प्यास की कीमत

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार सवेरे से ही खिड़की से छन कर सूरज की जो किरणें आती हैं, वे तेज गरमी का इतना अहसास कराती हैं कि घबराहट होने लगती है. बालकनी की खिड़कियों पर गौरैय्या, कबूतर, गुरसल, बुलबुल आदि आकर बैठती हैं. उन्हें देख कर यह लग जाता है कि जैसे वे प्यास से हांफ […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 17, 2017 6:04 AM
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
सवेरे से ही खिड़की से छन कर सूरज की जो किरणें आती हैं, वे तेज गरमी का इतना अहसास कराती हैं कि घबराहट होने लगती है. बालकनी की खिड़कियों पर गौरैय्या, कबूतर, गुरसल, बुलबुल आदि आकर बैठती हैं. उन्हें देख कर यह लग जाता है कि जैसे वे प्यास से हांफ रही हैं.एक दिन जब मेरी लड़की ने यह देखा, तो उसने मिट्टी के बरतन में कूलर के पास पानी रख दिया. बहुत सी चिड़िया आ-आकर उसमें अपनी चोंच डुबो कर पानी पीने लगीं. कई तो अपने पंख भिगो कर नहाने की कोशिश भी करने लगीं.
पहले लगभग हर घर के चबूतरे पर, मुंडेर पर, सहन आदि जगहों पर चिड़ियों के लिए पानी रखा जाता था. और इस बात का भी ध्यान रखा जाता था कि पानी धातु के बरतन में न होकर मिट्टी के बरतन में ही हो.
क्योंकि, मिट्टी का बरतन गरम नहीं होता. उसमें पानी ठंडा रह कर प्यासे पक्षियों की प्यास बुझा सकता है. पहले घर के बाहर हौदें बनवायी जाती थीं, जिससे कि प्यासे जानवर कुत्ते, बिल्ली, गाय, भैंस आदि पानी पी सकें. मनुष्य के पानी पीने के लिए तो प्याऊ, घड़ों आदि में भर कर जगह-जगह पानी रखा जाता था.
किसी को पानी पिलाने के लिए मना करना सबसे बुरी बात मानी जाती थी. लेकिन, वक्त की रफ्तार कुछ इतनी तेज चली कि अच्छी बातें भी या तो लोग भूल गये या याद तो रहा, मगर उन्हें पूरा करने का समय नहीं रहा. जब से पानी पैसा कमाने और व्यापार का हिस्सा बना तब से तो इस बात को याद करने की फुरसत ही किसी को नहीं रही कि प्यास के नाम पर व्यापार कोई अच्छी बात नहीं है.
एक तरफ खरीदने जाओ, पानी के लिए पैसे खर्च कर सको, तो कोई कमी नहीं. प्यास की भी कीमत लगने लगी है अब. वैसे अकसर देश भर में पीने और सिंचाई के पानी के लिए हाहाकार मचा रहता है. नदियों का जल जो सबके लिए सहज उपलब्ध हो सकता था, बहता पानी जिसके बारे में धारणा है कि वह निर्मल ही रहता है गंदा नहीं होता, उन नदियों को उद्योगों ने इतना प्रदूषित कर दिया है कि उनका पानी पीने लायक तो क्या, जानवरों को नहलाने लायक भी नहीं रहा.
इसके अलावा खुले पानी के बारे में तरह-तरह के संदेह पैदा कर दिये गये हैं. जैसे कि जहां पानी इकट्ठा होता है, वहां डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया आदि बीमारियों के फैलने का खतरा रहता है.
ऐसे में कोई जानवरों के लिए हौद बना कर, चिड़ियों के लिए बरतनों में पानी रख कर बिना मतलब की मुसीबत क्यों मोल ले. जबकि, रोग तो पहले भी थे, उनके इलाज भी होते थे, लेकिन आज रोग से बचने के लिए तरह-तरह के डर दिखाये जाते हैं. पक्षियों, जानवरों के लिए पानी न रखने के पीछे ऐसे डर ही तो हैं.

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