बिहार के छपरा में 22 बच्चों की मौत ने देश की सबसे महत्वाकांक्षी मिड-डे-मील योजना के ऊपर कई सवाल खड़े कर दिये हैं. आखिर इतनी बड़ी योजना की देखरेख के लिए केंद्र सरकार या राज्य सरकार ने किस प्रकार अनुश्रवण समिति का गठन किया है कि बच्चों को खाने की थाली की जगह मौत की थाली परोसी गयी.
आयुक्त एवं पुलिस उपमहानिरीक्षक की संयुक्त जांच में भी लापरवाही की बात स्पष्ट हुई है. इसके लिए सीधे तौर पर विद्यालय के प्राचार्य एवं प्रबंधन समिति के अध्यक्ष को दोषी ठहरा कर सरकार अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकती.
इस घटना के लिए जिम्मेवारी तय होनी चाहिए, ताकि इस तरह की घटना का शिकार फिर कभी मासूम बच्चों को न होना पड़े. सवाल सिर्फ छपरा के किसी एक विद्यालय का ही नहीं, बल्कि पूरे देश का है. घटना के बाद जब एक निजी चैनल द्वारा देश के विभिन्न राज्यों के विद्यालयों की स्थिति की पड़ताल की गयी, तो यह पता चला कि इस भारी-भरकम योजना की वास्तविकता कुछ और ही है, कहीं मेनू के अनुसार भोजन नहीं दिया जा रहा है, तो कहीं रसोईघर का निर्माण तक नहीं हुआ है. अब तो सरकार चेते!
।। सरोज कुमार ।।
(चतरा)