सामंती अवशेष हैं विकास में बाधक

एक नाई को इसलिए मार दिया गया कि उसे भूख लगी थी और उसने खाना खाने के बाद बाकी लोगों की दाढ़ी बनाने की मोहलत चाही थी. यह घटना अपनी अंतर्वस्तु में काफी गंभीर है. समाज में दबंगई और सामंती मानस किस कदर हावी है, यह इसका उदाहरण है. ऐसा भी नहीं है कि यह […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 26, 2015 2:26 AM
एक नाई को इसलिए मार दिया गया कि उसे भूख लगी थी और उसने खाना खाने के बाद बाकी लोगों की दाढ़ी बनाने की मोहलत चाही थी. यह घटना अपनी अंतर्वस्तु में काफी गंभीर है. समाज में दबंगई और सामंती मानस किस कदर हावी है, यह इसका उदाहरण है.
ऐसा भी नहीं है कि यह घटना किसी सुदूरवर्ती इलाके की है. पटना से कुछ किलोमीटर की दूरी पर बसे मसौढ़ी अंचल में यह हुआ. वह भी तब, जब बिहार अपनी स्थापना की 103वीं वर्षगांठ मना रहा है. यह आयोजन सामाजिक विसंगतियों के खिलाफ आवाज देता है.
सामंतवाद के विभिन्न रूपों का प्रतिकार करता है. इतिहास से वर्तमान तक की यात्र के जरूरी पाठ को याद करते हुए हम गौरवान्वित होते हैं तो इसीलिए कि बिहार ने प्राय: सकारात्मकता में भरोसा जताया है. सड़े-गले विचारों के खिलाफ यहां का समाज खड़ा हुआ है. अन्याय व हिंसा की जगह न्याय व अहिंसा का पक्ष लिया है. बिहार के विकास में सामंती अवशेषों को एक बड़ी बाधा के तौर पर चिह्न्ति किया जाता रहा है. इससे न केवल सामाजिक छवि, पहचान प्रभावित होती है बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है. कृषि उत्पादन के अंर्तसबंधों को यह सामंती अवशेष गहराई तक प्रभावित करता है.
कुछ दिनों पहले ही पटना जिले के ग्रामीण इलाके में कुछ मछुआरों की हत्या इसलिए कर दी गयी थी कि उस तालाब पर स्थानीय दबंग लोग अपना कब्जा चाहते थे. ऐसी घटनाएं और ऐसे विचार राज्य के हर हिस्से में देखने-सुनने को मिलते हैं. इन वास्तविकताओं के बीच जब हम बिहार को गढ़ने या नये बिहार की बात करते हैं तो जाहिर है कि सामंती अवशेषों को खत्म करना जरूरी कार्यभार हो जाता है. ऐसा भी नहीं है कि इसका दायरा केवल ग्रामीण अंचल ही है. जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में इसका जबरदस्त दखल है.
प्रशासनिक ढांचे में भी सामंती मूल्यों का प्रभाव देखा जाता रहा है. गरीबों की हत्याओं के आरोपियों के खिलाफ पुलिस को पर्याप्त साक्ष्य क्यों नहीं मिल पाता? प्रशासनिक व्यवस्था अपनी जवाबदेही से कैसे बच सकती है पर व्यवहार में देखा जाता है कि चीजें उलटी दिशा में जा रही हैं. इस धारा को सामाजिक चेतना के बल पर ही पलटना मुमकिन होगा. तभी नया बिहार बनेगा.

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