ग्लाईफोसेट पर प्रतिबंध जरूरी

डॉ अश्विनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू ashwanimahajan@rediffmail.com बीते 14 मई, 2019 को अमेरिका के ऑकलैंड की एक जूरी ने मोनसेंटो के ‘राउंडअप’ नामक खरपतवार से एक दंपत्ति को कैंसर होने के कारण कंपनी को दो अरब डाॅलर का हर्जाना देने का आदेश दिया है. मोनसेंटो पर इस प्रकार के हर्जाने का यह तीसरा मामला है. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 23, 2019 2:47 AM

डॉ अश्विनी महाजन

एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू
ashwanimahajan@rediffmail.com
बीते 14 मई, 2019 को अमेरिका के ऑकलैंड की एक जूरी ने मोनसेंटो के ‘राउंडअप’ नामक खरपतवार से एक दंपत्ति को कैंसर होने के कारण कंपनी को दो अरब डाॅलर का हर्जाना देने का आदेश दिया है. मोनसेंटो पर इस प्रकार के हर्जाने का यह तीसरा मामला है. लगातार तीन मुकदमों में न्यायालयों ने मोनसेंटो के ‘राउंडअप’ को कैंसरकारी होने के दावे को मंजूर करते हुए, पीड़ितों को भारी हर्जाना देने के आदेश सुनाये हैं.
कंपनी की मुश्किलें यहीं खत्म होनेवाली नहीं हैं. ऐसे हजारों मामले अमेरिका के कई न्यायालयों में विचाराधीन हैं. पिछले साल बेयर कंपनी ने मोनसेंटो का अधिग्रहण कर लिया था और अब मोनसेंटो कंपनी बेयर-मोनसेंटो कहलाती है.
वर्ष 2015 में डब्ल्यूएचओ की ‘इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च इन कैंसर’ (आईएआरसी) ने अपने शोध में पाया था कि ‘ग्लाईफोसेट’, जो कि ‘राउंडअप’ नामक खरपतवार नाशक का एक अहम हिस्सा है, नॉन हाडकिंन लाईफोना (कैंसर) का जोखिम बढ़ाता है और साथ ही डीएनए एवं गुणसूत्र को भी क्षति पहुंचाता है.
ग्यारह देशों के 17 विशेषज्ञ 3-10 मार्च, 2015 को डब्ल्यूएचओ के तत्वाधान में मिले थे और यह निष्कर्ष दिया था. आईएआरसी का निष्कर्ष था कि ग्लाईफोसेट और उसके योगों का जीन विषाक्तता का सबूत है. इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए आईएनआरसी ने एक हजार अध्ययनों की समीक्षा की.
एक तरफ जहां राउंडअप के उपयोग के कारण कैंसर होने के मामले न केवल प्रकाश में आ रहे हैं, बल्कि न्यायालयों ने भी इस बाबत पीड़ितों को राहत देने का काम किया है. आज दुनियाभर में कैंसर व्यापक रूप से बढ़ता जा रहा है. एक ताजा शोध के अनुसार ग्लाईफोसेट के कारण कैंसर होने का खतरा 41 प्रतिशत बढ़ जाता है, वहीं दुनियाभर में कैंसर का बढ़ना राउंडअप के कहर को प्रमाणित करता है.
जहां दुनियाभर में लोग इससे प्रभावित हैं, वहीं ग्लाईफोसेट निर्माता कंपनियां यह मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं. हर बार न्यायालय द्वारा दोषी ठहराये जाने के बावजूद वे अपील-दर-अपील करने में पीछे नहीं हटतीं. कारण यह है कि उनका सारा कारोबार ही इन खरपतवार नाशकों पर आधारित जीएम फसलों पर टिका है.
दुनिया में 1974 से लेकर 2014 तक कुल 8.6 अरब किलो ग्लाईफोसेट का उपयोग हो चुका था. 1995 में जहां ग्लाईफोसेट का उपयोग मात्र 510 लाख किलो था, 2014 में यह बढ़कर 7,500 लाख किलो हो गया, यानी 15 गुना वृद्धि. भारत में भी 2014 में 8.7 लाख किलो ग्लाईफोसेट का इस्तेमाल हुआ.
