गरीबों से ही पूछो गरीबी की परिभाषा

भारत में गरीबी दूर करने के लिए लंबे समय से प्रयास किये जा रहे हैं. प्राय: हरेक चुनावों में सभी राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में यह ज्वलंत मुद्दा प्रमुखता से शामिल भी रहता है, लेकिन कड़वी सच्चाई यह भी है कि आज भी देश की एक तिहाई आबादी गरीबी से अभिशप्त हैं. गरीबी दूर करने […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 23, 2015 5:42 AM
भारत में गरीबी दूर करने के लिए लंबे समय से प्रयास किये जा रहे हैं. प्राय: हरेक चुनावों में सभी राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में यह ज्वलंत मुद्दा प्रमुखता से शामिल भी रहता है, लेकिन कड़वी सच्चाई यह भी है कि आज भी देश की एक तिहाई आबादी गरीबी से अभिशप्त हैं.
गरीबी दूर करने के तमाम दावों, वादों और घोषणाओं के बीच कभी भी समिति, आयोग और रिपोर्ट से बाहर निकल कर गरीबी दूर करने के धरातलीय प्रयास नहीं किये गये. नतीजतन, भारत में गरीबी इसकी अनुगामी विशेषता बन कर रह गयी है. यही कारण है कि आम आदमी गरीबी के कुचक्र में अपने सुनहरे सपने को निर्दयता से कुचलता देख बदजुमानी खड़ा रहने को मजबूर है.
समस्या यह भी है कि हम गरीब किसे मानें? विभिन्न संस्थाओं द्वारा समय-समय पर गरीबी तय करने के जो आधार मापदंड प्रस्तुत किये जाते हैं, क्या वे सही हैं या बस गरीबों के साथ मजाक मात्र है?
देश का दुर्भाग्य यह भी है कि यहां गरीबी की परिभाषा वे चंद लोग तय कर रहे हैं, जो वातानुकूलित कमरों में बैठ मिनरल वाटर के साथ दर्जनों लजीज व्यंजनों का स्वाद लेते हैं. भला!वो क्या जानेंगे गरीबों के पेट की आग की धधक? जिनके पैरों में कांटे चुभते हैं, उसका दर्द तो वही बता सकता है.
इसलिए गरीबों की परिभाषा तो उन गरीबों से पूछी जानी चाहिए, जो इसकी मार ङोल रहा है. गरीबी उतनी बड़ी समस्या भी नहीं कि समाधान भी न हो, लेकिन इस दिशा में न सिर्फ राजनेताओं बल्कि आम गरीब लोगों में भी इच्छाशक्ति का अभाव दिखता है. गरीबी में जी रहे लोग मेहनत करना नहीं चाहते हैं.
बैठे-बैठे रोटी खाने की आदत पड़ गयी है. अपने को गरीब कहना या स्वीकारना ही तो सबसे बड़ी गरीबी है.
सुधीर कुमार, राजाभीट्ठा, गोड्डा

Next Article

Exit mobile version