राष्ट्रपति चुनाव की तैयारी

रशीद िकदवई राजनीतिक टिप्पणीकार rasheedkidwai@gmail.com राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सत्ताधारी पक्ष व विपक्ष में रोचक शह और मात का खेल चल रहा है. विपक्ष अपने पत्ते नहीं खोल रहा है और चाहता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आम राय बनाने की पहल करें. मोदी के व्यक्तित्व, राज्यों में जीत और उनके राजनीतिक दबदबे को देखते […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 26, 2017 6:16 AM
रशीद िकदवई
राजनीतिक टिप्पणीकार
rasheedkidwai@gmail.com
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सत्ताधारी पक्ष व विपक्ष में रोचक शह और मात का खेल चल रहा है. विपक्ष अपने पत्ते नहीं खोल रहा है और चाहता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आम राय बनाने की पहल करें. मोदी के व्यक्तित्व, राज्यों में जीत और उनके राजनीतिक दबदबे को देखते हुए ऐसा मुश्किल है कि प्रधानमंत्री आम राय बनाने का प्रयास करेंगे. न ही वो प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन में दोबारा पांच वर्ष रहने का मौका देना चाहेंगे. यह पहला मौका है, जब भाजपा अपनी विचारधारा से जुड़े व्यक्ति को सर्वोच्च पद पर देखना चाहेगी.
अगर हम संख्या की बात करें, तो भाजपा गठबंधन को राष्ट्रपति चुनाव जीतने में अधिक परेशानी नहीं होगी, क्योंकि तेलंगाना व आंध्र के क्षेत्रीय दल लगभग 18,000 मतों की भरपाई कर सकते हैं. सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, लालू यादव, अरविंद केजरीवाल व अन्य विपक्षी नेताओं के लिए राष्ट्रपति चुनाव एक कड़ी चुनौती है, क्योंकि यह एक ऐसा अवसर है, जब विपक्ष एकजुट होकर मोदी सरकार को परेशान कर सकता है. विपक्ष अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है, लेकिन मोदी सरकार को आम राय के लिए बाध्य करने को लेकर उत्साहित है.
विपक्ष के आकलन में मोदी सरकार को प्रणब मुखर्जी को ना कहना और फिर उनके स्तर का राष्ट्रपति लाना आसान नहीं होगा. यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का व्यक्ति उम्मीदवार होता है, तो विपक्ष को अपनी एकता बनाने में मदद मिलेगी. गौरतलब है कि राष्ट्रपति चुनाव ही एक ऐसा अवसर है, जब एडीएमके, बीजेडी, डीएमके, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज और दूसरे परस्पर विरोधी दल एक साथ हो सकते हैं.
विपक्ष की ओर से गोपाल कृष्ण गांधी एक उम्मीदवार हो सकते हैं, लेकिन उनका नाम केवल सत्ताधारी पक्ष के उम्मीदवार के बाद घोषित करने की संभावना है. राष्ट्रपति चुनाव काे लेकर भारतीय राजनीति में उथल-पुथल मचने का इतिहास रहा है. जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद जब नये राष्ट्रपति का चुनाव हुआ, तब इंदिरा गांधी ने अपनी ही पार्टी के दिग्गज नेताओं से लोहा लिया और नीलम संजीव रेड्डी को वीवी गिरी से हरवा दिया. इस अध्याय से भारतीय राजनीति में इंदिरा की पकड़ बहुत मजबूत हो गयी.
यूपी चुनाव ने यह दर्शाया है कि मोदी अपने दम-खम पर किसी भी राज्य का चुनाव जीत सकते हैं. गुजरात और कर्नाटक में चुनाव होनेवाले हैं और मोदी ओडिशा में भी भाजपा की जड़ें मजबूत कर रहे हैं. विपक्ष चिंतित है कि यदि नरेंद्र मोदी की राजनीतिक काट नहीं हुई, तो 2018 के राज्यों के चुनाव (राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़) में भाजपा फिर जीतेगी. इससे भाजपा का राज्यसभा में बहुमत हो जायेगा और संविधान संशोधन का काम आसान हो जायेगा. तब भारतीय राजनीति में व्यापक बदलाव आ सकते हैं.
एनडीए के पास राष्ट्रपति चुनाव के लिए 5,31,442 मत हैं, जबकि जीतनेवाला आंकड़ा 5,49,442 है. यानी लगभग 18,000 मतों की कमी है. यह कमी पूरा करने के लिए मोदी सरकार को मैनेजमेंट की आवश्यकता होगी.
प्रधानमंत्री मोदी को नये राष्ट्रपति का चुनाव बहुत सोच-समझ कर करना होगा, क्योंकि जनता के साथ-साथ देश के बुद्धिजीवी इस चयन पर उत्सुकता से देख रहे हैं. 2007 में सोनिया गांधी ने प्रतिभा पाटिल का चयन उत्साह से किया था. यदि हम यह मानें कि अगला राष्ट्रपति भाजपा का सदस्य ही होगा, तो सुषमा स्वराज उपयुक्त उम्मीदवार हो सकती हैं.
उनकी राजनीतिक कार्यकुशलता, संवाद और सफल राजनीतिक जीवन विपक्ष के कुछ लोगों को उनकी ओर आकर्षित कर सकता है. सवाल इतना है कि क्या प्रधानमंत्री सुषमा स्वराज को सर्वोच्च पद पर देखना चाहेंगे या नहीं. कुछ लोगों का मानना है कि सुषमा जी पहले उपराष्ट्रपति (जिसका चुनाव इसी वर्ष अगस्त में है) और फिर राष्ट्रपति पद की दावेदार बनें.
यदि नरेंद्र मोदी जी एक उदार हृदय से भाजपा में उम्मीदवार ढूंढेंगे, तो उन्हें लालकृष्ण अाडवाणी की दावेदारी पर ध्यान देना चाहिए. यह एक साफ बात है कि आज भाजपा की कामयाबी के पीछे अटल बिहारी वाजपेई व अाडवाणी का विशेष योगदान है. 1980 से आडवाणी ने ही भाजपा को संभाला और संवारा. यदि नरेंद्र मोदी जी आडवाणी को सम्मान देते हैं, तो पूरे देश में उनकी प्रशंसा होगी.
मोदीजी के पास प्रतियोगिता या आम सहमति के दो मार्ग हैं. दोनों के फायदे हैं. विपक्ष तो केवल सरकार की गलतियों का इंतजार कर रहा है. यदि विपक्ष को अपनी भूमिका बढ़ानी है, तो उसे जनता से सीधा संवाद स्थापित करना होगा. सामाजिक व राजनीतिक स्तर पर पकड़ बनानी होगी. साल 2019 की तैयारी व रणनीति अभी करनी होगी. राष्ट्रपति चुनाव विपक्ष की ताकत की परीक्षा हो सकती है.

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