हमारे देश में गरीब और गरीबी के बनते–बिगड़ते और बदलते पैमाने पर तकरीबन हर दशक में सत्ता के गलियारों के बीच चर्चा होती रही है. सरकार द्वारा गठित समितियां सरकारी नफे –नुकसान के आधार पर इसका विश्लेषण करती हैं. लेकिन किसी का ध्यान शायद ही इस बात पर जाता हो कि उत्पादन और उपभोग के बीच गरीब कितना पिस रहा है और उत्पादन बढ़ाने के लिए इस धरती पर कितना बोझ बढ़ रहा है.
एक ओर कम लागत में उत्पादन बढ़ाने के लिए मजदूरों को उनकी मेहनत के एवज में कम कीमत दी जा रही है, वहीं दूसरी ओर तरह–तरह से प्रचार कर उपभोग भी बढ़ाया जा रहा है. अत: बढ़ती कीमतों से महंगाई बढ़ती है. ऐसे में गरीब दो पाटों के बीच पिस रहा है. यही स्थिति हमारी धरती माता के साथ भी है.
एक ओर जहां अधिक उत्पादन के लिए इसका बड़े पैमाने पर दोहन हो रहा है, वहीं दूसरी ओर अत्यधिक उपभोग से बड़े पैमाने पर कचरा भी पैदा किया जा रहा है. आज सारी दुनिया को चाहिए कि उपभोग का प्रचार–प्रसार बंद कर दे. इससे उत्पादन का बोझ स्वत: कम होगा और गरीब की आवश्यकता भी सीमित हो जायेगी और वह खुश रहेगा.
।। मोहन राम ।।
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