शांतिभूमि के नाम से विख्यात बोधगया में जो बम विस्फोट हुए हैं, उन्हें केवल डराने का षड्यंत्र मानना गलत होगा. आतंकवादियों ने आज तक देश के बहुसंख्यक समुदाय के ही मंदिरों को अपना निशाना बनाया था, लेकिन अब वे अल्पसंख्यक बौद्धों के मंदिरों में भी पहुंच गये हैं. लेकिन इस खतरे की घंटी तो पुणे स्थित जर्मन बेकरी में बम विस्फोट के समय ही बज गयी थी. उस धमाके के सिलसिले में जो अपराधी पकड़े गये थे, उनमें से एक ने हैदराबाद और बोधगया में होनेवाले धमाकों के बारे में पुलिस को जानकारी दी थी.
दुर्भाग्य की बात तो यह है कि खुफिया एजेंसियों द्वारा आगाह किये जाने के बावजूद न तो केंद्र सरकार ने सुरक्षा के लिए कोई कदम उठाया और न ही राज्य सरकारों ने चौकसी के उपाय किये. नतीजतन दोनों शहरों में हादसे हुए. यह ईश्वर की कृपा है कि बोधगया के बम विस्फोटों में एक भी जान नहीं गयी. अब राजनीतिज्ञों द्वारा आरोप-प्रत्यारोपों के धमाके शुरू हो गये हैं. इस बीच मुंबई पर फिर से हमला करने की धमकी आतंकवादियों ने दी है. क्या भविष्य में सामान्य लोग सरकार से अपनी सुरक्षा की उम्मीद रख सकते हैं?
।। अनिल तोरणे ।।
(तलेगांव, पुणे)