ऐसी सलामी ने तो गजब ढा दिया

शकील अख्तर प्रभात खबर, रांची आज सुबह-सुबह ही बीवी से भिड़ंत हो गयी. महीना अभी सिर्फ आधा ही पार हुआ है, और तनख्वाह पूरी साफ हो चुकी है. मुङो मालूम है कि बीवी बाकी के आधे महीने के लिए कुछ पैसे अलग से दबा कर रखती है. लेकिन उसमें से मुङो कुछ मिलने की उम्मीद […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 18, 2015 5:32 AM
शकील अख्तर
प्रभात खबर, रांची
आज सुबह-सुबह ही बीवी से भिड़ंत हो गयी. महीना अभी सिर्फ आधा ही पार हुआ है, और तनख्वाह पूरी साफ हो चुकी है. मुङो मालूम है कि बीवी बाकी के आधे महीने के लिए कुछ पैसे अलग से दबा कर रखती है.
लेकिन उसमें से मुङो कुछ मिलने की उम्मीद ना के बराबर ही रहती है. फिर भी मैंने जोखिम उठाते हुए, या कहें कि मजबूरी में, जेब खर्च के लिए उससे कुछ पैसे मांगे. उसने साफ मना कर दिया. मैं अपना सा मुंह लिये, बगैर नाश्ता किये, घर से दफ्तर के लिए निकलने लगा. उसने पीछे से आवाज लगायी, ‘‘खाना हो तो खाओ, वरना भाड़ में जाओ.’’ ‘‘मैं मर भी जाऊं, तो तुम्हारा क्या?’’- कहते हुए मैं बगैर नाश्ता किये दफ्तर के लिए निकल पड़ा. पीछे से बीवी ने आवाज लगायी- ‘‘सुनो, आते वक्त चिकेन लेते आना. इसके बाद मरना या जो समझ में आये करना.’’ मैंने पलट कर जवाब दिया, ‘‘तुम्हारे फलां दुकान लगाये बैठे हैं, जो दे देंगे बगैर पैसों के चिकेन!
50 रुपये तो निकाल नहीं रही हो, ऊपर से फरमाइश चिकेन की.’’ मेरी बात सुनते ही बीवी आगबबूला हो कर बोली- ‘‘मैं क्या मुर्गी बेचनेवाले घर की हूं? मुर्गी की दुकान लगाते होंगे तुम्हारे घरवाले.’’ इतना सुन कर मैं जल-भुन कर दफ्तर की ओर पैदल ही चल पड़ा.
देर से पहुंचा, तो बॉस ने फटकारा. दिनभर काम निपटाने के बाद घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में जूते ने धोखा देना शुरू किया. आहिस्ता आहिस्ता मुंह फाड़ने लगा. आधे रास्ते पहुंच कर जूते का तल्ला चमड़े से अलग हो गया और मैं बुरी तरह फंस गया. मेरी हालत सांप छछूंदर वाली हो गयी. जूता ससुराल से मिला था इसलिए फेंक भी नहीं सकता था. अगर ऐसा करता तो सुबह का नाश्ता छूटा तो छूटा, रात का खाना भी नहीं मिलता.
जेब खाली थी, इसलिए मरम्मत भी नहीं करा सकता था. सड़क के किनारे थोड़ी ही दूर पर मोची आस लगाये बैठा था. मुङो अपने हालात का अहसास था, इसलिए मैंने उससे नज़र मिलाने की जहमत नहीं उठायी. जूता घसीटते हुए आगे निकल गया. दस-बीस कदम पैर घसीट कर चलने के बाद जूता हाथ मे ले कर चलने को मजबूर हो गया.
पहले एक पैर के जूते को हाथ में लिया, फिर दूसरे पैर के जूते को. नंगे पैर चलने से पैर ज़ख्मी हो गया था. घर पहुंचा. हाथ में जूता देख बीवी ने कमेंट किया- ‘‘बनवा नहीं सकते थे? बनवा लेते तो क्या बिगड़ जाता.
तुमने तो मेरी बेइ•ज़ती कराने की ठान ली है. भला कोई मौक़ा हाथ से कैसे जाने दोगे?’’ इतने में मेरे कानों में सास की आवाज गूंजी, ‘‘मेरी बेटी इतना ख्याल रखती है फिर भी उसे सताते रहते हो, भला यह भी कोई बात हुई?’’
सास पर नज़र पड़ते ही मैंने उन्हें सलामी ठोकने के लिए हाथ उठाया. जूता पहले से ही हाथ में था सो हाथ के साथ वह भी ऊपर उठ गया. इसके साथ ही घर में जंग का माहौल बन गया. मेरी मां को जूता दिखाता है, कहते हुए बीवी मुझ पर बरस पड़ी. अब रात का खाना मिलना मुश्किल लग रहा है.

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