सपा में अंतर्कलह के मायने

रामेश्वर पांडेय वरिष्ठ पत्रकार समाजवादी पार्टी में शीर्ष स्तर पर सत्ता संघर्ष तो अखिलेश सरकार के गठन के साथ ही झलकने लगा था, लेकिन मंगलवार को अंतर्कलह उस समय चरम पर पहुंच गया, जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुख्य सचिव दीपक सिंघल की छुट्टी कर उनकी जगह राहुल भटनागर को बिठा दिया. पार्टी सुप्रीमो मुलायम […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 15, 2016 6:27 AM
रामेश्वर पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार
समाजवादी पार्टी में शीर्ष स्तर पर सत्ता संघर्ष तो अखिलेश सरकार के गठन के साथ ही झलकने लगा था, लेकिन मंगलवार को अंतर्कलह उस समय चरम पर पहुंच गया, जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुख्य सचिव दीपक सिंघल की छुट्टी कर उनकी जगह राहुल भटनागर को बिठा दिया. पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह ने भाई शिवपाल सिंह यादव को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी. अभी तक यह जिम्मेवारी अखिलेश संभाल रहे थे. इस फैसले के थोड़ी देर बाद ही अखिलेश ने शिवपाल के सभी महत्वपूर्ण विभाग छीन लिये.
इससे पहले अखिलेश ने मुलायम के करीबी दो विवादित मंत्रियों गायत्री प्रजापति और राजकिशोर सिंह को बरखास्त कर अपना इरादा जता दिया कि अब वह अपनी मर्जी से फैसले करेंगे. इससे कई सवाल उभरे हैं . सत्तारूढ़ दल और मुलायम परिवार का यह सियासी संकट किस मोड़ पर पहुंचेगा? क्या सचमुच संकट उतना बड़ा है, जितना मीडिया में दिख रहा है? कुछ विपक्षी नेताओं के इस आकलन में कितना दम है कि यह सोची-समझी पहले से लिखी पटकथा है, जिसके सूत्रधार मुलायम सिंह हैं?
आनेवाले चंद दिनों में ही इन सवालों के जवाब मिल जायेंगे, लेकिन यह तय है कि आखिरी फैसला मुलायम सिंह का ही माना जायेगा. मुलायम सिंह व्यावहारिक राजनीतिक के मजे खिलाड़ी हैं. उन्हें पुत्र अखिलेश की छवि का ख्याल है, साथ ही भाई शिवपाल की भावनाओं की परवाह भी. पिछले दिनों जब शिवपाल ने इस्तीफे की धमकी दी थी, तब मुलायम ने चेतावनी दी थी कि अगर मैं हट गया, तो आधे कार्यकर्ता मेरे साथ चले जायेंगे और आधे शिवपाल के साथ. मुलायम इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि विधानसभा चुनाव की वैतरणी अखिलेश की छवि के सहारे ही पार की जा सकती है, इसलिए मुलायम शिवपाल की सांगठनिक शक्ति का उपयोग तो करना चाहते हैं, लेकिन इस आरोप को धोना चाहते हैं कि ‘प्रदेश में साढ़े चार मुख्यमंत्री काम कर रहे हैं.’ चुनाव से पहले मुलायम यह स्थापित करना चाहते हैं, अखिलेश सर्वशक्तिमान मुख्यमंत्री हैं.
अखिलेश ने यह संदेश भी दे दिया कि अगर शिवपाल का विभाग छीन सकते हैं, तो दूसरे अपनी स्थिति का अनुमान लगा लें. अखिलेश ने बयान भी दिया कि सब कुछ नेता जी से पूछ कर हो रहा है. उन्होंने कहा कि यह परिवार का नहीं, सरकार का झगड़ा है. अगर परिवार से बाहर के लोग फैसला करेंगे, तो पार्टी कैसे चलेगी. इशारा अमर सिंह की ओर था. तय है कि अब अमर सिंह का पर्दे के पीछे से हस्तक्षेप बंद कराया जायेगा.
सपा की सबसे बड़ी चुनौती सत्ता विरोधी लहर को रोकना है. अखिलेश विकास कार्यों की लंबी फेहरिस्त के साथ माहौल को अनुकूल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. समाचार चैनलों और छोटे-बड़े सभी अखबारों में लखनऊ में मेट्रो, लखनऊ-आगरा हाइ-वे, सूबे में सड़कों का जाल, ग्रामीण विद्युतीकरण आदि योजनाओं का हवाला देते हुए सरकार कह रही है- पूरे हुए वादे, अब हैं नये इरादे. अखिलेश सूबे के हर इलाके में खुद जा रहे हैं, योजनाओं के लोकार्पण का दौर चल रहा है. अखिलेश केंद्र सरकार पर तंज कसते हैं- हम सपने नहीं दिखाते, काम करते हैं. अखिलेश का उत्साह अपनी जगह, लेकिन मुलायम सिंह को जमीनी हकीकत का अनुमान है. वह यह जानते हैं कि अगर जातिगत और क्षेत्रीय, सामाजिक संतुलन को ठीक से न साधा गया, तो मोरचा बहुत कठिन हो जायेगा.
सपा का अपना आधार वोट है- मुसलिम और यादव गंठजोड़. इसके अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग को सहेजने और दलित मतदाताओं में सेंध लगाने की रणनीति अपनायी गयी है. मुलायम जीत का व्यावहारिक समीकरण बिठा रहे हैं और अखिलेश साफ-सुथरी छवि चमकाने में लगे हैं. याद दिला दें कि जब शिवपाल यादव ने आपराधिक छवि के नेता मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय करा दिया था, अखिलेश ने नाराजगी में विलय की मध्यस्थता करनेवाले वरिष्ठ मंत्री बलराम यादव को बरखास्त कर दिया. उस वक्त भी शीर्ष पर सपा का वैचारिक संघर्ष सतह पर आया था.
2012 के चुनाव से पहले सपा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बाहुबली डीपी यादव और अतीक अहमद की सपा में शामिल होने की राह रोकी थी. तब अखिलेश के फैसले को सिर आंखों पर लिया गया और खासतौर से युवाओं के बीच एक अच्छा संदेश गया था. अतीक अहमद लोकसभा चुनाव के दौरान सपा में शामिल किये गये, तो सपा सवालों के घेरे में आयी.
अब कौमी एकता दल के विलय की पहल और उसके रोके जाने के बारे में पार्टी जो भी तर्क दे, लेकिन सवाल उठने शुरू हो गये हैं. अखिलेश कह चुके हैं कि पार्टी में आपराधिक छवि के लोगों के लिए कोई जगह नहीं है. बहुतों को उन्होंने दल से बाहर का रास्ता भी दिखाया. देखना है कि अपराध विरोधी और सर्वशक्तिमान मुख्यमंत्री की अपनी गढ़ी हुई छवि के साथ अखिलेश विधानसभा की जंग में क्या हासिल करते हैं.

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