यह तो सच्चा हिंदुत्व नहीं

पवन के वर्मा लेखक एवं पूर्व प्रशासक मुझे हिंदू होने पर गर्व है, पर हिंदुत्व के नाम पर हो रही कुछ चीजों पर मैं बहुत चिंतित हूं. मैं जिस हिंदुत्व का अनुयायी हूं, हजारों वर्षों पूर्व उसके ऋषियों ने यह घोषणा की थी कि सहनशीलता तथा समावेशन आध्यात्मिक दृष्टि के सार हैं. ईसा के जन्म […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 12, 2017 6:05 AM
पवन के वर्मा
लेखक एवं पूर्व प्रशासक
मुझे हिंदू होने पर गर्व है, पर हिंदुत्व के नाम पर हो रही कुछ चीजों पर मैं बहुत चिंतित हूं. मैं जिस हिंदुत्व का अनुयायी हूं, हजारों वर्षों पूर्व उसके ऋषियों ने यह घोषणा की थी कि सहनशीलता तथा समावेशन आध्यात्मिक दृष्टि के सार हैं. ईसा के जन्म के सदियों पहले, जिस वक्त अपनी कूपमंडूकता में रहते लोगों का यह यकीन था कि केवल वही सच है, जो उनके यकीन के दायरे में है, हमारे ऋषियों की उद्घोषणा थी, ‘एकं सत् विप्रा बहुधा वदंदि,’ यानी, एक सत्य को ज्ञानीजन भिन्न नामों से पुकारते हैं.
लगभग उसी वक्त, जब अधिकतर लोग यह मानते थे कि सिर्फ उनकी ही दुनिया सही है, हमारे ऋषियों ने यह कहने की हिम्मत की कि ‘उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्,’ अर्थात, उदार चरितवालों के लिए तो पूरी धरती ही परिवार है. ऐसे काल में, जब अधिकतर लोग संकुचित सोच रखते थे, हमारी धार्मिक विश्वदृष्टि की आधारशिला रखनेवाले यह कह सके कि ‘आ नो भद्राः क्रतवो यंतु विश्वतः,’ यानी, हमारे लिए सभी दिशाओं से भद्र विचार आयें.
दुर्भाग्यवश, एक ऐसे छोटे समूह के लोगों द्वारा, जिनका यह यकीन है कि हिंदुत्व क्या है यह केवल उन्हें ही मालूम है, आज इस महान धर्म का अपहरण किया जा रहा है. हमारे ऋषियों के इस मत से परे कि एक सत्य की व्याख्या ज्ञानियों द्वारा कई तरह से की जा सकती है, उनका यह विश्वास है कि सत्य पर उनका एकाधिकार है. हमारे संस्थापक ऋषि पूरे विश्व को परिवार मानते थे, पर ये हिंदू उनसे असहमत हर व्यक्ति को अलग-थलग करना चाहते हैं. हमारे ज्ञानी पूर्वजों ने सभी दिशाओं से भले विचार आमंत्रित किये, मगर इन कट्टरपंथियों के मस्तिष्क किसी भी अन्य विचार के लिए बंद हैं.
यह दुखद विडंबना है कि हिंदुओं का बहुमत चुपचाप देख रहा है. इसकी एक वजह तो यह है कि हमारे धर्म के ये स्वयंभू अभिभावक हिंसक लोग हैं. वे न तो समझाने-बुझाने, चर्चा, संवाद, बहस, शास्त्रार्थ या दलीलों में, और न ही कानून के राज में कोई विश्वास रखते हैं. वे यकीन करते हैं कि उन्हें उनके विरोध करनेवालों को पाशविक शक्ति से चुप करा देने का अधिकार हासिल है. उनकी हिंसा का स्तर उनके अज्ञान के स्तर के अनुपात में ही होता है. इससे भी बदतर यह है कि वे यह विश्वास करते हैं कि कानून तोड़ कर भी वे बच निकलेंगे, क्योंकि कानून के रक्षक वस्तुतः उनके पक्ष में ही हैं.
हिंदुत्व के इस अवमूल्यन का सबसे विद्रूप लक्षण मूर्खों के समूह से बने गौरक्षकों के वे दस्ते हैं, जो इस प्राचीन भूमि पर केवल संदेह के आधार पर ही लोगों को मारते-पीटते तथा उनकी हत्या तक कर देते हैं. उन्हें ऐसा करने का कोई भी अधिकार हासिल नहीं, सिवाय उनकी खुद की निरक्षर हेकड़ी तथा इस यकीन के कि अधिकारी उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं करेंगे.
