कानून लागू करने के फायदे

संतोष उत्सुक व्यंग्यकार santoshutsuk@gmail.com कानून फायदे के लिए ही बनाया जाता है. यह अलग बात है कि बनानेवाले को ज्यादा फायदा हो रहा है या जिनके लिए बनाया जा रहा है, उनको. कई बार एक बेहतर कानून को कमजोर करने के लिए एक और कानून बनाया जाता है. सूचना के अधिकार कानून का ज्यादा प्रयोग […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 17, 2019 7:25 AM
संतोष उत्सुक
व्यंग्यकार
santoshutsuk@gmail.com
कानून फायदे के लिए ही बनाया जाता है. यह अलग बात है कि बनानेवाले को ज्यादा फायदा हो रहा है या जिनके लिए बनाया जा रहा है, उनको. कई बार एक बेहतर कानून को कमजोर करने के लिए एक और कानून बनाया जाता है.
सूचना के अधिकार कानून का ज्यादा प्रयोग होने के कारण सरकार पर जनता की निगरानी बढ़ती जा रही थी यानी दूसरी पार्टी का फायदा हो रहा था, इसलिए इस फायदे को बदलने के लिए उसमें संशोधन कर दिया गया. कानून का सही लाभ उठाने के लिए इसके सख्त सुराखों में नरम पेच कस दिये जाते हैं. इस व्यावहारिक तरीके से जिनका फायदा होना होता है, उनको तो जरूर फायदा होता है.
आजकल सड़कों की हालत देख कर ठेकेदार, अफसर और नेता खुश हैं. मरम्मत के भारी एस्टिमेट बनाये जा रहे हैं. सड़क पर पड़े बेचारे गड्ढे जिन्हें बरसात ने खड्डों में तब्दील कर दिया है, उदास, लेकिन आशावान हैं.
उनकी पड़ोसी खोदी हुई सड़कें, खराब सिग्नल, अतिक्रमित फुटपाथ, टूटी लाइटें और अंधेरी सड़कें भी नवजीवन के इंतजार में हैं. उन्हें लग रहा है, नये शक्तिशाली कानून की दवाई उनके जख्मों को ठीक कर देगी. सरकार ने सही समय पर कानून लागू किया है, तभी कानून का पालन करवानेवाले वाकई खुश हैं. वे अपनी खुशी दिखा कम, छिपा ज्यादा रहे हैं.
उनके शुभचिंतक उन्हें मुबारकबाद देते हुए कह रहे हैं कि तथाकथित गिरती आर्थिक स्थिति में उनके लिए इस कानून का अवतरण एक तरह से वेतन वृद्धि जैसा ही है. इतने बड़े देश में कानून लागू करने में वक्त तो लगता ही है. लागू होने के बाद राजनीति और आपातस्थिति भी कई बार कानून तुड़वाती रहती है. चालान काटनेवालों के पास समय कहां होता है.
उत्साह में ज्यादा चालान काट दिये, तो फालतू में काम बढ़ जायेगा और इंसानियत का फायदा नहीं हो पायेगा. एक तरह से पिछले समय में एक स्कूटी पर चार-चार बैठकर सड़क पर भीड़ कम करने में सहयोग ही किया. चार हेलमेट के पैसे भी बचाये, जान की कीमत तो वैसे भी अब ज्यादा नहीं रही. कानून का पालन करवानेवाले भी तो कम हैं. क्या यह कानून, व्यक्तिगत पहचान, राजनीतिक पहुंच और दबाव जैसी राष्ट्रीय स्थितियों को खत्म कर देगा.
पैसा बहुत खराब चीज है, ड्राइविंग सेंस उगाने और लाइसेंस दिलाने में, कानून के रखवाले भी खुद को ‘इंसान’ समझकर निबटाते रहे हैं. घोड़े पालना तो ज्यादा लोगों के बस का नहीं लगता, हां गधों और खच्चरों के दिन फिर गये लगते हैं. अब लोग थोड़ी दूर जाने के लिए इनका इस्तेमाल करना शुरू करेंगे या पैदल चलेंगे. इससे पशु प्रेम बढ़ेगा, सेहत भी ठीक रहेगी.
चालान से बचने के लिए चाल-चलन तो बदलना ही पड़ेगा. अभी तक तो यही कहा जा रहा है कि कानून ईमानदारी से लागू होने पर सभी का फायदा होगा. सुना है रातों-रात दरों में उछाल आ गया है. थोड़ा निस्वार्थ होकर चालान करें, तो देश की अर्थव्यवस्था सुधारने में भी सहयोग हो सकता है.

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