प्रदूषित हवा से बचना जरूरी

डॉ नरेश त्रेहन कॉर्डियोथोरेसिक सर्जन delhi@prabhatkhabar.in सर्दियां आते ही हवा में जब नमी आने लगती है, तो वह ऊपर उठने के बजाय बैठने लगती है. अब अगर उस हवा में धूल के कण होंगे, तो जाहिर है कि वे भी हमारे आसपास ही होंगे. यही स्थिति स्मॉग पैदा कर देती है और फिर वातावरण पूरी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 15, 2019 7:59 AM
डॉ नरेश त्रेहन
कॉर्डियोथोरेसिक सर्जन
delhi@prabhatkhabar.in
सर्दियां आते ही हवा में जब नमी आने लगती है, तो वह ऊपर उठने के बजाय बैठने लगती है. अब अगर उस हवा में धूल के कण होंगे, तो जाहिर है कि वे भी हमारे आसपास ही होंगे. यही स्थिति स्मॉग पैदा कर देती है और फिर वातावरण पूरी तरह से प्रदूषित हो जाता है.
दूर-दूर तक कुछ साफ दिखायी नहीं देता, क्योंकि हवा में धूल और अन्य कई प्रकार के कण अवरोध उत्पन्न करते हैं. ठंडी हवा में धूल के कण जमा होकर वातावरण को गैस चैंबर बना देते हैं. जब धूप निकलती है, तब हवा कुछ खुश्क होती है. और हवा के खुश्क होते ही हवा ऊपर पर की ओर चली जाती है और वातावरण साफ हो जाता है. लेकिन ऐसा तभी होगा, जब सूरज की किरनें जमीन पर पड़ेंगी. अक्सर धुंध की परत इतनी ज्यादा हो जाती है कि सूरज की किरनें भी लाचार हो जाती हैं. इसलिए सर्दियों में वायु प्रदूषण ज्यादा खतरनाक होता है, जबकि यह प्रदूषण तो गर्मियों में भी होता है, लेकिन हवा में गति और खुश्की होने से नजर कम ही आता है. हवा में खतरनाक प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार कारकों के बारे में मैं नहीं बता पाऊंगा.
आज पूरे उत्तर भारत में हवा में प्रदूषण फैला हुआ है और उसमें धूल के कण बिखरे हुए हैं. ये कण बहुत खतरनाक हैं, जो सांस के रास्ते सीधे फेफड़े तक पहुंचते हैं.
ऐसे में अगर फेफड़े जरा भी अस्वस्थ होंगे, तो वे बुरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं. इसलिए सबसे पहली जरूरी चीज यह है कि हम अपने फेफड़े को स्वस्थ रखें. स्वस्थ फेफड़े आपको कई बीमारियों से बचाते हैं. फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है योग करना. योग में भी प्राणायाम- अनुलोम-विलोम, कपाल भाति और भस्त्रिका आदि जरूर करें. ध्यान रहे, ये योग घर के भीतर रहकर ही करें, बाहर पार्क आदि में कतई न जायें. इसके नियमित करने से आपके फेफड़े स्वस्थ रहेंगे. फेफड़े में सांस के रास्ते धूल कण जाकर जम जाते हैं, इसलिए फेफड़ों की सफाई बहुत जरूरी होती है. और इसके लिए प्राणायाम बेहतर उपाय है.
अस्वच्छ हवा का सबसे ज्यादा नुकसान उस आम नागरिक को होता है, जो सड़कों पर है या दिन भर घर से बाहर रहकर अपना काम-काज करता है. जो लोग कार्यालयों में या दीवारों से घिरी जगहों पर काम करते हैं, उनको ज्यादा नुकसान नहीं है, फिर भी काम पर जाते-आते उन्हें अपना ध्यान रखना पड़ेगा. आम नागरिकों को चाहिए कि जितना संभव हो सके, वे कम से कम बाहर रहें. खास तौर पर बच्चे और बुजुर्गों पर यह खासा असर करता है. एक और बात बेहद महत्वपूर्ण है कि एकदम सुबह और फिर शाम के वक्त बिल्कुल भी बाहर निकलने से बचें.