यह प्रवृत्ति अत्यंत चिंताजनक है, क्योंकि यह न केवल कानून के शासन को बल्कि स्वयं संविधान तथा गणतंत्र को भी कमजोर करती है. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने 7 अप्रैल को छह राज्यों को नोटिस जारी करते हुए तीन सप्ताह के अंदर उनसे यह जानना चाहा है कि कानून अपने हाथों में लेने की वजह से खुद को गौरक्षक कहनेवाले समूहों को क्यों नहीं अन्य गैरकानूनी समूहों की तरह प्रतिबंधित कर दिया जाये. ये छह राज्य हैं, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र तथा कर्नाटक. सुप्रीम कोर्ट ने इन राज्यों से यह भी बताने को कहा है कि उन्होंने इस तरह की निगरानी रोकने के लिए कौन से कदम उठाये हैं. यह कोई संयोग नहीं कि इन छह राज्यों में पांच भाजपा शासित हैं.
बहुत से हिंदू गाय को श्रद्धास्पद मानते हैं. उस भावना का सम्मान किया जाना चाहिए. कई राज्यों में गोवध के प्रतिषेध के लिए कानून लागू हैं. कानून का अनुपालन सुनिश्चित कराना उनका काम है, जो वैसा करने के लिए अधिकृत है. यदि नागरिक यह यकीन करने लगें कि धार्मिक आस्था के नाम पर वे कानून अपने हाथों में ले सकते हैं, तो हम एक अराजक स्थिति के करीब हैं. सुप्रीम कोर्ट के निदेश का औचित्य सिद्ध करने योग्य पर्याप्त घटनाएं हो चुकी हैं.
गोमांस खाने के संदेह में उत्तर प्रदेश में मुहम्मद अखलाक को मार डाला गया; गुजरात में दलितों को सरेआम कोड़े मारे गये, क्योंकि उनके विषय में यह संदेह था कि वे पशुचोर थे; झारखंड में एक पशु मेले की ओर जाते मजलूम अंसारी एवं इनायतुल्ला खान को एक वृक्ष से लटका कर फांसी दे दी गयी; जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में जैद अहमद भट को पशु तस्कर होने के संदेह में राजमार्ग पर जीवित जला दिया गया; 25 वर्ष के एक अन्य नौजवान को उडुपी में भीड़ द्वारा इसलिए मार डाला गया कि वह एक वैन में पशुओं को कहीं ले जा रहा था, और अब राजस्थान में गौरक्षकों द्वारा पहलू खान को पीट-पीट कर मार डालने की नवीनतम घटना हमारे सामने आयी है.
कानून को अपने हाथ लेने की प्रवृत्ति ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे का एक अनोखा स्वरूप पेश करता है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गौरक्षकों का स्वांग करनेवालों में अधिकतर केवल ‘असामाजिक तत्व’ हैं. मगर जिन राज्यों में उनकी पार्टी सत्तारूढ़ है, वहां कानून लागू करनेवालों के द्वारा प्रधानमंत्री का यह विचार साझा किया जाता नहीं लगता. सबसे ज्यादा चिंतित करने वाली चीज यह है कि कानून के अपहरण का एक मामला लोगों को अगली घटना के लिए प्रोत्साहित करता है.
अब हम सुनते हैं कि गोरखपुर में हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने एक चर्च में प्रार्थना के कार्यक्रम स्थगित करा दिये हैं.‘एंटी रोमियो’ दलों के गठन की आड़ में युवा महिला-पुरुष के जोड़ों के विरुद्ध अत्याचार की खबरें भी आयी हैं. हिंदुत्व इस तरह की हिंसा की अनुमति नहीं देता, न ही धर्म का समर्थन करनेवाला हिंदुत्व देश के कानून के साथ ऐसी मनमानी का समर्थन करता है. जो लोग हिंदुत्व के लिए ऐसे काम करने के दावे करते हैं, वे हिंदुओं की बहुसंख्या को शर्मिंदा कर रहे हैं. उन्हें रोकने के लिए वास्तविक हिंदुत्व का जीवन जीनेवालों को साथ आने की जरूरत है.

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