* खास पत्र
।। बिनीता वर्मा ।।
(बड़ा निमडीह, चाईबासा)
सरकारी स्कूलों में मध्याह्न् भोजन की व्यवस्था करके सरकार ने बहुत सारे गरीब–पिछड़े वर्गो के बच्चों को स्कूल की ओर खींचा है, लेकिन आज भी इस योजना तथा इसकी व्यवस्था को लेकर आम जनता पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं हो पायी है. कारण स्पष्ट है, आये दिन हो रही घटनाओं में कितने मासूम बच्चों की जान चली गयी. कभी भोजन में मृत छिपकली पायी जाती है, तो कभी तेल की जगह कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाता है.
ऐसी अनेक लापरवाही भरी घटनाओं की वजह से कितने मासूम बच्चों की जिंदगी दावं पर लगी है. यह योजना कहीं न कहीं बच्चों के भविष्य के लिए भी खतरा उत्पन्न कर सकती है. सरकार को इस व्यवस्था के निर्णय में कुछ बदलाव अवश्य लाना चाहिए. अगर स्कूलों में भोजन बनाना संभव नहीं हो पा रहा है, तो अनाजों का ही वितरण कराया जाये. इससे बच्चों की जिंदगी तो बच जायेगी.
एक प्रश्न और उठता है कि क्या इन सरकारी स्कूलों का कोई भविष्य भी है? यह तो तय है कि बच्चे वहां पढ़ाई से ज्यादा खाना मिलने की वजह से जाते हैं, क्योंकि पढ़ाई के नाम पर वहां कुछ भी नहीं है. जितने भी शिक्षक वहां नियुक्त किये जाते हैं, उनमें से एक या दो ही नियमित रूप से विद्यालय आया करते हैं, बाकी तो सिर्फ तनख्वाह उठाने के लिए ही होते हैं.
अगर सरकार सचमुच बच्चों का उज्जवल भविष्य चाहती है, तो वहां की पढ़ाई व्यवस्था ठीक कराये, जिससे छात्रों के मन में यह बात न आये कि हम लोगों ने सरकारी स्कूल में पढ़ कर अपनी शिक्षा संबंधी नींव कमजोर कर ली है. अगर बड़े होकर इन छात्रों के पास अच्छे प्रतिशत और डिग्रियां नहीं होंगी, तो उन्हें कौन नौकरी देगा? फिर से बेरोजगारों की सूची में एक नाम और बढ़ जायेगा.