुशी है कि यूनिसेफ के साथ काम करने वाली कई संस्थाएं माहवारी स्वच्छता को लेकर लोगों के बीच खुलकर बातचीत को प्रोत्साहन दे रही हैं, जिससे समाज में व्याप्त वर्जनाओं और मिथकों को दूर करने में सहायता मिल रही है. सुरक्षित माहवारी सुनिश्चित करने में झारखंड का प्रयास सराहनीय रहा है. राज्य ने इसके लिए स्वच्छ पेयजल से लेकर स्वच्छता सुविधाओं को मुहैया कराने, अपशिष्ट प्रबंधन, शिक्षा एवं स्वच्छता को बढ़ावा देने जैसे उपायों के माध्यम से शानदार पहल की है.
विश्व बैंक के अनुसार, प्रत्येक माह दुनियाभर में 180 करोड़ महिलाएं एवं लड़कियां माहवारी की प्रक्रिया से गुजरती हैं. हालांकि यह महिलाओं के जीवन, स्वास्थ्य तथा तंदुरूस्ती से जुड़ा एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसके बावजूद इसके बारे में बहुत कम बात की जाती है. आज भी महिलाएं, किशोरियां तथा ट्रांसजेंडर माहवारी उत्पादों, साफ पानी, व्यक्तिगत स्वच्छता सुविधाओं, उचित निपटान प्रणाली और यौन स्वास्थ्य शिक्षा से वंचित हैं.
सुविधाओं की यह कमी एक गंभीर चुनौती है. ये चुनौतियां सुदूर ग्रामीण समुदायों में पहले से मौजूद सामाजिक-आर्थिक विषमता के कारण और भी गंभीर हो जाती हैं. इसलिए महिलाओं एवं लड़कियों को स्वच्छ माहवारी उत्पादों को चुनने का समान अवसर मिलना आवश्यक है. ऐसा नहीं होने पर वे अस्वास्थ्यकर विकल्पों का चयन करती हैं, जो उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है.
पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक कारणों के साथ-साथ उपलब्धता, उपयोग पैटर्न, लागत, विश्वसनीयता, सांस्कृतिक विचार आदि जैसे कई कारक हैं, जो उनकी पसंद को प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए, माहवारी स्वच्छता सामग्री ‘टैंपोन’ का उपयोग सांस्कृतिक रूप से अनुचित माना जाता है.
यूनिसेफ के हमारे कार्यक्रमों, जो हम सरकार तथा हमारे साझेदारों के साथ आयोजित करते हैं, में स्कूलों में स्वच्छता एवं साफ-सफाई, हाथ धुलाई के अभ्यास और व्यवहार परिवर्तन पर खासा जोर दिया जाता है. ‘चुप्पी तोड़ो-स्वस्थ रहो’ जैसे जागरूकता अभियान माहवारी स्वच्छता प्रबंधन को लेकर लोगों को जागरूक करने की दिशा में एक बेहतर पहल साबित हुए हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे- 5 के अनुसार, झारखंड में 15 से 24 वर्ष की लगभग 74.9 प्रतिशत महिलाएं माहवारी के दौरान सुरक्षित और स्वच्छ उपायों को अपनाती हैं.
पिछले सर्वे के दौरान यह आंकड़ा मात्र 49.6 प्रतिशत था. यह दर्शाता है कि माहवारी स्वच्छता प्रबंधन को लेकर जागरूकता और शिक्षा के मामले में उल्लेखनीय प्रगति हुई है. माहवारी स्वच्छता के सुरक्षित अभ्यासों को अपनाना सभी महिलाओं एवं किशोरियों के लिए एक अच्छे स्वास्थ्य की गारंटी है.
जरूरत यह है कि लड़के और पुरुष भी माहवारी स्वास्थ्य की इस चर्चा में खुद को शामिल करें और मासिक धर्म से जुड़े गलत धारणाओं और वर्जनाओं को समाप्त करने और माहवारी स्वच्छता प्रबंधन के महत्व को लेकर लोगों को जागरूक करने में अपना योगदान दें. यह भी महत्वपूर्ण है कि माहवारी उत्पाद कचरों के निस्तारण को लेकर जागरूकता का सीधा और सकारात्मक प्रभाव पर्यावरण के खतरे को कम करने पर पड़ता है.
इसलिए माहवारी उत्पादों के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा करना और पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों का उपयोग करना महत्वपूर्ण है. माहवारी स्वच्छता प्रबंधन न केवल सुरक्षित उपायों एवं व्यवहारों को अपनाने के बारे में है, बल्कि सुरक्षित तरीके से पर्यावरण के अनुकूल निस्तारण विधियों को अपनाने को लेकर भी है. वाटरएड इंडिया एवं मेंस्ट्रुअल हाइजिन एलांयस ऑफ इंडिया (2018) के मुताबिक, भारत में अनुमानित 12.1 करोड़ महिलाएं माहवारी चक्र के दौरान सैनिटरी पैड (आठ पैड प्रति चक्र) का उपयोग करती हैं.
इसका तात्पर्य है कि सालाना 12 अरब पैड कचरे के रूप में पैदा हो रहा है, जो सुरक्षित निस्तारण तंत्र के अभाव में नदियों, नालों, समुद्रों आदि में चला जाता है. रियूजेबल माहवारी उत्पाद का उपयोग करना महत्वपूर्ण है. इन उत्पादों में केवल जैविक कपास का उपयोग किया जाता है और ये प्लास्टिक मुक्त होते हैं.
वर्तमान में इस बात की आवश्यकता है कि लड़कियों एवं महिलाओं की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, उनके अनुरूप नीति में परिवर्तन किया जाए, ताकि वे अपने लिए कम लागत वाला, प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल माहवारी उत्पाद के विकल्प का चुनाव कर सकें. इस माहवारी स्वच्छता प्रबंधन दिवस (28 मई) पर हम समुदाय के एक जिम्मेवार नागरिक के रूप में शपथ लें कि हम माहवारी उत्पादों की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के साथ-साथ माहवारी से जुड़ी वर्जनाओं एवं मिथकों को समाप्त करने में अपना योगदान देंगे.