फसल उगाने के लिए खरपतरवारों को नष्ट करना जरूरी होता है. खरपतवार दो प्रकार से हटाये जा सकते हैं, एक मानवीय श्रम से और दूसरे खरपतवार नाशकों द्वारा.
चूंकि नाशकों द्वारा यह काम सस्ते में हो जाता है, किसान खरपतवार नाशकों का उपयोग करने लगे हैं, क्योंकि उन्हें इन रसायनों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभावों के बारे में नहीं पता. अमेरिका में न्यायालयों द्वारा दिये गये फैसलों से यह बात सामने आयी है कि ये कंपनियां किसानों को ग्लाईफोसेट के खतरों से आगाह नहीं करती हैं.
मोनसेंटो और बेयर सरीखी कंपनियां दुनिया भर में जीएम फसलों को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत हैं. हाल ही में भारत में बीज कंपनियों ने गैरकानूनी रूप से खरपतवार सुहाता बीटी कपास को बाजार में उतार दिया.
एक मोटे अनुमान के अनुसार एक लाख हेक्टेयर से भी ज्यादा भूमि पर एचटीबीटी कपास उगायी जा रही है. समझा जा सकता है कि यह काम देश में ग्लाईफोसेट/राउंडअप का बाजार बढ़ाने के लिए किया जा रहा है. इन कंपनियों का धर्म लाभ है. उनको किसानों और आम लोगों के स्वास्थ्य से कोई मतलब नहीं है. जीएम फसलों के आगमन को रोकना इसलिए भी जरूरी है, ताकि इस कैंसरकारी और जानलेवा ग्लाईफोसेट नामक रासायनिक जहर से देश को बचाया जा सके.
साल 2015 में अर्जेंटीना और आॅस्ट्रेलिया में प्रतिबंध लगा. साल 2017 में फ्रांस, बेल्जियम, ग्रीस, लॅग्जमबर्ग, स्लोवेनिया एवं माल्टा ने यूरोपीय संघ में ग्लाईफोसेट के इस्तेमाल के खतरों पर चिंता व्यक्त की थी और उसके बाद प्रतिबंध लगाने का सिलसिला शुरू हुआ. अन्य कई देशों ने पूरी तरह या कुछ मात्रा में ग्लाईफोसेट पर प्रतिबंध लगाया है.
भारत के कई राज्यों में भी ग्लाईफोसेट को प्रतिबंधित करने के प्रयास हुए हैं. अक्तूबर 2018 में पंजाब में और फरवरी 2019 में केरल में ग्लाईफोसेट की बिक्री पर रोक लगायी गयी. महाराष्ट्र में भी ग्लाईफोसेट पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास चल रहा है, जबकि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.
कई राज्यों में इस प्रतिबंध को यह कहकर निरस्त करने की मांग हो रही है कि किसी भी कृषि रसायन को पंजीकृत करने या प्रतिबंधित करने का काम केंद्र सरकार का है. दुर्भाग्य से अभी तक केंद्र सरकार ने ग्लाईफोसेट के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की कोई कार्यवाही नहीं की है.
प्रतिबंध के समर्थकों का कहना है कि केंद्र सरकार ने ग्लाईफोसेट के उपयोग की अनुमति केवल चाय बगानों और गैर-कृषि क्षेत्रों में दी है और जिन राज्यों में चाय बगान नहीं है, वहां इसे प्रतिबंधित करने में कोई रुकावट नहीं है. आवश्यकता इस बात की है कि देश और विश्व में ग्लाईफोसेट के कैंसरकारी होने और देश में कैंसर के बढ़ते प्रकोप के मद्देनजर केंद्र सरकार तुरंत प्रभाव से इस जानलेवा रसायन पर प्रतिबंध लगाये, ताकि कैंसर की महामारी को फैलने से रोका जा सके.

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