धर्म की यात्रा कर्म के दरवाजे

संतोष उत्सुक व्यंग्यकार santoshutsuk@gmail.com वे सुनियोजित शैली में कुछ दिन बाद अखबार में बयान छपवाते रहते हैं कि वार्षिक धर्मयात्रा के स्वागत के लिए नगर में चार भव्य द्वार बनवायेंगे, जिन पर एक करोड़ खर्च होगा. धर्मयात्रा के आयोजन से पहले पूरे शहर को पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते बैनरों से लाद देते हैं और महीनों […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 17, 2018 6:09 AM

संतोष उत्सुक

व्यंग्यकार

santoshutsuk@gmail.com

वे सुनियोजित शैली में कुछ दिन बाद अखबार में बयान छपवाते रहते हैं कि वार्षिक धर्मयात्रा के स्वागत के लिए नगर में चार भव्य द्वार बनवायेंगे, जिन पर एक करोड़ खर्च होगा. धर्मयात्रा के आयोजन से पहले पूरे शहर को पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते बैनरों से लाद देते हैं और महीनों नहीं हटाते. राजनीतिक धरातल पर वे समर्पित पर्यावरण प्रेमी हैं.

बहुत दिनों बाद उनसे मुलाकात हुई. मैंने उनसे पूछा क्या हाल-चाल हैं, तो वे बोले ठीक हैं. उनको पता है कि उनकी धार्मिक द्वारों की एक करोड़ी योजना का मैं प्रखर विरोधी हूं. अखबार में उनका बयान छपने पर, पत्नी के समझाने पर मैंने लिखित बयान नहीं दिया, मगर गुजारिश की थी कि सरकारी अस्पताल में आम लोगों को बहुत ज्यादा दिक्कतें हैं.

सरकार अस्पताल में मेडिकल कॉलेज पैदा कर देती है, मगर मरीजों के लिए डाॅक्टर नहीं होते. जिम्मेदार सरकार अपनी दूसरी जरूरी बीमार प्राथमिकताओं के कारण खुद मरीज हुई रहती है. हमने उनसे गुजारिश की कि पैसा इकट्ठा करना ही है, तो सब मिलकर अस्पताल में सुविधाएं बढ़ाने के लिए करें. उन्हें पता नहीं था कि बात निकलती है, तो दूर तलक जाती है और बात अपने स्वभाव के मुताबिक उन तक पहुंच गयी.

वे फिर अपने समर्थकों के साथ मिले, हाथ मिलाया, बिना कुछ कहे काफी-कुछ कहा और हमने सब समझ लिया. वास्तव में उन्होंने हड़काया- तुझे क्या पता धर्म क्या होता है, वो तो हम जानते हैं, क्योंकि हमने संस्कारित परिवार में जन्म लिया है. इस मामले में हमारे धर्म समाज में क्या हो रहा है, क्या होना चाहिए, क्या बिलकुल नहीं होना चाहिए, यह हमने ही तय करना है. तू तो इस बारे में बात करने के लिए भी अधिकृत नहीं है.

हमने भी उन्हें बिना कुछ कहे बिना व्यंग्य मुस्कुराते हुए संप्रेषित किया कि आप जैसे लोगों की वजह से धर्म के नाम पर क्या-क्या अधर्म हो रहे हैं, यह बात सिर्फ हम ही अच्छी तरह समझते हैं. आपको इतनी सी समझ नहीं है कि हमारे शहर को स्वागत दरवाजों की जरूरत है या अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं की?

उन्होंने स्पष्ट घोषणा की- हमें अपने धर्म की रक्षा करनी है. यह बात हम ही समझ पाते हैं, क्योंकि हमने उच्च कुल में जन्म लिया है. साधारण लोग आम परिवारों में, साधारण नक्षत्रों में पैदा होते हैं, उनकी सोच निम्न होती है. स्थानीय सोच वाले बंदे इस बात को समझने के काबिल नहीं होते.

मेरी पत्नी ने समझाया कि अब धर्म, कर्म, शर्म की ताजा परिभाषाएं उगा ली गयी हैं. दरवाजा भी धर्म है. यह मायने नहीं रखता कि जिस जगह अभी अस्थायी स्वागत द्वार बना रखा है, उसका किराया नगर पालिका को कब से नहीं दिया है.

शहर में फ्लेक्स के ढेरों बैनर लटका रखे हैं, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, लेकिन धर्म के कर्म के सामने पर्यावरण की कोई औकात नहीं होती. कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि क्या वे सीधे आसमान से टपके थे या पहले जैसे बच्चों को बताते थे कि नर्स आंटी टोकरी में रख कर लायी है, वैसे!

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