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बजट से उम्मीदें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की दूसरी पारी के पहले बजट पर देशभर की निगाहें टिकी हुई हैं. इस बजट में आगामी पांच सालों की नीतिगत दिशा और प्राथमिकताओं के निर्धारण की अपेक्षा की जा रही है. उद्योग जगत से लेकर उद्यमियों, कामगारों और किसानों की उम्मीदों को पूरा करने की चुनौती वित्त मंत्री निर्मला […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 25, 2019 6:00 AM

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की दूसरी पारी के पहले बजट पर देशभर की निगाहें टिकी हुई हैं. इस बजट में आगामी पांच सालों की नीतिगत दिशा और प्राथमिकताओं के निर्धारण की अपेक्षा की जा रही है.

उद्योग जगत से लेकर उद्यमियों, कामगारों और किसानों की उम्मीदों को पूरा करने की चुनौती वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने है. मौजूदा ठहराव से अर्थव्यवस्था को निकालकर फिर से गतिशील करने के लिए आर्थिक सुधारों पर ध्यान देकर निवेश और उपभोग बढ़ाने के साथ सामाजिक क्षेत्र में सार्वजनिक खर्च में बढ़ोतरी करने पर बजट का जोर हो सकता है. इससे बेरोजगारी की मुश्किल से निपटने में बड़ी मदद मिल सकती है, जो सरकार की चिंताओं में प्रमुख है.

नीति आयोग की बैठक में प्रधानमंत्री के संबोधन तथा वित्त मंत्री के बयान से यह संकेत साफ है कि सरकार कृषि में बेहतरी के लिए ठोस पहल करेगी. किसान संगठनों और इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के सुझावों तथा बीते पांच सालों में उठाये गये कदमों के अनुभव के आधार पर कृषि संकट के समाधान के समुचित उपायों की गुंजाइश है.

ग्रामीण क्षेत्र में घटती मांग तथा कमजोर मॉनसून और जल-संकट को देखते हुए तात्कालिक और दीर्घकालिक नीतियों और कार्यक्रमों की आवश्यकता बहुत अधिक बढ़ गयी है. सरकार के पहले कार्यकाल में वित्तीय अनुशासन और पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए अनेक नीतियां लागू हुई थीं, जिनके सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं.

इस कार्यकाल में भूमि सुधार, श्रम कानूनों में बदलाव, विशेष आर्थिक क्षेत्र, औद्योगिक नीति, शोध एवं अनुसंधान में निवेश, कराधान प्रणाली को सरल बनाना, विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना जैसे मुद्दों पर सरकार को निर्णायक रवैया अपनाना चाहिए. छोटे एवं मझोले उद्योगों, इ-कॉमर्स, कौशल-विकास, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों की असीम संभावनाओं को वास्तविकता में बदलने के लिए भी बजटीय पहलकदमी की जरूरत है.

उपभोग और बचत में लगातार कमी अर्थव्यवस्था के लिए चिंताजनक है. इस कारण वृद्धि दर में कमी आ गयी है. अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति भी बहुत उत्साहवर्द्धक नहीं है. अमेरिका द्वारा अनेक भारतीय वस्तुओं पर आयात शुल्क लगाने, व्यापार युद्ध तथा बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की आपसी रार से निवेश और निर्यात प्रभावित हो रहे हैं.

हमारा व्यापार घाटा भी बढ़ रहा है. विश्व व्यापार संगठन में कृषि उत्पादों तथा इ-कॉमर्स पर विकसित देशों के अड़ियल रवैये से हमारे आर्थिक हित प्रभावित हो सकते हैं. मध्य-पूर्व में तनाव तेल की कीमतों पर असर डाल सकता है.

हालांकि, प्रधानमंत्री और नीति आयोग निर्यात बढ़ाने का आह्वान करते रहे हैं और इस दिशा में सरकार सक्रिय भी है, पर इसके परिणाम देर से ही सामने आयेंगे. ऐसे में घरेलू बाजार में मांग और उपभोग बढ़ाने तथा बड़ी युवा आबादी को उत्पादकता से जोड़ने के फौरी उपायों की दरकार है.

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