जेटली साहब का सौ करोड़ का प्रेम

बृजेंद्र दुबे प्रभात खबर, रांची वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सबको दिया किसी को निराश नहीं किया. यूपीए सरकार की योजनाओं को आगे बढ़ाया, तो अच्छे दिन लाने के लिए अपनी भी छौंक दे दी. सालों से उपेक्षित गंगा भइया का ‘नमामि गंगा’ के जरिये भला करने का संकल्प नये जोश के साथ जताया है. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 11, 2014 4:43 AM

बृजेंद्र दुबे

प्रभात खबर, रांची

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सबको दिया किसी को निराश नहीं किया. यूपीए सरकार की योजनाओं को आगे बढ़ाया, तो अच्छे दिन लाने के लिए अपनी भी छौंक दे दी. सालों से उपेक्षित गंगा भइया का ‘नमामि गंगा’ के जरिये भला करने का संकल्प नये जोश के साथ जताया है. उमा भारती पहले से इसके लिए तैयार बैठी हैं. लगता है इस बार गंगा मइया का भला जरूर हो जायेगा.

बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के लिए जेटली की पोटली में सबके लिए कुछ न कुछ निकला है. जेटली ने सबको दिया, लेकिन हमारे गजोधर भाई को खुश नहीं कर पाये. दिन में पांच-पांच पैकेट सिगरेट पी जानेवाले गजोधर भाई, जेटली से बहुत नाराज हैं. मुझसे बोले, यार देखो क्या गजब हो गया? खाली खजाना हम सिगरेट पीने वालों से ही भरने की तैयारी है. इतना भला चाहते हैं, तो तंबाकू उत्पाद बनाने वाली कंपनियों में तालाबंदी की घोषणा कर देते. ये क्या तरीका है कि हमारी सिगरेट छुड़ाने के लिए 11 फीसदी टैक्स को सीधे 72 प्रतिशत तक बढ़ा दिया. अब सबसे घटिया सिगरेट भी 10 रुपये से कम में नहीं मिलेगी.

टैक्स बढ़ाने से किसी की आदत सुधर सकती है क्या? मुई सिगरेट पिये बगैर चैन ही नहीं पड़ता. मरता क्या न करता.. अब यही होगा कि घटिया ब्रांड की जो सस्ती सिगरेट मिलेगी, उसी से काम चलाना पड़ेगा. मैंने कहा, गजोधर भाई.. आप सिगरेट छोड़ क्यों नहीं देते? मेरे इतना कहते ही गजोधर तमतमा गये.. छोड़ो यार बहुत बार कोशिश की. अब कोई आदत इस लिए नहीं छूट सकती कि वो महंगी है. ऐसा होता दाल-रोटी भी खाना छोड़ चुके होते. सब्जी भी न खाते. कौन-सी चीज सस्ती है? खैर छोड़िए.. आपको कैसा लगा मोदी सरकार का पहला बजट? मैंने कहा, अच्छा ही है. सबका ख्याल रखा गया है. गजोधर बोले खाक अच्छा है.

मुझको तो लगता है कि जेटली को 100 करोड़ रुपये से बहुत प्यार है. अपने बजट में उन्होंने कई चीजों के लिए 100 करोड़ रु पये का प्रावधान किया है. इतने करामाती हैं कि उन्होंने 100 करोड़ रु पये की राशि अहमदाबाद और लखनऊ में मेट्रो रेल के लिए दिये. अब बताइए सौ करोड़ रुपये में दो शहर में मेट्रो दौड़ने लगेगी क्या? इसी तरह अन्य योजनाओं का भी हाल है.. सबको सौ-सौ करोड़ रुपये देकर ताली बटोर ली, लेकिन क्या सौ करोड़ रुपये में कोई योजना पूरी हो सकती है? अटल जी की प्रिय स्कीम नदी जोड़ो अभियान के लिए सौ करोड़ दे दिये. सौ करोड़ रुपये में कौन-सी एक नदी जुड़ सकती है? मुझको तो लगता है कि जेटली साहब ने सौ-सौ करोड़ का प्रावधान करके दफ्तर खोलने का इंतजाम कर दिया है.. बाकी जिम्मेदारी विदेशी निवेशकों और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप की है.. जो पैसा लगायेंगे और देश आगे बढ़ेगा. मोदी जी कहते भी हैं कि ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेस.’ अब देश में निजीकरण का रास्ता खुल चुका है. पैसा है तो तुम भी लगाओ..

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