प्लास्टिक की वैकल्पिक व्यवस्था जरूरी

देशभर के नगर निगमों के बजट का बड़ा हिस्सा सीवर व नालों की सफाई में जाता है और परिणाम-शून्य ही रहते हैं. इसका बड़ा कारण पूरे मल-जल प्रणाली में पॉलीथीन का अंबार होना है.

By पंकज चतुर्वेदी | August 26, 2021 8:13 AM

सरकार ने 15 अगस्त, 2022 तक पूरे देश में प्लास्टिक वस्तुओं के निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर नियमों के तहत पाबंदी की घोषणा की है. एक बार इस्तेमाल में आनेवाले प्लास्टिक के सामानों पर दो चरणों में पाबंदी लगेगी- पहला चरण जनवरी, 2022 में शुरू होगा, जिसमें प्लास्टिक के झंडे, गुब्बारे और कैंडी स्टिक बंद होंगी और फिर एक जुलाई, 2022 से प्लेट, कप, ग्लास, कटलरी जैसे कांटे, चम्मच, चाकू, ट्रे, रैपिंग, पैकिंग फिल्म्स, निमंत्रण कार्ड, सिगरेट के पैकेट आदि चीजों के उत्पादन व इस्तेमाल पर पाबंदी लग जायेगी.

कई राज्य सरकारें प्लास्टिक या पॉलीथीन के इस्तेमाल में कमी लाने के लिए कार्य कर रही हैं. तीन साल पहले जब प्रधानमंत्री मोदी ने ‘एक बार इस्तेमाल वाली’ पॉलीथीन का इस्तेमाल नहीं करने की अपील की, तो इसमें तेजी आयी थी, लेकिन कोविड में वह अभियान असफल हो गया.

गाजियाबाद में कई सालों से दुकानों से पॉलीथीन जब्त करने का अभियान तो चल रहा है, लेकिन यह अभी जनभागीदारी अभियान नहीं बन पाया. गाजियाबाद नगर निगम ने तो भंडारे आदि में डिस्पोजेबल के इस्तेमाल को रोकने के लिए बाकायदा बर्तन बैंक बनाया, लेकिन लोग ही आगे नहीं आये. तीन साल पहले मध्य प्रदेश सरकार ने भी ‘पन्नी मुक्त’ प्रदेश का अभियान चलाया था, लेकिन वह सफल नहीं हो सका. देश के कई शहरों में पॉलीथीन पर पाबंदी है, परंतु इसके उत्पादन पर तो रोक है नहीं, सो किसी ना किसी जरिये प्लास्टिक का कचरा हमारे शहर-मुहल्लों में अंबार बनता जा रहा है.

हर एक इंसान स्वीकार कर लेता है कि पॉलीथीन प्रकृति-समाज और जानवरों के लिए जानलेवा है, लेकिन उसे छोड़ नहीं पा रहा है. देशभर के नगर निगमों के बजट का बड़ा हिस्सा सीवर व नालों की सफाई में जाता है और परिणाम-शून्य ही रहते हैं. इसका बड़ा कारण पूरे मल-जल प्रणाली में पॉलीथीन का अंबार होना है. अब तो धरती, भूजल और यहां तक कि समुद्र के नमक में भी प्लास्टिक के अवगुण घुलने लगे हैं.

घटिया पॉलिथीन का प्रयोग सांस और त्वचा संबंधी रोगों तथा कैंसर का खतरा बढ़ाता है. पॉलीथीन की थैलियां धरती की उपजाऊ क्षमता को नष्ट कर रही हैं. पॉलीथीन खाने से गायों व अन्य जानवरों के मरने की घटनाएं आम हो गयी हैं. फिर भी, बाजार से सब्जी लाना हो या पैक दूध या फिर किराना या कपड़े, पॉलीथीन के प्रति लोभ न तो दुकानदार छोड़ पा रहे हैं न ही खरीदार. मंदिरों, ऐतिहासिक धरोहरों, पार्क, अभ्यारण्य, रैलियों, जुलूसों, शोभा यात्राओं आदि में धड़ल्ले से इसका उपयोग हो रहा है.

