हम आपके लायक नहीं थे डॉक्टर

अंधश्रद्धा एवं टोना-टोटका करनेवालों के खिलाफ ठोस मुहिम चलानेवाले प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त, 2013 को हत्या कर दी गयी. उनके हत्यारे अभी पकड़े नहीं जा सके हैं. दाभोलकर की पहली पुण्यतिथि पर यह विशेष लेख. अंधश्रद्घा के खिलाफ संघर्ष में शहीद हुए डॉ नरेंद्र दाभोलकर की हत्या को आज एक […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 20, 2014 1:08 AM

अंधश्रद्धा एवं टोना-टोटका करनेवालों के खिलाफ ठोस मुहिम चलानेवाले प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त, 2013 को हत्या कर दी गयी. उनके हत्यारे अभी पकड़े नहीं जा सके हैं. दाभोलकर की पहली पुण्यतिथि पर यह विशेष लेख.

अंधश्रद्घा के खिलाफ संघर्ष में शहीद हुए डॉ नरेंद्र दाभोलकर की हत्या को आज एक साल पूरा हो गया है. अंधश्रद्घा निमरूलन समिति के बैनर तले महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं गोवा में सक्रिय रहे डॉ दाभोलकर- जिन्होंने कई ढोंगी बाबाओं का पर्दाफाश किया था और ‘अंधश्रद्घा एवं टोना टोटका करनेवालों के खिलाफ कार्रवाई’ को लेकर बाकायदा एक विधेयक पारित कराने के लिए व्यापक मुहिम चलायी थी- के हत्यारे अब तक पुलिस की पकड़ में नहीं आ सके हैं. ‘मामले के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व’ को देखते हुए उच्च अदालत ने इसे सीबीआइ को सौंप दिया है.

लेकिन, इधर बीच यह तथ्य भी सामने आया है कि उनके हत्यारों को पकड़ने के लिए पुलिस ने काला जादू और झाड़-फूंक करनेवालों का इस्तेमाल किया था. एक पत्रकार ने अपने स्टिंग ऑपरेशन के जरिये कुछ समय पहले देश की एक अग्रणी पत्रिका में इस बात का प्रमाण पेश किया था कि किस तरह तत्कालीन पुलिस कमिश्नर ने स्वयंभू अध्यात्मवादियों की मदद लेकर प्लांचेट के जरिये दाभोलकर की ‘आत्मा’ से ‘संवाद’ कायम करने की कोशिश की थी, ताकि मामले में कुछ सुराग मिले. यह डॉ दाभोलकर एवं उनके संगठन की व्यापक मुहिम का ही नतीजा था कि महाराष्ट्र विधानसभा को जादू-टोना के खिलाफ विधेयक पास करना पड़ा था. ऐसा बिल पास करनेवाला महाराष्ट्र पहला राज्य बना था. दूसरी ओर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी उन्हीं धाराओं का उल्लंघन कर दाभोलकर के कातिलों को ढूंढ रहे थे.

अभी ज्यादा दिन नहीं हुआ जब राजस्थान सरकार ने ‘वरुण देवता को प्रसन्न करने’ और ‘राज्य की प्रगति तथा समृद्घि के लिए दैवी आशीर्वाद पाने के लिए’ राज्य में विशेष प्रार्थनाओं का आयोजन किया था. राज्य सरकार के देवस्थानम विभाग को इसके आयोजन की जिम्मेवारी दी गयी थी. इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने कैबिनेट के सहयोगियों को आदेश दिया था कि वे खुद इस पूजा में शामिल हों. जोधपुर के ओसियान मंदिर के रूद्राभिषेक में मुख्यमंत्री खुद शामिल थीं. अब छोटी कक्षाओं में अध्ययनरत छात्र भी बरसात के वैज्ञानिक कारणों के बारे में मोटी जानकारी रखता है, यह अलग बात है कि पूजा से बारिश की उम्मीद लगाये राज्यकर्ता इससे अनभिज्ञ हैं.

पिछले ही साल पेरियार रामस्वामी नायकर जैसे तर्कशील एवं नास्तिक नेताओं की कर्मभूमि रहे तमिलनाडु के मंदिरों में वरूण देवता- जिन्हें हिंदू धर्मशास्त्रों में पजर्न्य अर्थात् बरसात का देवता माना जाता है- के नाम से वैदिक मंत्रों का जाप राज्य भर फैले प्रमुख 200 मंदिरों में किया गया था. राज्य में पीने एवं सिंचाई के लिए पानी की भारी कमी के चलते इसका आयोजन किया गया था. अहम बात यह थी कि यह सब राज्य की जयललिता सरकार के आदेश के अंतर्गत हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट डिपार्टमेंट के तत्वावधान में किया गया था. ऐसी मिसालें देश के हर राज्य में तकरीबन मिल ही जायेंगी.

भारत के संविधान की धारा 51 ए मानवीयता एवं वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देने में सरकार के प्रतिबद्घ रहने की बात करती है. महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि राजस्थान या तमिलनाडु सरकार का यह कदम क्या संविधान की इस भावना के अनुरूप है? निश्चित ही नहीं! शासकीय कार्यक्रमों में किसी धर्मविशेष के कर्मकांडों का स्वीकार भारतीय संविधान के सिद्घांतों का उल्लंघन है. यहां एसआर बोम्मई मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर गौर किया जा सकता है. इसके अनुसार धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि 1- राज्य का कोई धर्म नहीं होगा. 2-राज्य सभी धर्मो से दूरी बनाये रखेगा और 3- राज्य किसी धर्म को बढ़ावा नहीं देगा और न ही राज्य की कोई धार्मिक पहचान होगी. 21वीं सदी की इस दूसरी दहाई में हम आधुनिक सनातनी कहे जा सकनेवाले भारतीय से रूबरू हैं, जो भौतिक जगत में नयी-नयी छलांगे लगाने को तैयार है, मगर मूल्यों, चिंतन के धरातल पर आज भी गुजरे जमाने से चिपका हुआ है और खुद को जगतगुरु मानने की प्रवृत्ति में भी कोई कमी नहीं देखता है.

डॉ दाभोलकर की मृत्यु के बाद ‘द हिंदू’ में लिखे अपने लेख ‘सॉरी डॉक्टर, वी डिड नॉट डिजर्व यू’(माफ कीजिये डॉक्टर, हम आपके लायक नहीं थे) में अभिनेता एवं निर्देशक अमोल पालेकर और संध्या गोखले ने एक बात कही थी, जो आज भी मौजूं जान पड़ती है-‘माफ करें डॉक्टर, हम लोगों ने आप को नाकामयाब बनाया! हम लोग लज्जित हैं कि हम आपके हत्यारों को ढूंढने में भी असफल होंगे. हम लज्जित हैं कि वर्तमान में जो कुछ हो रहा है, उसके हम बस सुस्त गवाह हैं. सॉरी डॉक्टर, हम आपके लायक नहीं थे.’

सुभाष गाताडे

सामाजिक कार्यकर्ता

subhash.gatade@gmail.com

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