पैरेंट के होते हुए भी अनाथ!

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार kshamasharma1@gmail.com पिछले दिनों चार ऐसे युवा परिवारों से मुलाकात हुई , जो शादी के कई साल बाद अलग हो गये. चारों में कुछ समानताएं थीं. जैसे कि सबका प्रेम विवाह ही नहीं, अंतरजातीय विवाह हुआ था. शुरू में चारों के परिवारों ने विरोध किया था, लेकिन बाद में सब मान गये […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 5, 2018 12:19 AM

क्षमा शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार

kshamasharma1@gmail.com

पिछले दिनों चार ऐसे युवा परिवारों से मुलाकात हुई , जो शादी के कई साल बाद अलग हो गये. चारों में कुछ समानताएं थीं. जैसे कि सबका प्रेम विवाह ही नहीं, अंतरजातीय विवाह हुआ था. शुरू में चारों के परिवारों ने विरोध किया था, लेकिन बाद में सब मान गये थे. चारों जोड़े नौकरी करते थे और जिंदगी जीने के लिए जो सुविधाएं चाहिए थीं, वे सब थीं. इन जोड़ों का एक-एक बच्चा भी था. सब खुश नजर आ रहे थे.

इन चारों जोड़ों से अलग-अलग समय पर बातें हुईं, तो पता चला कि इनके बीच कोई बड़ा झगड़ा नहीं था, पर एक दूरी-सी थी. एक लड़की ने कहा कि अब उसे इस रिश्ते में उसी तरह दिलचस्पी नहीं रही जैसे कि एक हद के बाद पुराने कपड़े में नहीं रहती. दूसरा लड़का बोला कि उसकी पत्नी अक्सर उसे फोन करती रहती है. अगर वह किसी मीटिंग में भी होता है, तो भी उसे लगता है कि दफ्तर की किसी लड़की के साथ उसका चक्कर चल रहा है. वहीं तीसरी लड़की बोली कि उसे घूमने- फिरने का बहुत शौक है. और उसका पति घर से बाहर ही नहीं जाना चाहता. सबकी छोटी-छोटी समस्याएं थीं.

यह पूछने पर कि वे अलग हो गये हैं, तो अब बच्चों की जिम्मेदारी कौन निभायेगा, चारों ने लगभग एक जैसी बात कही कि उनके पास इतना समय नहीं कि बच्चे की जिम्मेदारी भी उठा लें और चौबीसXसात की नौकरी भी कर लें. इसलिए बच्चे को बोर्डिंग में डाल देंगे. वह भी खुश और हम भी खुश. क्या अब दोबारा किसी रिश्ते में नहीं बंधेंगे, इस सवाल के पूछने पर लगभग सभी ने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है, अगर कोई ऐसा मिला तो जरूर दोबारा शादी कर लेंगे. इनमें से एक जोड़े ने जल्दी ही शादी कर ली. आनेवाले समय में बाकी तीन भी शायद ऐसा कर लें.

जब से मामूली बातों पर हार-जीत तय होने लगी है, तब से किसी संबंध को खत्म होने में जरा भी वक्त नहीं लगता. अपने-अपने अहंकार इतने ज्यादा हैं कि कोई किसी से बातचीत नहीं करना चाहता. असहमतियां मिल-बैठकर भी तय की जा सकती हैं, संबंधों को टूटने से बचाया जा सकता है, अब वह दौर विदा हो चला है. अगर संबंध बचे भी हैं, तो सबसे पहले उनका भावनात्मक सहारा छिन जाता है, इसके बाद धीरे-धीरे उनके अन्य सहारे जैसे कि माता-पिता का प्यार, आर्थिक सुरक्षा, शेयरिंग सब कुछ खत्म हो जाता है.

इन जोड़ों के बच्चों का भविष्य कैसा होगा, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है. एक दौर ऐसा था, जब बच्चों की खातिर संबंध निभा लिये जाते थे. लेकिन, व्यक्ति केंद्रित इस दौर में अपनी इच्छाएं ही सर्वोपरि हो चली हैं.

इनसे स्वार्थ झलकता हो तो झलके, क्योंकि माना जाने लगा है कि एक ही तो जीवन मिला है, उसे किसी के लिए बर्बाद करने का क्या फायदा, अब ये अगर अपने बच्चे भी हों, तो हों. संबंधों के टूटने के कारण बड़ी संख्या में बच्चे माता-पिता के होते हुए भी अनाथ जैसा जीवन जी रहे हैं.

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