अपनी-अपनी आजादी

संतोष उत्सुक व्यंग्यकार santoshutsuk@gmail.com आजादी क्या है. पूरे साल यह सवाल मैं किसी और से तो क्या, अपने आप से भी नहीं करता. क्योंकि, पूरे साल मैं किसी न किसी किस्म की गुलामी में गिरफ्तार रहता हूं. लेकिन, जैसे ही स्वतंत्रता दिवस आता है, मुझे लगता है कि अब इस बारे में बात कर ही […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 15, 2018 5:57 AM

संतोष उत्सुक

व्यंग्यकार

santoshutsuk@gmail.com

आजादी क्या है. पूरे साल यह सवाल मैं किसी और से तो क्या, अपने आप से भी नहीं करता. क्योंकि, पूरे साल मैं किसी न किसी किस्म की गुलामी में गिरफ्तार रहता हूं. लेकिन, जैसे ही स्वतंत्रता दिवस आता है, मुझे लगता है कि अब इस बारे में बात कर ही लूं, पर फिर एक सवाल कि आखिर बात किससे और कहां से शुरू करूं? यह सोचकर मुझे डर लगता है.

पिछले सात दशक से देश ने प्रगति के ऊंचे प्रतिमान हासिल किये कि पूरी दुनिया हैरान हो रही है. सबसे पहले अगर देश के नेताओं की बात की जाये, तो यह देश आजादी दिलाने में उनके त्याग और बलिदान को हमेशा याद रखेगा.

उनका कर्ज कोई चुका नहीं सकता, लेकिन इस दौरान आजादी का फायदा उठाकर अधिकांश नेताओं ने स्वार्थ, धन दौलत में खूब तरक्की की है. तरक्की इतनी कि देश पीछे छूट गया.

नेताओं ने देश प्रेम की बातें खूब की, लेकिन वोट प्रेम के सवाल हल करने के लिए धर्म, जाति, संप्रदाय के सारे फाॅर्मूले प्रयोग किये और बेहद सफल भी रहे. नेताओं ने शातिर दिमागों को आजादी दी और उन्होंने इस आजादी का फायदा उठाकर कितने ही अच्छे और बुरे क्षेत्रों में दुनियाभर में नाम कमाया है. देश के कर्णधारों ने जैसी आजादी खुद ली, वैसी ही देशवासियों को दी, जिसका मनचाहा इस्तेमाल हुआ. अब सबके पास अपनी तरह की निजी आजादी है.

सुना है कलाकार ही समाज को सुधारते हैं, शायद तभी मानव शरीर एक उत्पाद के रूप में इस्तेमाल हो रहा है. आजादी इतनी ले ली गयी है कि उम्र का लिहाज खत्म कर दिया गया है. मनोरंजन के नाम पर कुछ भी परोसने की आजादी है, क्योंकि आजादी की परिधि में जो अनुशासन रहा करता था, उसे आर्थिक मानसिकता ने अगवा कर लिया गया है.

क्या आजादी का अर्थ यह है कि ट्रैफिक में फंसे हैं, तो आपकी गाड़ी निकल जाये, बगल वाला फंसा रहे! सुबह से शाम तक सभी को फेकबुक देखने की आजादी रहे, लेकिन अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ने को न कहें. मां-बाप ने अपने छोटे-छोटे बच्चों को कुछ भी न कहने की आजादी उगा ली है, बदले में लगभग हर बच्चे ने कुछ भी सही न सुनने और मनमाना करने की आजादी जेब में डाल ली है.

हमने आजादी को कुछ भी करने-कहने का साधन बना दिया है. किसने सोचा था कि आजादी का अर्थ यह हो जायेगा कि बिना सोचे-समझे कुछ लोग एक व्यक्ति को जिंदगी से आजाद कर देंगे. कभी आजादी का प्रभाव सीधे दिल से निकलता था, जिसमें सद्भाव, समानता, एकता, राष्ट्रहित एवं मानवता समाये रहते थे.

अब तो यह विचारने का समय है कि शरीर में जब आजादी की खुशी या गर्व महसूस होता है, तो मस्तिष्क में डोपमाइन और सेरोटोनिन नामक न्यूरो केमिकल का उत्सर्जन ज्यादा होने लगता है.

कहीं आजादी का अर्थ अब बिना रोक-टोक, कुछ भी सोच व बोल सकने, कुभावनाओं को व्यक्त करने, दूसरों का किसी भी तरह का नुकसान कर अपना फायदा करना तो नहीं रह गया. लगता है आजादी में स्वनिर्मित अनुशासन कहीं छिपकर अपनी अपनी नहीं सब की सही आजादी की प्रतीक्षा कर रहा है.

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