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पाक का दुस्साहस और हमारी दुविधा

* नियंत्रण रेखा पर हमला जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में नियंत्रण-रेखा पर पाकिस्तानी सेना ने एक बार फिर से संघर्ष विराम का उल्लंघन किया है. पुंछ सेक्टर में ही पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा पांच भारतीय जवानों को मौत के घाट उतारने की घटना के चंद दिनों के भीतर की गयी यह कार्रवाई पाकिस्तान के दुस्साहस का […]

* नियंत्रण रेखा पर हमला

जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में नियंत्रण-रेखा पर पाकिस्तानी सेना ने एक बार फिर से संघर्ष विराम का उल्लंघन किया है. पुंछ सेक्टर में ही पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा पांच भारतीय जवानों को मौत के घाट उतारने की घटना के चंद दिनों के भीतर की गयी यह कार्रवाई पाकिस्तान के दुस्साहस का सबूत है. इस हमले में पाक फौज की तरफ से सात घंटों तक फायरिंग हुई, जिसमें करीब सात हजार राउंड भारी गोलीबारी हुई. यह भारत को भड़काने वाली कार्रवाई है और इस बात का संकेत भी कि भारत-पाक संबंधों को सुधारने की राह कितनी मुश्किल है.

पांच जवानों की शहादत के बाद देश और संसद में उमड़ते रोष के बीच रक्षामंत्री एके एंटनी ने अपने शुरुआती बयान के कच्चेपन को दुरुस्त करते हुए पाकिस्तानी हकूमत को कड़ा संदेश दिया था. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की तरफ से मेल-मिलाप की भाषा में आया उत्तर यह जाहिर कर रहा था कि उन्होंने एंटनी के बयान को हल्के में नहीं लिया है. लेकिन, पुंछ की नयी घटना नवाज शरीफ की मेल-मिलाप की घोषित मंशा के अनुकूल नहीं कही जा सकती.

फिलहाल, भारत की सरकार के सामने यक्ष-प्रश्न यह है कि वह पाकिस्तानी फौज के इस दुस्साहस का क्या अर्थ निकाले और इसका माकूल जवाब किस तरह दे? क्या यह मान लिया जाये कि पाकिस्तानी सेना वहां की लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गयी सरकार के नियंत्रण में नहीं है? ऐसा मानना भारत के लिए विचित्र दुविधा की स्थिति खड़ी कर देगा, क्योंकि तब पाक सरकार के साथ कोई भी बातचीत बेमानी हो जायेगी.

पाकिस्तान के सामने यह कहने का विकल्प हमेशा बना हुआ है कि उसकी जमीन पर सक्रिय मुजाहिद न तो सेना के वश में हैं, न ही संसद के. पांच भारतीय जवानों की शहादत के वक्त, मुंबई हमले और कारगिल युद्ध के वक्त भी पाकिस्तान ने अपने बचाव में यही कहा था. पुंछ में हुई नयी घटना के बाद भारत यह निष्कर्ष निकालने के लिए प्रेरित हो सकता है कि पाकिस्तान की नयी सरकार सेना की शह पर कश्मीर में आतंकियों को भेजने और वहां अशांति भड़काने की कोशिश को फिर से तेज कर रही है.

तो क्या पाकिस्तान से वार्ता को बंद कर दिया जाये? यह पाकिस्तान में बैठे भारत-विरोधी तत्वों को और मजबूती देनेवाला कदम साबित हो सकता है. ऐसे में बेहतर यही है कि एक तरफ नवाज शरीफ के साथ वार्ता की तैयारियां हों, तो दूसरी तरफ नियंत्रण-रेखा के पास भारतीय सेना की चौकसी बढ़ी रहे ताकि गले लगाने और ठीक उसी वक्त पीठ पर चाकू चलाने की पाकिस्तानी हुकूमत की नीति का जवाब उसी की शैली में दिया जा सके.

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