ललित मोदी प्रहसन

जो स्वभाव ललित मोदी के रचे क्रिकेट का है, तकरीबन वही स्वभाव उनके द्वारा लगाये जा रहे आरोपों का बनता जा रहा है. अगर आइपीएल अवतार में क्रिकेट का मुख्य तत्व मनोरंजन है, तो ललित मोदी के आरोपों का मुख्य तत्व भी परदाफाश से परे खिसक कर प्रहसन का रूप लेता जा रहा है. आइपीएल […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 3, 2015 5:38 AM
जो स्वभाव ललित मोदी के रचे क्रिकेट का है, तकरीबन वही स्वभाव उनके द्वारा लगाये जा रहे आरोपों का बनता जा रहा है. अगर आइपीएल अवतार में क्रिकेट का मुख्य तत्व मनोरंजन है, तो ललित मोदी के आरोपों का मुख्य तत्व भी परदाफाश से परे खिसक कर प्रहसन का रूप लेता जा रहा है. आइपीएल संस्करण में क्रिकेट उतना ही है जितना दाल में नमक होता है.
बीस-बीस ओवरों में निपटाये जानेवाले इस भव्य टेलीविजनी तमाशे में सबसे ज्यादा होती है रंगीनी, जो खिलाड़ियों और दर्शकों के रंगीन कपड़ों से लेकर गेंद, बल्ले और मैदान के एक-एक इंच पर बिछी दिखती है. इसमें चौके-छक्के होते हैं, बॉलीवुड होता है, चीयरलीडर्स, चकाचौंध भरी रात और देर रात की पार्टियां होती हैं. इस कॉकटेल से कहीं दूर खड़ा क्रिकेट पछताता है. यही अभी ललित मोदी के आरोपों के साथ हो रहा है.
आइपीएल में जिस रफ्तार से चौके-छक्के लगते हैं, करीब उसी रफ्तार से मोदी ट्वीटर पर खुलासा-खुलासा खेल रहे हैं. मैदान में किसी भी तरफ गेंद उड़ाने के अंदाज में वे चौतरफा ट्वीटरी आरोप उड़ा रहे हैं. कभी वे आरोपों की अपनी गेंद खिलाड़ियों पर उछालते नजर आते हैं, तो कभी क्रिकेट बोर्ड के अधिकारियों की ओर. ऐसा लग रहा कि करो या मरो के भाव धर कर बल्ला भांजनेवाले खिलाड़ी की तरह वे सबसे तेज गति से आरोपों का शतक बनाने के संकल्प के साथ सार्वजनिक जीवन के राजनीतिक मैदान में आ डटे हैं, और ‘किसके दामन पर दाग नहीं’ के अपने मेगा-शो को खुद अपना नाम देना चाहते हैं.
तभी तो उन्होंने पोल खोल के अपने खेल को खुद ही ‘ललितगेट’ कह दिया है और किसी शो-मैन की तरह ट्वीटर पर लिखा है कि ‘अभी और इंतजार कीजिये, क्योंकि खुलासे का यह खेल आगे भी जारी रहेगा’. सार्वजनिक जीवन के मान-मर्दन की छूट किसी को नहीं दी जा सकती है. हो सकता है, ललित मोदी के पास कहने के लिए सचमुच कुछ सार्थक हो. हो सकता है, वे सही में हमारे मान-मूल्यों को घेरनेवाले बड़े संकट की तरफ इशारा करना चाहते हों.
पर असल सवाल यह है कि सार्वजनिक जीवन में शुचिता को बहाल रखने की जिम्मेवार संस्थाएं और प्रक्रियाएं उनके रचे ‘ललितगेट’ के चक्रव्यूह को भेद कर भ्रष्टाचार के महाभारत का अंत कर पाने को तत्पर हैं या नहीं? अफसोस कि ऐसी तत्परता अब तक नहीं दिख रही है और पूरे मामले की विडंबना यह है कि जो मुल्जिम है, वही मुंसिफ बन कर अपने मामले पर रोजाना फैसला सुना रहा है!

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