28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

5 जी पर ठोस शोध की जरूरत

सरकारों को टेलीकॉम कंपनियों पर शोध और परीक्षण के लिए दबाव डालना चाहिए. आवश्यक होने पर इसके लिए नियम-कानून भी बनाये जा सकते हैं.

अमेरिका जानेवाली अनेक हवाई उड़ानों को 5जी की एक खास फ्रिक्वेंसी से जुड़ी आशंकाओं के कारण रद्द किया गया है. विमानन उद्योग की कुछ गंभीर चिंताएं हैं, पर यह 5जी की तकनीक को लेकर नहीं, बल्कि फ्रिक्वेंसी के एक स्तर को लेकर है. इस 5जी तकनीक को तीन बैंड- लो, मिडिल व हाई- पर इस्तेमाल किया जाता है और इनकी फ्रिक्वेंसी अलग-अलग होती है.

फ्रिक्वेंसी यानी एक इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक रेंज होती है, जिसे मेगाहर्ट्ज, गीगाहर्ट्ज आदि से व्यक्त किया जाता है. लो बैंड में फ्रिक्वेंसी एक गीगाहर्ट्ज से नीचे होती है, मिडिल बैंड में एक से छह गीगाहर्ट्ज फ्रिक्वेंसी होती है तथा हाई बैंड में यह छह से ऊपर होती है. लो बैंड से समस्या नहीं है और विमानन उद्योग की आपत्ति मिडिल बैंड को लेकर है.

अमेरिका में 5जी सेवा में मिडिल बैंड का इस्तेमाल किया जा रहा है. इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक वेव की वजह से यह बैंड ताकतवर है. इसका विकिरण अधिक गति से होता है. अमेरिका में टेलीकॉम सेक्टर में तीन प्रमुख कंपनियां हैं- वेरिजोन, एटी एंड टी और टी मोबाइल. ये तेज इंटरनेट सेवा देना चाहती हैं, इसलिए मिडिल बैंड इनकी पसंद है. पहली दो कंपनियां इस सेवा को शुरू कर चुकी हैं.

समस्या यह है कि विमानों में भी कुछ ऐसे अहम उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है, जो मिडिल बैंड की फ्रिक्वेंसी पर काम करते हैं. उन्हें आशंका है कि मोबाइल कंपनियों की फ्रिक्वेंसी से उनके उपकरणों पर असर हो सकता है. ऐसे उपकरणों में प्रमुख है आल्टीमीटर. इससे यह पता चलता है कि विमान धरती से कितना ऊपर है. हालांकि इसका पता लगाने के लिए विमानों में कुछ वैकल्पिक प्रणाली भी होती है, लेकिन विमान को हवाईपट्टी पर उतारते समय आल्टीमीटर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है.

जब दिन के समय मौसम साफ होता है, तो पायलट आंख से भी देखता है और उसे अनुमान हो जाता है, किंतु खराब मौसम, कुहासे, बारिश और रात में इस उपकरण का ठीक से काम करना जरूरी हो जाता है. अब डर यह है कि अगर हवाई अड्डों पर 5जी के टावर लगा दिये जायेंगे, जिनकी फ्रिक्वेंसी मिडिल बैंड की होगी, तो परेशानी हो सकती है और कोई दुर्घटना भी घट सकती है. ऐसा हो सकता है कि टावर की फ्रिक्वेंसी आल्टीमीटर की रीडिंग को बदल दे. इस कारण विमानन उद्योग ने इसका विरोध किया है और आज नौबत यहां तक आ गयी है कि उड़ानों को रद्द करना पड़ रहा है.

विमानन उद्योग का कहना है कि टेलीकॉम कंपनियों को लो बैंड पर काम करना चाहिए, ताकि उड़ानों पर असर न हो. फिलहाल वहां की कंपनियां साढ़े तीन-चार गीगाहर्ट्ज की फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल कर रहे हैं. टेलीकॉम कंपनियों के नहीं मानने पर विमानन कंपनियों ने हवाई जहाज बनानेवाली कंपनियों को संपर्क किया और उनसे पूछा कि अब इस स्थिति में क्या किया जा सकता है.

