इस दीवाली चीनी बंद

डॉ सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार देशभक्त जी आये. हालांकि, उनके मामले में ‘आये’ कहना तकनीकी रूप से गलत होगा, क्योंकि वे कभी आते नहीं, हमेशा पधारते हैं. इस बार पधारे भी नहीं थे, आ धमके थे. यानी उनके पधारने में एक खास तरह की धमक थी. यों तो हर साल दीवाली पर देशभर में भक्ति […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 28, 2016 6:27 AM
डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
देशभक्त जी आये. हालांकि, उनके मामले में ‘आये’ कहना तकनीकी रूप से गलत होगा, क्योंकि वे कभी आते नहीं, हमेशा पधारते हैं. इस बार पधारे भी नहीं थे, आ धमके थे. यानी उनके पधारने में एक खास तरह की धमक थी. यों तो हर साल दीवाली पर देशभर में भक्ति का ज्वार उमड़ता ही है, क्योंकि भगवान राम रावण पर विजय प्राप्त करके घर लौटते हैं. इस बार उस भक्ति में देशभक्ति भी जुड़ गयी थी, क्योंकि भगवान इस बार युद्ध नहीं, सर्जिकल स्ट्राइक करके लौटे थे. यह पहली बार था, जब सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी और इसका श्रेय भगवान को जाता था या फिर उनके रक्षा मंत्री को. हां, थोड़ा-बहुत सेना को भी जाता था.
इस बार भक्तों ने भगवान की भक्ति में देशभक्ति भी मिला ली थी. इस मामले में वे अहमद फराज से प्रेरित लगते थे, जिसने कहा था कि ‘गम-ए-दुनिया भी गम-ए-यार में शामिल कर लो, नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें’. वे उन्हें स्वीकार नहीं करते थे, क्योंकि वह शायर तो अच्छा था, पर पाकिस्तानी था. तो भक्ति की शराब में उन्होंने देशभक्ति की शराब भी शामिल कर ली थी. गम-ए-यार में गम-ए-दुनिया शामिल करने के लिए वे खुद ही गम पैदा करने से भी पीछे नहीं हटते थे.
देशभक्त जी भी इसीलिए मेरे पास आये थे. हालांकि, वे मुझे जन्मजात देशद्रोही मानते थे, पर देशभक्त बनाने के लिए हमेशा तैयार रहते थे. देशद्रोही और देशभक्त की पहचान का उनका पैमाना भी बहुत सीधा-सरल था.
जो उनका सही बात के लिए भी विरोध करे, वह देशद्रोही और जो गलत बात पर भी समर्थन करे, वह देशभक्त. विरोधी खेमे के सभी लोग देशद्रोही और अपने खेमे के सभी लोग देशभक्त. यहां तक कि अगर सुबह का देशद्रोही शाम को घर यानी अपने खेमे में आ जाये, तो वह भी तत्काल प्रभाव से देशद्रोही नहीं रह जाता. विरोधी खेमे में रहते हुए बहुगुणा भी अवगुणा, और अपने खेमे में आते ही अवगुणा भी बहुगुणा. विभीषण को विभीषण बनाने और गले लगाने को हमेशा तत्पर.
इसी तत्परता से उन्होंने मुझसे कहा, आपके यहां कोई चीनी माल तो नहीं है? इस दीवाली चीनी माल का बहिष्कार करना है. मैंने पूछा, बहिष्कार जनता को ही करना है, या सरकार को भी करना चाहिए?
वह तो चीन के साथ बैठकें और समझौते करती फिर रही है. सरकार चीन से माल आयात करने पर ही रोक लगा दे, तो जनता इस झमेले में ही न पड़े. उन्होंने मुझे इस भाव से देखा, मानो कह रहे हों कि कर दी न वही देशद्रोहियों वाली बात! फिर बोले, सरकार द्वारा चीनी माल के आयात पर प्रतिबंध न लगाने पर भी जनता उसका बहिष्कार करे, इसी में तो देशभक्ति है. मैंने कहा, बड़े-बड़े आयातकों ने तो माल आयात कर मुनाफा कमा लिया, अब आप जनता से उसका बहिष्कार करवा कर छोटे दुकानदारों और ठेले-पटरीवालों के पेट पर लात क्यों मारना चाहते हैं? उन्होंने जवाब दिया कि वे कोई जनता से अलग थोड़े ही हैं.
फिर उन्होंने बातों में समय न खोते हुए मेरे घर में रेड-सी डाली और मोबाइल फोन, लैपटॉप, बिजली की पुरानी लड़ियां वगैरह…
जो कुछ हाथ लगा, उसे समेट कर ले जाते हुए बोले कि इन्हें मैं इस्तेमाल करके देखूंगा कि ये चीनी तो नहीं हैं. तुम्हारी तरफ से इनका बहिष्कार हो गया समझो. फिर अचानक उनकी निगाह रसोई में चीनी के डब्बे पर पड़ी. वे तैश में आते हुए बोले- अरे, इसका तो नाम ही चीनी है, इसे तो घर में बिलकुल भी नहीं रखना चाहिए. और उन्होंने वह दो किलो चीनी का डब्बा भी उठाया और चलते बने.

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