।। मुहम्मद असलम जिया ।।
(पांकी, पलामू)
सारे विधि-विधान ताक पर रख कर मानव रक्तपिपासु बन गया. ऐसी स्थिति में देर-सवेर सबको एक ऐसी ईश्वरीय सत्ता की शरण लेना पड़ती है, जो हर पल हमारे कर्मो को चिह्न्ति कर रही है तथा उसका फलाफल भी देगी. जो इनके दुखों और समस्याओं का समाधान करेगा. यदि इस ईश्वरीय शक्ति की सत्ता की अवधारणा हरेक बच्चे के मन मस्तिष्क में बैठायी जाये, तो इन अव्यवस्थाओं पर अंकुश स्वत: लग जायेगा.
इन्हीं बातों को उर्दू शायर अल्लामा इकबाल ने भी कहा था कि जब हो दीन (धर्म) सियासत (राजनीति) से जुदा (अलग) तो रह जाती है चंगेजी (बर्बरता). ऐसी स्थिति में धर्म या धार्मिक ग्रंथों का स्कूल-कॉलेजों के पाठय़क्रम में सम्मिलित करना राष्ट्रहित तथा समाज हित में है. लेकिन मध्यप्रदेश की सरकार ने भगवद्गीता को पाठय़क्रम में शामिल कर वोट की राजनीति करना चाहती है.
जबकि कांग्रेस तथा अन्य दल इसका विरोध कर दूसरे धर्मावलंबियों को उकसाने का काम कर रहे हैं. दरअसल, इस कदम से अन्य धर्मावलंबियों को भी उनकी मातृभाषा के पाठय़क्रमों में अपनी धार्मिक पुस्तकों के अंशों या उद्धरणों को शामिल करना आसान हो जायेगा. यह एक सकारात्मक पहल है, बशर्ते कि इसमें राजनीति न हो.