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तार की विदाई उर्फ कारो पौष मास कारो सर्वनाश

।।लोकनाथ तिवारी।।प्रभात खबर, रांचीकोई मर गया और किसी को खेल सूझ रहा है. बांग्ला की एक कहावत याद आ रही है– कारो पौष मास, कारो सर्वनाश. यानी किसी का सब कुछ नष्ट हो गया और कोई आनंद मना रहा है. पिछले दिनों 162 वर्षीय अपने टेलीग्राम (तार) बाबा ने आखिरी सांस ली. विडंबना देखिए, लोगों […]

।।लोकनाथ तिवारी।।
प्रभात खबर, रांची
कोई मर गया और किसी को खेल सूझ रहा है. बांग्ला की एक कहावत याद रही हैकारो पौष मास, कारो सर्वनाश. यानी किसी का सब कुछ नष्ट हो गया और कोई आनंद मना रहा है. पिछले दिनों 162 वर्षीय अपने टेलीग्राम (तार) बाबा ने आखिरी सांस ली. विडंबना देखिए, लोगों ने आखिरी घड़ी में उनका मजाक बना कर रख दिया. कोई अपने प्रियजनों को तार भेज कर इस दिन को खास बनाना चाहता था तो कोई खुद को ही तार भेज रहा था. कुछ लोग चाटुकारिता रूपी तैलीय अस्त्र को और पैना करने के लिए अपने बॉस को प्रेम संदेशभेज कर भविष्य संवारने की जुगत में जुट गये थे. ऐसे में राजनीतिक लोग ही क्यों पीछे रहें! कांग्रेसियों ने अपने युवराज को ही अंतिम तार भेज डाला.


देखादेखी
पुण्य और देखादेखी पाप. डाकघर में लाइन देख अपने काका भी वहां पहुंच गये थे. पता चला कि तार अब इतिहास बननेवाला है. काका पहले तो थोड़ी देर के लिए मायूस हुए. फिर तार से जुड़ी स्मृतियों का स्मरण हुआ, तो रोमरोम सिहर उठा. बात तब की है, जब काका किशोरावस्था से जवानी में पदार्पण करने वाले थे. उन्हीं दिनों शहर से एक तार आया. गांव के पंडी जी (पंडित) के दरवाजे पर डाकमुंशी ने बताया कि रामखेलावन के भइया का कलकत्ता से तार आया है. बस जंगल की आग की तरह यह खबर काका के घर तक पहुंची और रोवनपीटन मच गया. सभी ताऊ के अनिष्ट की आशंका को भांप कर कांप गये थे. पंडी जी के दुआर पर तार को खोला गया, लेकिन डकमुंशी या वहां उपस्थित कोई मनई इसके मजमून को नहीं बता पाया. हां, एक बात स्पष्ट हो गयी थी कि रामखेलावन के भइया से संबंधित जानकारी है.

साइकिल दौड़ा कर बगल के गांव उपधिया टोला से मिसिर जी को बुलाया गया तब जाकर पता चला कि खुशी की खबर है. कलकत्ता में पढ़ने गये रामचरित्तर की नौकरी पक्की हो गयी थी. उसी के सिलसिले में तार से जानकारी दी गयी थी. बस क्या था, गम का माहौल खुशी में परिवर्तित हो गया. रामखेलावन काका की माई ने ब्रह्मा बाबा को बधाव बजवाने की तैयारी शुरू कर दी. सभी का गुड़ से मुंह मीठा करवाया गया. डाकमुंशी को दो रुपये देकर विदा किया गया.


इस
तरह की कई घटनाएं काका के जेहन में मंडराने लगीं. तार के परलोक गमन की खबर ने कई प्रियजनों के परलोकवास की यादें ताजा कर दीं. उनको स्वर्गवासी काकी की याद गयी, जो चिट्टी में लिखा करती थीं कि इसे तार समझ कर चले आना. खैर अब तो चिट्ठी भी इतिहास बनती जा रही है. डाकघर में युवा पीढ़ी के बीच तार की अंतिम घड़ी को यादगार बनाने की अफरातफरी से काका को लगा, जैसे एक सदी का अंत हो रहा हो और हम इसे सहर्ष विदा कर रहे हों.

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