अंशुमाली रस्तोगी

व्यंग्यकार anshurstg@gmail.com रुपया आहत है. उसके गिरने का मजाक बनाया जा रहा है. ताने कसे जा रहे हैं. कोसा जा रहा है. कहनेवाले तो यह तक कह रहे हैं- रुपये ने डॉलर से हार मान ‘आत्मसमर्पण’ कर दिया है. जितने मुंह उतनी बातें. लोग बेशर्म हैं. कुछ भी कहते रहते हैं. अभी रुपये की गिरावट […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 17, 2018 6:07 AM

व्यंग्यकार

anshurstg@gmail.com

रुपया आहत है. उसके गिरने का मजाक बनाया जा रहा है. ताने कसे जा रहे हैं. कोसा जा रहा है. कहनेवाले तो यह तक कह रहे हैं- रुपये ने डॉलर से हार मान ‘आत्मसमर्पण’ कर दिया है. जितने मुंह उतनी बातें. लोग बेशर्म हैं. कुछ भी कहते रहते हैं. अभी रुपये की गिरावट पर तंज कस रहे हैं. पिछले दिनों सेंसेक्स के लुढ़कने पर अपनी खींसे निपोर रहे थे.

रुपया अगर गिर भी गया, तो ऐसा कौन-सा गुनाह हो गया. दुनिया या बाजार में ऐसा कौन नहीं है, जो गिरता नहीं या कभी गिरा न हो. हम खुद ही जाने कितनी दफा केले के छिलके पर औंधे मुंह गिरे हैं. फर्श पर पड़े पानी पर सैकड़ों बार फिसले हैं. तब तो इतना हंगामा न हुआ? एक रुपया क्या गिरा- पूरे देश में हाहाकार मच गया. ईश्वर जाने कौन-सी आफत आ गयी.

हमारे समाज की ‘चारसौबीसी’ देखिए, इश्क में गिरने पर तमाम शेर कहे जाते हैं. तरह-तरह की कविताएं लिखी जाती हैं. दोहे-तुकबंदियां गढ़ी जाती हैं.

इश्क में पायी नाकामियों पर कहानियां लिख-लिखकर बेशुमार पन्ने भर दिये जाते हैं. हीर-रांझा, लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद के किस्से गर्व के साथ सुनाये-दिखाये जाते हैं. और बेचारे रुपये के जरा-बहुत लुढ़कने पर आसमान सिर पर उठा लिया गया है. रुपया अपनी मर्जी से थोड़े न गिरा. विदेशी ताकतें मिलकर उसे गिरा रही हैं.

अपने-अपने अहंकार के चलते एक देश दूसरे देश पर युद्ध धोपने का षड्यंत्र रच रहे हैं. ऐसे में रुपये का भयभीत हो जाना लाजिमी है. डॉलर तो हमेशा इस प्रयास में रहता है कि कब रुपया दबे और वह उस पर हावी हो जाये. मानकर चलिए- ये विदेश लोग कभी किसी के सगे नहीं होते. हर किसी को अपनी नाक के नीचे दबाकर रखना चाहते हैं. खुद हमीं ने इनकी तानाशाही को दो सौ सालों तक झेला था. एक लंबी लड़ाई के बाद हम अपने मुल्क को इनके चंगुल से मुक्त करवा पाये.

ऐसे आड़े समय में तो हमें रुपये का साथ देना चाहिए. उसका उत्साहवर्द्धन करना चाहिए. उसमें डॉलर से किसी भी कीमत पर हार न मानने का जज्बा पैदा करना चाहिए. लेकिन, हम तो उलटा उसका सरेआम मजाक बना रहे हैं.

उसके 70 का होने का मुकाबला कभी इस, तो कभी उस नेता से कर रहे हैं. रुपये में बनी हालिया कमजोरी को अर्थव्यवस्था का विकार बता रहे हैं. ये कैसे देशभक्त हैं हम?

मैं रत्तीभर विश्वास नहीं रखता कि गिरकर कोई उठ नहीं सकता. बहादुर टाइप लोग ही मैदान-ए-जंग में गिरकर उठते हैं. रुपया भी उनमें से एक है. मुझे पक्का यकीन है, रुपया बहुत जल्द उठेगा. अपने विरोधियों के गाल पर तमाचा मारेगा. तब न केवल बाजार, बल्कि खुद डॉलर भी उसे सलाम ठोंकेगा.

हे! प्रिय रुपये, तू हारा नहीं है. संघर्ष कर. चल उठ. दुनिया को बता दे- सिर्फ हारकर जीतनेवाले को ही ‘बाजीगर’ नहीं, बल्कि गिरकर उठनेवाले को ‘रुपया’ भी कहते हैं. प्रिय रुपये, मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं.

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