पॉलीथिन के खिलाफ जन आंदोलन की जरूरत

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक सामान्य सी दिखने वाली और बहुउपयोगी पॉलीथिन हम सबके जी का जंजाल बन गयी है. यह पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक है और इसमें वह जहर घोल रही है. इंसान, जानवर और पेड़ पौधों इसने किसी को नहीं छोड़ा है. प्रकृति के लिए यह अत्यंत घातक है. माना जाता है कि […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 15, 2018 7:14 AM

आशुतोष चतुर्वेदी

प्रधान संपादक

सामान्य सी दिखने वाली और बहुउपयोगी पॉलीथिन हम सबके जी का जंजाल बन गयी है. यह पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक है और इसमें वह जहर घोल रही है. इंसान, जानवर और पेड़ पौधों इसने किसी को नहीं छोड़ा है. प्रकृति के लिए यह अत्यंत घातक है. माना जाता है कि पॉलीथिन अजर अमर है और इसको नष्ट होने में एक हजार साल लग जाते हैं. इसके नुकसान की लंबी चौड़ी सूची है. जलाने पर यह ऐसी गैसें छोड़ती है जो जानलेवा होती हैं. यह जल चक्र में बाधक बनकर बारिश को प्रभावित करती है. नदी नालों को अवरुद्ध करती है.

खेती की उर्वरा शक्ति को प्रभावित करती है. पशु खासकर गाएं इसको खा जाती हैं और यह जाकर उनकी आंतों में अटक जाती है और उनकी मौत का कारण बन जाती है. हम लोग अक्सर खाने की वस्तुएं पॉलीथिन में रख लेते हैं जिससे कैंसर की संभावना बढ़ जाती है.

हाईकोर्ट के आदेश के बाद बिहार सरकार ने इस पर प्रतिबंध की पहल की है. इसमें सहयोग के लिए हम सबको आगे आना होगा और यह प्रण करना होगा कि पॉलीथिन का इस्तेमाल नहीं करेंगे तभी यह प्रतिबंध प्रभावी होगा. यह जान लीजिए कि जब तक राज्य के लोग साफ सफाई और पर्यावरण के प्रति चेतन नहीं होंगे तब तक कोई उपाय कारगर साबित नहीं होने वाले हैं. कूड़े का उदाहरण हमारे सामने है. हम रास्ता चलते कूड़ा सड़क पर फेंक देते हैं. उसे कूड़े दान तक नहीं पहुंचाते.

आज समय की मांग है कि हम इस विषय में संजीदा हों. केवल नगर निगमों के सहारे यह काम नहीं छोड़ा जा सकता है. कई राज्यों में प्रतिबंध लगाया गया लेकिन जब तक जनता पॉलीथिन मुक्त मुहिम से नहीं जुड़ी, तब तक योजना सफल नहीं हुई. अपने पर्यावरण को बचाना एक सामूहिक जिम्मेदारी है. हमें पॉलीथिन को नियंत्रित करने के प्रयासों में योगदान करना ही होगा तभी स्थितियों में सुधार लाया जा सकता है.

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