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दीर्घकालिक समाधान बने मनरेगा

* मनेरगा में मजदूरी बढ़ी बिहार में बीते मंगलवार से मनरेगा के तहत दी जानेवाली मजदूरी बढ़ा कर 162 रुपये कर दी गयी है. केंद्र 138 रुपये ही मजदूरी देता है. अपनी तरफ से राज्य सरकार 24 रुपये देगी. इसके लिए राज्य को 500 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने होंगे. अच्छा होता, यह बढ़ोतरी केंद्र […]

* मनेरगा में मजदूरी बढ़ी

बिहार में बीते मंगलवार से मनरेगा के तहत दी जानेवाली मजदूरी बढ़ा कर 162 रुपये कर दी गयी है. केंद्र 138 रुपये ही मजदूरी देता है. अपनी तरफ से राज्य सरकार 24 रुपये देगी. इसके लिए राज्य को 500 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने होंगे. अच्छा होता, यह बढ़ोतरी केंद्र सरकार करती, तो यह अतिरिक्त राशि गरीबों की अन्य योजनाओं के काम आती.

राज्य सरकार की इस पहल से ग्रामीण गरीबों को अवश्य ही लाभ होगा. हालांकि, घोषणा अगर दो महीने पहले की गयी होती, तो शायद ज्यादा लाभ होता, क्योंकि गेहूं की कटनी के बाद गांवों में रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं. तब भी, बरसात के बाद गरीबों के लिए यह बड़ा संबल साबित होगा.

सरकार की यह घोषणा मनरेगा के उद्देश्यों के साथ ही अपनी दिशा न्याय के साथ विकास के अनुकूल है. दोनों का उद्देश्य इस बात में निहित है कि ग्रामीण समाज के सबसे संवेदनशील हिस्से को सामाजिक आर्थिक सुरक्षा प्रदान की जाये. इस मकसद के लिए मनरेगा देश की अब तक की सबसे बड़ी योजना है. इस पर केंद्र के साथ ही राज्य सरकार भी बड़ी धनराशि खर्च करती है, लेकिन अब तक इसका अपेक्षित परिणाम देखने को नहीं मिला.

मनरेगा कानून 2005 में ही बना, इस लिहाज से बिहार जैसे पिछड़े प्रदेश को अवश्य ही एक क्षण रुक कर मूल्यांकन करना चाहिए कि आठ साल में अगर इसका अधिकतम लाभ नहीं उठाया जा सका है, तो उसकी वजहें क्या हैं. योजना के लक्ष्य में इस बात को काफी महत्व दिया गया है कि इसके जरिये ऐसे कार्य किये जाएं, जिससे आजीविका के स्थायी साधन विकसित हों, बाढ़ सुखाड़ की स्थितियों से निबटने के उपाय किये जायें. इस कसौटी पर देखें, तो बहुत कुछ किया जाना बाकी है.

ऐसा करने में पंचायतों की विशेष भूमिका होती है, पर ये संस्थाएं इस कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं. रहरह कर फर्जी जॉब कार्ड बनाये जाने की शिकायतें मिलती रहती हैं. इसमें पंचायती संस्थाओं की मिलीभगत को लेकर भी सवाल उठाये जाते रहे हैं. मनरेगा का अधिकतम लाभ गरीबों को दिलाने के लिए सरकारी मशीनरी को दुरुस्त करने के अलावा गैर सरकारी संगठनों खास कर आरटीआइ कार्यकर्ताओं को सुरक्षा देते हुए उन्हें प्रोत्साहित करना होगा.

देश में बिहार मॉडल की चर्चा होती रहती है. अगर मनरेगा को राज्य में प्राय: आनेवाली प्राकृतिक आपदाओं से निबटने, गरीबी उन्मूलन और आजीविका के स्थायी साधन विकसित करने के लिए औजार बनाया जा सका, तो यह मॉडल अधिक मानवीय हो सकेगा, जिसकी देश को सबसे ज्यादा जरूरत है.

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