निर्माता कंपनियों ने अपने स्तर पर पड़ताल कर एक सूची बनायी है, जिसमें उन विमानों का उल्लेख हैं, जो 5जी की मिडिल बैंड की फ्रिक्वेंसी से प्रभावित नहीं होंगे. लेकिन बोइंग 777 जैसे कुछ विमानों की प्रणाली में यह बैंड विक्षोभ पैदा कर सकता है, यह भी जानकारी दी गयी है. इन विमानों को एअर इंडिया और अन्य देशों के अनेक विमानन कंपनियां उड़ाती हैं.

इसी वजह से उन्होंने अमेरिका जानेवाली उड़ानों को रद्द करने का फैसला लिया है. इस समस्या के समाधान के प्रयास जारी हैं. एक संभावित उपाय यह हो सकता है कि अमेरिका में हवाई अड्डों तथा आसपास के इलाकों में लोअर बैंड की फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल हो, जिससे उड़ानों को कोई दिक्कत न हो तथा अन्य जगहों पर मिडिल बैंड के टावर लगाये जाएं. दूसरा उपाय यह है कि हवाईअड्डों और नजदीक जगहों पर टावरों को इस तरह से लगाया जाए कि उनकी फ्रिक्वेंसी उड़ानों पर असर न डाल सके. यह व्यवस्था ऐसे अनेक देशों में लागू की गयी है, जहां 5जी सेवा शुरू हो चुकी है.

यह भी समझना जरूरी है कि 5जी को लेकर उड़ानों की समस्या तकनीक से संबंधित है, मनुष्य या जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य से नहीं. हालांकि यह भी संभव है कि स्वास्थ्य से जुड़ी जो आशंकाएं पहले से जतायी जाती रही हैं, मौजूदा मामले के बाद उनके बारे में चर्चाएं जोर पकड़ें. उल्लेखनीय है कि 5जी तकनीक के लोअर बैंड की फ्रिक्वेंसी के असर को लेकर खास चिंताएं या डर नहीं है.

इसमें और 4जी में बहुत अंतर भी नहीं है, जिसे लेकर हम अनुकूल हो गये हैं. लेकिन पक्षियों, विशेष रूप से छोटी पक्षियों, पर असर से संबंधित चिंता अब भी है. यह सब आशंकाएं किसी वैज्ञानिक शोध या अनुसंधान पर आधारित नहीं हैं. अगर ऊपरी बैंड की फ्रिक्वेंसी पर 5जी आधारित होती है, तो ऐसा माना जाता है कि हमारे शरीर पर उनका प्रभाव हो सकता है. कुछ साल पहले कई देशों के वैज्ञानिकों के एक समूह ने बयान जारी किया था कि 5जी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और इससे कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं. पर सबसे मुश्किल पहलू यह है कि 5जी के असर पर जो भी शोध हुए हैं, वे या तो बिना ठोस निष्कर्ष के हैं या फिर विरोधाभासी हैं.

वर्ष 2015 से ही 5जी तकनीक के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा और बहस जारी है, इसके बावजूद आज भी हमारे पास इसके तकनीकी या स्वास्थ्य से जुड़े प्रभावों के बारे ठीक से जानकारी नहीं है. इसका एक नतीजा यह भी है कि लोगों में तरह-तरह की आशंकाएं घर कर गयी हैं. यह सवाल तो पैदा होता ही है कि जब टेलीकॉम कंपनियों के पास पर्याप्त धन है, तो वे ठोस शोध क्यों नहीं करा रही हैं.

अमेरिकी टेलीकॉम कंपनियों- एटी एंड टी और वेरिजोन- ने 80 अरब डॉलर में 5जी का स्पेक्ट्रम खरीदा है. वे कुछ धन शोध पर भी खर्च कर सकती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्था भी इस संबंध में पहल कर सकती है. इतने वर्षों से जो चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं, उन्हें देखते हुए सरकारों को भी कंपनियों पर शोध और परीक्षण के लिए दबाव डालना चाहिए.

अगर आवश्यकता हो, तो इसके लिए नियम-कानून भी बनाये जा सकते हैं. अगर हमारे पास इस तकनीक के हर पहलू से जुड़ी जानकारी रहेगी, तो न तो उड़ानों को रद्द करना पड़ेगा और न ही आम जन के मन में किसी प्रकार का भय पैदा होगा. सात वर्षों का समय पहले ही गुजर चुका है. अब इसमें देरी नहीं होनी चाहिए क्योंकि तकनीक का विकास भी हो रहा है. (बातचीत पर आधारित)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें