।। विवेक शुक्ला ।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
एक लंबे इंतजार के बाद केंद्र सरकार ने अपने आशियाने का सपना देखने वालों के हक में एक अहम फैसला लिया है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट बिल को मंजूरी दे दी है. पर सवाल यह है कि क्या अब रियल एस्टेट की दुनिया में सब कुछ सुधर जायेगा? जाहिर है, इस सवाल का जवाब तो तभी मिल पायेगा, जब यह बिल संसद से पारित होकर कानून का रूप लेगा. फिलहाल जरूरी यह है कि लंबे-चौड़े विज्ञापनों से झांसा दे रही रियल एस्टेट कंपनियां इस बिल के कानून बनने से पहले अपने ग्राहकों के हितों पर भी गौर करें.
फिलहाल रियल एस्टेट कंपनियां घर की बुकिंग करानेवालों को तगड़ा चूना लगा रही हैं. नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन (एनसीएच) में इन कंपनियों से सताये हुए ग्राहकों की शिकायतें लगातार बढ़ती जा रही हैं. ग्राहकों की शिकायतें भांति-भांति की होती हैं, जिन्हें देख कर यही लगता है कि बिल्डर बिरादरी अपने ग्राहकों के मसलों को हल करने को लेकर गंभीर नहीं हैं.
एक अनुमान के मुताबिक, एनसीएच के पास बिल्डरों की सैकड़ों शिकायतें रोज पहुंच रही हैं. जाहिर है, अगर कंपनियों द्वारा ग्राहकों की शिकायतों को सुना जाता, तो एनसीएच के पास इतनी शिकायतें नहीं आतीं. शिकायतें कई हैं.
जैसे ग्राहकों को फ्लैट की वक्त पर डिलीवरी नहीं होना, बिल्डरों द्वारा विवादित प्लॉट बेचना, एग्रीमेंट का पालन नहीं करना आदि. एनसीएच केंद्र सरकार के उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के सहयोग से चलता है, जिसमें ग्राहक अपनी शिकायतें दर्ज करवाते हैं. यह ग्राहकों को सलाह देता है कि वे कैसे उन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करें, जिनकी सेवाओं या उत्पादों से वे नाखुश हैं. जिस तरह से रियल एस्टेट सेक्टर में गड़बड़ी व्याप्त है, उसकी रोशनी में कहा जा सकता है कि सरकार को पहले ही जागना चाहिए था.
सरकार की इस पहल से ग्राहकों के साथ-साथ समूचे सेक्टर को फायदा होगा. सेक्टर में पारदर्शिता बढ़ेगी और उन कंपनियों को भी लाभ मिलेगा, जो कानून में रहकर कारोबार करती हैं. लेकिन बिल के कई बिंदुओं पर बिल्डर ऐतराज कर रहे हैं, क्योंकि यह कानून बन जाने के बाद उनकी कई मनमानी पर अंकुश लग सकेगा. अगर बात शिकायतों की करें तो कंपनियां कह रही हैं कि बिल उनको तो कटघरे में खड़ा करता है, लेकिन उनकी समस्याओं का हल इसमें नहीं दिख रहा है.
दरअसल, इस बिल के लागू होने के बाद बिल्डर को सभी प्रोजेक्ट स्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी से रजिस्टर कराना जरूरी होगा. वहीं तय समय सीमा के भीतर बिल्डर को अपना प्रोजेक्ट पूरा करना होगा. फिलहाल बिल्डर ग्राहकों को डिलीवरी का जो समय देते हैं, उसका वे पालन नहीं ही करते हैं.
नये नियमों के मुताबिक बिल्डर को कुल डिपॉजिट की 70 फीसदी रकम अलग बैंक खाते में रखना होगी. बैंक खाते की रकम का इस्तेमाल सिर्फ उसी प्रोजेक्ट में होगा, जिसमें ग्राहकों का पैसा लगा है. सभी की मंजूरी मिलने पर ही डेवलपर प्रोजेक्ट शुरू कर सकता है. आप बिल्डर के कामकाज की पड़ताल करें तो यही पाएंगे कि ये सरकारी एजेंसियों से हरी झंडी मिलने से पहले ही अपना प्रोजेक्ट लांच कर देते हैं. बाद में इनके ग्राहक धक्के खाएं, इसकी इन्हें कोई परवाह नहीं होती.
हालांकि बिल्डरों की दलील है कि सारी परेशानी प्रोजेक्ट की मंजूरी को लेकर ही है और बिल इस बारे में कुछ नहीं कहता. बिल्डर बिरादरी के दुखी होने की एक वजह यह भी है कि बिल में कहा गया है कि जब तक प्रोजेक्ट को सभी तरह की मंजूरियां नहीं मिल जातीं, डेवलपर न तो काम शुरू कर सकेंगे और न ही ग्राहकों से पैसे ले सकेंगे. इनका कहना है विभिन्न मंजूरियां लेने में उन्हें जिस तरह की मारामारी करनी पड़ती है, इसकी जवाबदेही कौन तय करेगा. उनकी यह बात ठीक है. सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि रियल एस्टेट कंपनियों को अपने प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले धक्के न खाने पड़ें.
सबसे बड़ी बात यह है कि रियल एस्टेट रेगुलेशन बिल के तहत ग्राहकों को दिवास्वप्न दिखानेवाले विज्ञापनों पर भी रोक लगेगी. यही नहीं, तय शर्तो को पूरा नहीं करने पर बिल्डर जेल जा सकते हैं. बहरहाल, सरकारी पहल का मकसद ठीक है, लेकिन देखना यह है कि इसे लागू कैसे किया जाता है.
बिल्डर बिरादरी के कुछ शंकाओं और आशंकाओं के बीच एक बात साफ है कि अब इस सेक्टर की दिशा और दशा बदलेगी. इसका सबसे ज्यादा फायदा ग्राहकों को मिलेगा. जवाबदेही तय होगी. समय पर प्रोजेक्ट पूरे होंगे और वक्त पर ग्राहकों को घर मिल सकेंगे. उम्मीद की जानी चाहिए कि देर से ही सही, पर रियल एस्टेट सेक्टर में सुधार शुरू होने जा रहा है.