इसलिए जब भी जहां कहीं भी ऐसी स्थिति हो, तो सबसे पहले स्कूलों को बंद कर देना चाहिए और बुजुर्गों को बाहर नहीं जाने देना चाहिए. बच्चों और बुजुर्गों के फेफड़े बहुत कमजोर होते हैं और वे खतरनाक धूल कणों को झेल नहीं पाते. बच्चों को निमोनिया हो सकता है, तो बूढ़ों को अस्थमा. जिन बच्चों को शुरू से ही निमोनिया की शिकायत रहती है, उन्हें ज्यादा सावधानी की जरूरत है.
वहीं जिन लोगों को अस्थमा है या फिर फेफड़े का कोई संक्रमण है, उन्हें तो हर हाल में प्रदूषण से बचने की जरूरत है, क्योंकि प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचने से इन दोनों की बीमारियां बढ़ सकती हैं और कई दफा अनहोनी की संभावना तक पैदा कर देती हैं. इस समय देश में बच्चों में निमोनिया के मामले करीब पांच-गुना बढ़ गये हैं. इसलिए सावधानियां और जागरूकता भी इसी स्तर से बढ़ाने की जरूरत है.
धूल कणों से भरे वायु प्रदूषण से बचने की कोई दवा नहीं है, इससे बचने का सीधा उपाय है जागरूकता और सावधानियां. मैं एक डॉक्टर हूं, फिर भी यह बात बता रहा हूं कि प्रदूषण से बचने का उपाय सावधानियां ही हैं, दवाई नहीं.
बाहर जाना अगर जरूरी हो, तो पॉलूशन मास्क लगाकर ही जायें, ताकि धूल कण सांस में न जा सकें. प्रदूषित हवा में जो पार्टिकुलेट मैटर होते हैं, उससे एक तो फेफड़े पर तो असर पड़ता ही है, ब्रेन पर भी असर पड़ सकता है. हमारे ब्रेन को ऑक्सीजन की जरूरत होती है. लेकिन, अगर हवा स्वच्छ नहीं होगी, तो ब्रेन को स्वच्छ ऑक्सीजन भी नहीं मिलेगा और फिर ब्रेन पर आघात के खतरे जैसी संभावना बढ़ जायेगी. इसलिए स्वच्छ हवा जरूरी है.
बीते कई साल से यह एक ट्रेंड बन गया है कि सर्दियां आते ही हवा में प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ जाता है. लेकिन, समझ में यह नहीं आता कि आखिर सरकारें इस पर नियंत्रण के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठातीं और सर्दियां आने के पहले से ही इसके उपाय क्यों नहीं करती हैं. दूसरी बात यह है कि देश के नागरिक भी इस बात को लेकर कोई आंदोलन नहीं करते, ताकि सरकार जागे और हर स्तर पर जरूरी कदम उठाये. सुप्रीम कोर्ट तक बोल चुका है कि दिल्ली एक गैस चैंबर बन चुका है. लेकिन सरकारें कोर्ट की भी नहीं सुनतीं, ऐसा लगता है.
इसलिए जरूरी है कि जागरूकता के साथ-साथ जनता को शांतिपूर्ण आंदोलन भी करना पड़ेगा, क्योंकि स्वच्छ हवा जनता का हक है. दूषित हवा से एक तो नागरिकों का नुकसान होता है, दूसरा उसके परिवार का नुकसान होता है, फिर तीसरा वह जहां रहता है वहां यानी समुदाय का नुकसान होता है, और फिर अंत में देश का नुकसान होता है. यानी लोग बीमार होंगे, तो देश भी बीमार होगा. इसलिए सरकाराें को यह सोचना चाहिए कि प्रदूषण पर नियंत्रण करके वे अपने देश का नुकसान न होने दें.

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