चिंताजनक चीनी मंसूबे

भारत ने चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ पहल पर कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा है कि संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की अवहेलना करनेवाले इस पहल को कोई भी देश स्वीकार नहीं कर सकता है. इस योजना पर चर्चा के लिए चीन ने साठ से अधिक देशों को आमंत्रित किया है जिसमें अमेरिका, रूस, तुर्की […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 15, 2017 6:03 AM
भारत ने चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ पहल पर कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा है कि संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की अवहेलना करनेवाले इस पहल को कोई भी देश स्वीकार नहीं कर सकता है.
इस योजना पर चर्चा के लिए चीन ने साठ से अधिक देशों को आमंत्रित किया है जिसमें अमेरिका, रूस, तुर्की आदि भी शामिल हैं. इस कदम को चीनी विदेश नीति का बहुत बड़ा दावं माना जा रहा है तथा इस तरह की महत्वाकांक्षी पहल उसने कई दशकों के बाद की है. हालांकि भारत को भी इसमें बुलाया गया था, पर उसका मानना है कि अंतरराष्ट्रीय नियमों, कानूनों, पारदर्शिता और संप्रभुता को किनारे रख कर उठाये जानेवाले ऐसे कदम वैश्विक हितों के विरुद्ध हैं. भारत ने परियोजनाओं को पूरा करने की गारंटी और देशों पर कर्ज का बोझ बढ़ने तथा पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को भी रेखांकित किया है.
भारत की आपत्तियां बिल्कुल सही हैं. श्रीलंका में चीनी सहयोग से बन रहा हम्बंटोटा बंदरगाह पूरा नहीं किया जा सका, लेकिन आज सिर्फ इस परियोजना की वजह से श्रीलंका आठ अरब डॉलर के कर्ज में है. ऐसे कई उदाहरण अफ्रीकी देशों में भी हैं जहां चीनी आर्थिक महत्वकांक्षाओं के कारण कर्ज का बोझ बढ़ा है, पर्यावरण तबाह हुआ है और पहले से ही वंचना के शिकार नागरिकों को निराशा के गर्त में जाने के लिए अभिशप्त होना पड़ा है.
लाओस और म्यांमार ने कुछ साझी परियोजनाओं पर फिर से विचार करने के लिए चीन से कहा है. यूरोपीय संघ बेलग्रेड और बुडापेस्ट के बीच चीन द्वारा बनाये जा रहे रेल मार्ग की जांच कर रहा है. यही हाल पाकिस्तान का भी हो सकता है जो चीन के साथ एक वृहत आर्थिक गलियारा बना रहा है. ‘वन बेल्ट, वन रोड’ फोरम में यह गलियारा एक महत्वपूर्ण विषय है.
भारत शुरू से ही इस परियोजना के विरोध में है क्योंकि इसमें उन भारतीय क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है जिन पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है. भारत ने एक बार फिर अपनी आपत्तियों को चीन के सामने रख दिया है और अब उसे चीनी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है. दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों का भविष्य इसी से तय होगा. रूस और अमेरिका जैसे मित्र देशों का चीनी पहल में साथ देना भी भारत के लिए एक मुश्किल है. आशा है कि एशिया, अफ्रीका और यूरोप में नये आर्थिक तंत्र की स्थापना की इस चीनी आकांक्षा का सामना भारत संतुलित और समुचित कूटनीति से कर सकेगा.

Next Article

Exit mobile version