मोहर लगेगी जात पर!

सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार drsureshka- t@gmail.com शम्मी कपूर की एक फिल्म थी, जिसमें अनाथ होने के कारण वह अपनी प्रेमिका के बात-बात पर गोली मारने की धमकी देनेवाले फौजी बाप के सामने अपने रिश्ते की बात करने जाने के लिए एक भिखारी-दंपती को तैयार करता है, जिनकी भूमिका किन्हीं हास्य-कलाकारों ने निभायी थी. भिखारी को […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 19, 2019 6:42 AM

सुरेश कांत

वरिष्ठ व्यंग्यकार

drsureshka- t@gmail.com

शम्मी कपूर की एक फिल्म थी, जिसमें अनाथ होने के कारण वह अपनी प्रेमिका के बात-बात पर गोली मारने की धमकी देनेवाले फौजी बाप के सामने अपने रिश्ते की बात करने जाने के लिए एक भिखारी-दंपती को तैयार करता है, जिनकी भूमिका किन्हीं हास्य-कलाकारों ने निभायी थी.

भिखारी को थोड़ी-थोड़ी देर बाद झुककर सलाम करते हुए ‘अंधे को भाई साहब!’ कहकर भीख मांगने की आदत थी. शम्मी कपूर उन्हें खूब ट्रेनिंग देता है कि फौजी के सामने उन्हें किस तरह पेश आना है और और भिखारी को इस बात की खास ताकीद करता है कि वह भूल से भी फौजी को ‘अंधे को भाई साहब!’ कहने की भूल न कर दे.

तसल्ली होने पर वह उस भिखारी-दंपती को अपनी प्रेमिका के खड़ूस बाप, जो कि दुनिया की सभी प्रेमिकाओं के बाप हुआ ही करते हैं, के पास भेज देता है. भिखारी-दंपती वहां शम्मी कपूर के मां-बाप की भूमिका अच्छी तरह निभा देते हैं और उनके व्यवहार से खुश होकर वह फौजी शम्मी कपूर से अपनी लड़की की शादी करने के लिए तैयार भी हो जाता है, पर ऐन रुखसती के वक्त भिखारी अपने वाली पर आ जाता है और फौजी को झुककर सलाम करते हुए कह बैठता है, ‘अंधे को भाई साहब!’

चुनाव में नेता लोग भी विकास, देशभक्ति, जनसेवा आदि की बात करते-करते अपने वाली पर आकर जाति-धर्म के नाम पर वोट मांगने लगे हैं.

कोई धर्म-विशेष के लोगों को चेता रहा है कि वे दूसरों के भुलावे में आकर अपने वोट खराब न कर दें, क्योंकि केवल उसे और उसके दल को देने से ही वोट खराब होने से बचते हैं. कोई वोटरों को धमका रहा है कि अगर उनके वोट उसे न मिले, तो फिर उसके पास काम करवाने भी मत आना!

किसी को बताना पड़ रहा है कि वह संन्यासी है और अगर उसे वोट न दिये, तो वह अपने पाप उन्हें दे जायेगा और उनके पुण्य हर ले जायेगा. संन्यासी होकर भी किसी के पास पाप एकत्र हो सकते हैं, जिन्हें जरूरत पड़ने पर वह दूसरों को ट्रांसफर कर सकता है, पहली बार पता चला. कोई अपने दलित होने के कारण अपने साथ अन्याय होने का रोना रो रहा है, तो कोई अपने पिछड़े होने के कारण अपमानित किये जाने का.

उन्हें भरोसा है कि ऐसा करने से वे जनता को अपने साथ हुए कथित अन्याय और अपमान का बदला लेने के लिए उकसा सकेंगे. ऐसा करते हुए वे केंद्रीय चुनाव आयोग की भी परवाह नहीं कर रहे. आचार-संहिता लागू होने के बाद भी काफिले में निकलने पर और एसडीएम द्वारा रोके जाने पर एक नेता ने तो कह भी दिया कि किसके आदेश से रोक रहे हो, चुनाव आयोग आखिर है किसका?

कभी-कभी मैं सोचता हूं कि जाति और धर्म का आविष्कार करनेवाला कितना दूरदर्शी रहा होगा. जाति और धर्म लोगों को आपस में लड़वाने के काम ही नहीं आते, नेताओं को चुनाव जितवाने में मदद भी करते हैं. यही कारण है कि ‘न जात पर न पात पर’ वाले पुराने नारे के स्थान पर अब तो सबका एक ही सहारा है कि- मोहर लगेगी जात पर!

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