पृथक तेलंगाना राज्य की मांग एक बार फिर उठ चुकी है. सही मायनों में देखा जाये तो राज्यों के गठन का मामला वास्तव में राज्यों के गठन का नहीं रहा है. यह मुद्दा राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और व्यक्तिगत स्वार्थो का बन गया है. सबको अपना-अपना हिस्सा चाहिए.
एक दिन देश का हरेक नागरिक सड़क पर होगा, अपने हिस्से के लिए. रोटी, कपड़ा, मकान और नौकरी से पहले उनकी मांग होगी अपने लिए एक अलग देश, एक अलग राज्य की. एक राज्य के लिए करोड़ों लोग सड़क पर उतर आये हैं. हो-हल्ला मचा रहे हैं, मार-काट तक को तैयार हैं. लेकिन महंगाई को लेकर कोई बवाल नहीं है. सरकारी स्कूलों में मास्टर नहीं आते, उसे लेकर क्रोध नहीं है.
हर रोज महिलाओं के साथ छेड़खानी होती है, गांव-गांव में बलात्कार होते हैं, उसे लेकर कोई आवाज उठानेवाला नहीं है. कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं, उसे ले कर कोई बोलनेवाला नहीं है. नौकरी के लिए पढ़े-लिखे लोग तरस रहे हैं, पर सरकार से कोई पूछनेवाला नहीं है. लेकिन राज्य न मिला, तो जान देने और लेने को भी तैयार है. सलाम है जनता की इस सोच को. ऐसे देश का नाम भारत ही हो सकता है.
।। शैलेश कुमार ।।
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