।। प्रो हरि देसाई ।।
(गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार)
– आनेवाले दिनों में नरेंद्र मोदी के सामने जो भी नयी आपदाएं मुखर होंगी, मोदी अपनी विशेष कुशलता से उनको अवसर में परिवर्तित करने की कोशिश करते रहेंगे. –
रिव्यू पिटीशन को भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया था. मोदी जस्टिस मेहता को लोकायुक्त नहीं बनाना चाहते और अब सुप्रीम कोर्ट में उनका आखिरी दावं भी खाली गया है. अब सवाल यह है कि आजकल विदेश दौरे पर गये हुए जस्टिस मेहता क्या गुजरात सरकार की इच्छा के विपरीत स्वदेश लौट कर लोकायुक्त का कार्यभार ग्रहण करेंगे? संभावना जतायी जा रही है कि अब जस्टिस मेहता लोकायुक्त का पद नहीं स्वीकार करेंगे.
पिछले एक दशक से गुजरात में लोकायुक्त का पद खाली है. इस बीच मोदी शासन ने गुजरात विधानसभा में नया लोकायुक्त विधेयक पारित करा कर प्रावधान कर दिया कि राज्य सरकार पर निगरानी रखने वाले इस वाचडॉग की नियुक्ति में राज्यपाल की मुख्य भूमिका न रहे. गुजरात लोकायुक्त आयोग विधेयक-2013 को विधानसभा में पारित करा कर वैसे भी ‘टूथलेस’ लोकायुक्त कानून-1986 के कुछ प्रावधान बदल दिये गये हैं.
हालांकि गुजरात विधानसभा ने इस विधेयक को पारित कर दिया है, पर वह अभी तक राज्यपाल की मुहर के लिए रुका है. मोदी की इच्छानुसार नये लोकायुक्त विधेयक में लोकायुक्त के चयन की प्रक्रिया में राज्यपाल एवं राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका समाप्त कर केवल मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, संबंधित मंत्री एवं विपक्ष के नेता को ही चयन समिति में रखने का प्रावधान है.
जस्टिस मेहता 75 वर्ष के हो चुके हैं. विधानसभा में पारित लोकायुक्त विधेयक-2013 में लोकायुक्त की सेवानिवृत्ति आयु 72 है. उम्मीद है, जस्टिस मेहता नैतिक दृष्टि से भी इस पद से इनकार कर देंगे.
वैसे भी राज्य हाइ कोर्ट ने लंबे कानूनी विवाद के बाद जब जस्टिस मेहता की नियुक्ति को उचित करार दिया गया था, तब मेहता कार्यभार स्वीकार सकते थे. किंतु उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जाने की सरकार की मंशा को देख प्रतीक्षा करना ठीक समझा. वैसे भी मोदी अपने सूत्रों के माध्यम से जस्टिस मेहता को कार्यभार ग्रहण नहीं करने हेतु मनाते रहे हैं.
मोदी अब राष्ट्रीय राजनीति की ओर चल पड़े हैं. वे चाहते होंगे पिछले दशक के उनके शासनकाल के दौरान महालेखा परीक्षक (कैग) की रपटों की तरह लोकायुक्त कोई नया बखेड़ा न खड़ा कर दें. गुजरात कांग्रेस एवं राज्यपाल डॉ कमला बेनीवाल के लिए जस्टिस मेहता का संभावित निर्णय दुखकर जरूर होगा, किंतु आपदा को अवसर में बदलने वाले मोदी के लिए तो जस्टिस मेहता शुभ संकेत दे रहे हैं.
पिछले दिनों राज्य में विविध स्पेशल इन्वेस्टमेंट रीजन (एसआइआर) के लिए किसानों से जमीन अधिग्रहण के प्रयासों से आंदोलन का माहौल बना था. यदि गुजरात के किसान मारुति प्रकल्प जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं के लिए अपनी जमीन देने से इनकार कर दें, तो स्वाभाविक है मोदी के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी. संघ के नेता पूर्व भाजपाई विधायक डॉ कनुभाई कलसरिया के नेतृत्व में किसान गांधीनगर तक आ धमके. पुलिसिया कार्रवाई में मीडिया में मोदी सरकार की किरकिरी होने लगी थी.
