नेपाल का रवैया और भारत की चिंता

प्रो सतीश कुमार सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ हरियाणा singhsatis@gmail.com पिछले दिनों नेपाल के दो महत्वपूर्ण निर्णय इस बात की पुष्टि करते हैं कि नेपाल न केवल चीन ने नजदीक जा रहा है, बल्कि भारत के विरोध में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहा है. काठमांडू में हुए बिम्सटेक मीटिंग के दौरान उसने खुद को अलग कर […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 17, 2018 4:57 AM

प्रो सतीश कुमार

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ हरियाणा

singhsatis@gmail.com

पिछले दिनों नेपाल के दो महत्वपूर्ण निर्णय इस बात की पुष्टि करते हैं कि नेपाल न केवल चीन ने नजदीक जा रहा है, बल्कि भारत के विरोध में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहा है. काठमांडू में हुए बिम्सटेक मीटिंग के दौरान उसने खुद को अलग कर लिया. ठीक उसके बाद चीन के साथ सैनिक अभ्यास में शामिल हो गया, जिसकी शुरुआत 17 सितंबर से होगी. यह एक सोची-समझी योजना थी. दूसरी तरफ, चीन ने नेपाल को भारत से दूर खींचने के लिए अपने बंदरगाहों की तरफ से रास्ता खोल दिया. अभी तक नेपाल में आनेवाली चीजें कोलकोता पोर्ट से आती थीं.

चीन की यह चाल भारत-नेपाल की विशेष मैत्री को तोड़ने के लिहाज से किया गया है. भारत ने इन दोनों परिवर्तनों पर गहरी चिंता जाहिर की है. नेपाल अपनी आंतरिक राजनीति को इसका कारण मानकर इसकी व्याख्या कर रह रहा है. लेकिन, कहानी कुछ और ही है.

चीन के राष्ट्रपति ने नेपाल को भरोसा दिलाया है कि नेपाल को मौलिक औद्याेगिक सुविधाओं को बनाने की पूरी मदद करेंगे. पनबिजली, सीमेंट और अन्य बुनियादी सुविधाओं के लिए चीन 2.24 बिलियन डॉलर की राशि नेपाल के लिए घोषित किया है. नेपाल ने सितंबर 2017 में ही यह घोषित कर दिया था कि वह चीन के वन बेल्ट वन रोड का हिस्सा बनेगा. ओली ने चीन यात्रा के दौरान इस निर्णय को अमलीजामा पहना दिया.

शी जिनपिंग ने यह विश्वास दिलाया है कि नेपाल की आर्थिक समस्याओं को दूर करने की चीन पूरी कोशिश करेगा. नेपाल और चीन के बीच 4.6 बिलियन की लागत से नेपाल के बीहड़ पहाड़ी इलाकों में सब्जी और अन्य फसल के उत्पादन के लिए फूड पार्क बनाये जायेंगे. कई वर्षो से लंबित 164 मेगावाॅट क्षमता की जलविद्युत परियोजना का निर्माण भी शुरू किया जायेगा.

यहां पर कई सवाल हैं, जो भावी रणनीति को तय करेंगे. यह संघर्ष वर्षों पुराना है. साल 1950 की संधि नेपाल के शासकों को आंख में सुई की तरह चुभती रही है. उनका हर बार एक ही शगल रहा है कि भारत की दादागिरी रही है.

हर बार नेपाल की आंतरिक मुठभेड़ के लिए भारत पर दोष मढ़ा गया. चूंकि नेपाल की आर्थिक रीढ़ भारत के सहारे चलती है और 90 प्रतिशत नेपाल का व्यापार भारत के माध्यम से होता है. विदेशों से आनेवाले सामान भी भारत के रास्ते से ही वहां पहुंचते हैं. यही कारण था कि केपी शर्मा ओली ने अपनी पहली यात्रा भारत से शुरू की.

