वोट के बाद यूनान

यूनानी जनताद्वारा यूरोपीय कजर्दाताओं की शर्तो को नकार देने के बाद पूरे यूरोप में भारी उथल-पुथल की आशंका जतायी जा रही है. हालांकि, इस नतीजे की आशंका पहले से ही थी, फिर भी जनमत संग्रह के नतीजे के बाद दुनियाभर के शेयर बाजारों में घबराहट की स्थिति है. हालांकि संतोष की बात है कि विभिन्न […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 7, 2015 5:43 AM
यूनानी जनताद्वारा यूरोपीय कजर्दाताओं की शर्तो को नकार देने के बाद पूरे यूरोप में भारी उथल-पुथल की आशंका जतायी जा रही है. हालांकि, इस नतीजे की आशंका पहले से ही थी, फिर भी जनमत संग्रह के नतीजे के बाद दुनियाभर के शेयर बाजारों में घबराहट की स्थिति है. हालांकि संतोष की बात है कि विभिन्न पक्षों में नये सिरे से वार्ताओं का दौर शुरू हो चुका है.
कजर्दाताओं के साथ समझौते के लिए प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास के पास अधिक ठोस आधार हैं, लेकिन अपने वित्त मंत्री यानिस वारॉफकिस से इस्तीफा लेकर उन्होंने कजर्दाताओं को सकारात्मक संकेत दिये हैं. यूरोपीय देनदार पूर्व वित्तमंत्री के कई बयानों एवं कठोर रवैये से असंतुष्ट थे. यह सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या यूनान यूरोपीय संघ में बना रहेगा? जनमत संग्रह के परिणामों के आने के बाद रविवार और सोमवार के घटनाक्रमों से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यूनान के यूरो जोन से बाहर जाने का संकट टल सकता है. रिपोर्टो के मुताबिक, जर्मनी की चांसलर मर्केल और फ्रांसीसी राष्ट्रपति होलां ने यूनानी जनता की राय के प्रति सम्मानजनक रुख अपनाने की बात कही है.
लेकिन, यूनान को राहत देने की राह बहुत आसान भी नहीं होगी. यूरोपीय संघ बैंक के सदस्य और बैंक ऑफ फ्रांस के गवर्नर क्रिश्चियन नोयेर ने बयान दिया है कि यूरो व्यवस्था द्वारा दिये गये कर्ज की पुर्नसरचना नहीं की जा सकती है. हालांकि, पूरे प्रकरण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कोई भी पक्ष यूरोपीय संघ से यूनान के बाहर जाने देने का हिमायती नहीं है, क्योंकि ऐसी स्थिति में इस संस्था के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लग सकता है तथा संघ के कुछ अन्य सदस्य देश भी यूनान की राह पर चलने का मन बना सकते हैं.
यूरोपीय संघ यूनान मामले में रूस और चीन के दखल की संभावना को भी किसी भी स्थिति में टालना चाहता है. बहरहाल, यूनानी जनमत संग्रह ने बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और वित्तीय संस्थाओं को एक संकेत तो दिया ही है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों के आधार सिर्फ आर्थिक लाभ और राजनीतिक वर्चस्व नहीं हो सकते हैं. दुनिया को इस संकट के तात्कालिक प्रभावों के प्रति सचेत रहना होगा.
भारतीय शेयर बाजारों पर भी इसके नकारात्मक असर दिखे हैं. सरकार ने पहले ही कहा था कि हमारी अर्थव्यवस्था पर इसके नकारात्मक प्रभावों को रोकने के प्रयास हो रहे हैं. अभी चीनी शेयर बाजार ही एकमात्र शेयर बाजार है, जिस पर असर नहीं हुआ है. भारत को चीनी रणनीति से भी सबक लेने की जरूरत है.

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