आमतौर पर मोदी आंदोलनकारियों के साथ उतने विनम्र नहीं होते, जितने बहुचराजी–मांडल क्षेत्र के किसानों के प्रतिनिधियों के साथ अपने नवनिर्मित मुख्यालय स्वर्णिम संकुल-1 में दिखे. मोदी ने तो यहां तक कह दिया कि यदि 44 गांव के किसान नहीं चाहते हैं तो पूरी योजना रद्द की जायेगी. ‘किंतु कल आप ही आयेंगे कहने के लिए कि आपको योजना चाहिए’. आंदोलनकारियों को मोदी ने आश्वस्त किया.
मंत्रिपरिषद के चार सदस्य नितिन पटेल, आनंदीबहन पटेल, सौरभ पटेल एवं भूपेंद्र सिंह चुड़ासमा के साथ किसान संघ के कुछेक अधिकारी एवं 44 गांव के किसानों के प्रतिनिधियों की कमेटी अगस्त 2013 में जो रपट देगी, उसी पर राज्य सरकार निर्णय लेगी.
वैसे भी केंद्र सरकार की कथित टैक्स नीति के कारण गुजरात सहित पूरे देश में स्पेशल इकोनॉमिक जोन (सेज) की योजना फ्लॅप रही. दिल्ली–मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (डीएमआइसी) के तहत गुजरात औद्योगिक विकास का अवसर खोना नहीं चाहेगा. वाइब्रेंट गुजरात उत्सवों से विश्व फलक पर मोदी की मार्केटिंग हुई. अब गुजरात का विकास मॉडल उन्हें पीएम की दौड़ में बढ़त दिला सकता है. ऐसे में मोदी किसानों के विरोध के कारण औद्योगिक निवेश की योजनाओं को विफल नहीं होने देंगे.
गुजरात भाजपा एवं राज्य सरकार का मोदी केंद्रित होना सर्वविदित है. वे राष्ट्रीय राजनीति में व्यस्तताओं की वजह से मोदी गुजरात को रिमोट से कितना चला पायेंगे, इस संदर्भ में भी प्रश्न उठने लगे हैं. संभवत: वहां उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति हो. गुजरात में पिछली सरकारों में एक या दो उपमुख्यमंत्री रहे हैं, किंतु मोदी किसे अपना अनुगामी घोषित करेंगे? संभावित सूची में मोदी सरकार के नंबर दो नितिन पटेल, मोदी की पिछले दो दशक से निष्ठावान मानी जानेवाली आनंदीबहन एवं सौरभ पटेल के नाम आते हैं. ये सभी मोदीनिष्ठ हैं और मोदी संपूर्ण व्यक्तिगत निष्ठा के आग्रही हैं.
आनंदीबहन पटेल मोदीनिष्ठ रही हैं. अब 75 की हो चुकीं आनंदीबहन की बेटी अनार पटेल सक्रिय राजनीति में पदार्पण कर सकती हैं. मोदी और कॉरपोरेट विश्व के बीच सेतु रहे सौरभ पटेल निष्ठा प्रदर्शन में सबसे आगे आ सकते हैं, किंतु गुजरात मंत्रिपरिषद में मोदी के बाद रिमोट यदि किसी का चलता है तो वह आनंदीबहन का ही है.
सौरभ पटेल रिलायंस ग्रुप के संस्थापक धीरूभाई अंबानी के भाई के दामाद हैं और कॉरपोरेट जगत में प्रभाव रखते हैं. पीएम पद की रेस में मोदी को उद्योग घरानों का सहयोग आवश्यक होगा. संघ के प्रचारक एवं भाजपा के संगठन मंत्री के नाते गुजरात सहित पूरे देश के विभिन्न प्रांतों के कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवकों एवं उद्योग जगत समेत विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट महानुभावों से स्थापित संपर्क मोदी के लिए मजबूत पूंजी साबित हो सकती है.
‘हिंदू राष्ट्रवादी’ की छवि के साथ ‘सर्वसमावेशी छवि’ उभारने में भी उपरोक्त संपर्क और मीडिया मोदी की सहायता कर सकता हैं. मोदी एक साथ ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ एवं ‘अल्पसंख्यकों के हमदर्द’ भी बन सकते हैं. आनेवाले दिनों में उनके सामने जो भी नयी आपदाएं मुखर होंगी, मोदी अपनी विशेष कुशलता से उनको अवसर में परिवर्तित करने की कोशिश करते रहेंगे. आखिर लक्ष्य प्रधानमंत्री पद हासिल करना जो है.