चीन का वन बेल्ट रोड केवल नेपाल को मजबूत बनाने के लिए नहीं है. इसका अर्थ भारत को कमजोर बनाने के लिए भी है. इसके कई प्रमाण हैं. राजा महेंद्र ने कहा था कि चीन जब आयेगा, तो टैक्सी में नहीं आयेगा, बल्कि पूरी क्षमता के साथ आयेगा. महेंद्र के पुत्र राजा वीरेंद्र ने भारत और चीन से बराबर दूरी बनाने की नीति को लागू करने की पहल शुरू की.

जब बहुमत के साथ उनकी सरकार बन गयी, तो साम्यवादी एजेंडा लागू करना आसान हो गया. चूंकि चीन का तिब्बत वाला हिस्सा आज भी पिछड़ा हुआ है. इसलिए चीन अब नेपाल में अपने व्यापार को नया स्वरूप देकर एक तीर से दो निशाने करना चाहता है. एक ओर तिब्बत के लिए आर्थिक साधन जुटाना चाहता है, दूसरी ओर नेपाल की ऊंची पहाड़ी के रास्तों से नेपाल में अपनी गहरी पैठ बनाना चाहता है. ये दोनों समीकरण भारत के लिए आपत्तिजनक हैं.

चीन रेललाइन की शुरुआत करके भारत से नेपाल की निर्भरता को खत्म करना चाहता है. सिंगते से काठमांडू रेललाइन बनाने की शुरुआत हो चूकी है. पिछले साल चीन ने नेपाल को पुलिस मुख्यालय बनाकर दिया. चीन पोखरा में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी बना रहा है.

चीन की रणनीति है कि नेपाल को अपने प्रभाव में जकड़ लिया जाये. आर्थिक समीकरण के जरिये ऐतिहासिक प्रभाव को पूरी तरह से खत्म करना चाहता है. चीन की ग्लोबल कंपनी ने हल ही में नेपाल में इंटरनेट का जाल बिछाने की भी ठीकेदारी ली है. इसके पहले भारतीय कंपनियों द्वारा नेपाल में इंटरनेट की तारें जुड़ी हुई थीं. अब इसका कंट्रोल रूम हांगकांग में है. चीन इस तरह से भारत के हर उस पहल का विकल्प खोजने की ताक में है, जिससे नेपाल कभी भी भारत की ओर मुड़कर नहीं देखे.

चीन अब नेपाल को पेट्रोलियम मुहैया करवाकर भारत की उपयोगिता को कम करना चाहता है. विगत की घटनाओं को एक आधार बनाकर चीन ने नेपाल को पेट्रोलियम सुविधा की व्यवस्था करने की गारंटी दी है. नेपाल ने कई पनबिजली योजनाओं की ठीकेदारी चीन को दी है. चीन चाहता है कि भारत अपने लिए भी बिजली खरीदे.

इस तरह भारत-नेपाल संबंध के ऊपर चीन की छाया निरंतर गहरी होती जा रही है. ऐसे में केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों का पिटारा लेकर नेपाल काे अपनी तरफ नहीं खींचा जा सकता. नेपाल अब भारत को खोजे, उसके पहले भारत को चाहिए कि वह नेपाल को अपना बनाये. भारत द्वारा चलायी जा रही परियोजनाओं की गति बढ़ानी होगी.

यह सच है कि राजनीतिक रंग समय के साथ फीका पड़ जाता है, लेकिन भौगोलिक समीपता कभी नहीं बदलती. नेपाल-भारत के बीच यह विशेषता आज भी है और कल भी रहेगा. जरूरत है अपनी व्यवस्था को दुरुस्त करने की. नेपाल में चीन वह स्थान कभी नहीं बना सकता, जो भारत का है. तात्कालिक परिवर्तन केवल राजनीतिक खेल है, जो वहां की कम्युनिस्ट सरकार खेल रही है. स्थितियां जरूर बदलेंगी.

Next Article

Exit mobile version