पॉलीथीन दो दशक में 20 लाख से ज्यादा लोगों के जीविकोपार्जन का जरिया बन चुका है जो कि इसके उत्पादन, व्यवसाय, पुरानी पन्नी एकत्र करने व उसे कबाड़ी को बेचने जैसे काम में लगे हैं. विकल्प के रूप में जो सिंथेटिक थैले लाये गये हैं, वे एक तो महंगे हैं, दूसरे कमजोर और तीसरे वे भी प्राकृतिक या घुलनशील सामग्री से नहीं बने हैं. कुछ स्थानों पर कागज के बैग और लिफाफे मुफ्त में बांटे भी गये, लेकिन मांग की तुलना में उनकी आपूर्ति कम थी.

यदि पॉलीथीन का विकल्प तलाशना है तो पुराने कपड़े के थैले बनवाना एकमात्र विकल्प है. इससे पॉलीथीन निर्माण की छोटी-छोटी इकाई लगाये लोगों को कपड़े के थैले बनाने, व्यापारियों, सामान लाने- ले जाने वालों को एक विकल्प मिलेगा. यह सच है कि कपड़े के थैले की मांग उतनी नहीं होगी. बड़ी दिक्कत है दूध, जूस, बनी हुई करी वाली सब्जी आदि के व्यापार की. इसके लिए एल्युमिनियम या अन्य मिश्रित धातु के खाद्य-पदार्थ के लिए माकूल कंटेनर बनाये जा सकते है. पॉलीथीन में पैक दूध या गरम करी उसके जहर को भी आपके पेट तक पहुंचाती है.

प्लास्टिक के नुकसान को कम करने के लिए बायो प्लास्टिक को बढ़ावा देना चाहिए. बायोप्लास्टिक चीनी, चुकंदर, भुट्टा जैसे जैविक रूप से अपघटित होने वाले पदार्थों के इस्तेमाल से बनायी जाती है. शुरुआत में कुछ साल पन्नी की जगह कपड़े के थैले व अन्य विकल्प के लिए कुछ सब्सिडी दी जाये, तो लोग आदत बदलने को तैयार हो जायेंगे. सनद रहे कि 40 माइक्रॉन से कम पतली पन्नी सबसे ज्यादा खतरनाक है. इसके कारखानों को ही बंद करवाना जरूरी है.

बंेगलुरु में लावारिस फेंकी गयी पन्नियों को अन्य कचरे के साथ ट्रीटमेंट करके खाद बनायी जा रही है. हिमाचल प्रदेश में ऐसी पन्नियों को डामर के साथ गला कर सड़क बनाने का काम चल रहा है. जर्मनी में प्लास्टिक के कचरे से बिजली का उत्पादन भी किया जा रहा है. विकल्प तो और भी हैं, बस जरूरत है तो एक नियोजित दूरगामी योजना और उसके क्रियान्वयन के लिए जबरदस्त इच्छाशक्ति की.

केरल में सरकारी कार्यालयों में इंक पेन के अलावा अन्य कलम पर पाबंदी लगा दी गयी है. सरकार ने देखा कि हर महीने छह लाख से ज्यादा प्लास्टिक के कलम या रिफिल कचरे में शामिल हो रहे हैं. आदेश लागू करने से पहले हर कार्यालय में पर्याप्त इंक पेन व स्याही पहुंचाई गयी. अब वहां आम लोग भी बॉल पेन की जगह इंक पेन प्रयोग में ला रहे हैं. इसी तरह जब तक पॉलीथिन के विकल्प से बाजार को संतुष्ट नहीं किया जाता, इस बीमारी से मुक्ति नहीं मिलेगी.

Next Article

Exit mobile version