फिर नक्सली हमला

नक्सली हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में शुमार छत्तीसगढ़ में एक बार फिर से सुरक्षाबलों पर हमले की खबर आयी है. बीजापुर में हुए इस हमले में दो जवान शहीद हुए हैं और छह घायल, लेकिन हमलावरों के हताहत होने की कोई सूचना नहीं है. सो, माना जा सकता है कि यह हमला वाम […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 11, 2018 5:51 AM
नक्सली हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में शुमार छत्तीसगढ़ में एक बार फिर से सुरक्षाबलों पर हमले की खबर आयी है. बीजापुर में हुए इस हमले में दो जवान शहीद हुए हैं और छह घायल, लेकिन हमलावरों के हताहत होने की कोई सूचना नहीं है.
सो, माना जा सकता है कि यह हमला वाम चरमपंथियों ने पूरी योजना बनाकर अंजाम दिया. नक्सलियों की हिंसा की योजना का कामयाब होना ही इस घटना का सबसे चिंताजनक पहलू है.
इस घटना का एक बड़ा सबक तो यही है कि सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम और बढ़ी हुई निगरानी के बावजूद नक्सलपंथी हमलावरों की ताकत में कमी नहीं आयी है. मसलन, इस घटना में हमलावरों ने बारूदी सुरंग में विस्फोट कर पुलिस-बल की बस को उड़ाया और दुर्गम इलाके में तकरीबन निस्सहाय स्थिति में पड़े पुलिस बल पर गोलीबारी की और भाग निकले.
इसका साफ मतलब है कि नक्सली हमलावरों को सुरक्षाबलों के हिफाजती इंतजाम की पहले से जानकारी होती है और वे इसमें किन्हीं कमजोरियों का फायदा उठाने से नहीं चूकते. याद रहे कि सुरक्षाबलों के हिफाजती इंतजाम में सेंधमारी करने की नक्सली हमलावरों की ताकत कभी भी बड़ी दुर्घटना का सबब बन सकती है.
मिसाल के लिए, इस बार जहां हमले की घटना पेश आयी है, वहां आंबेडकर जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री का दौरा नियत है और खबरों में कहा गया है कि प्रधानमंत्री के दौरे के खिलाफ हमलावरों ने इलाके में पर्चा बांटा था.
सो, बीजापुर का नक्सली हमला निगरानी और सतर्कता के मोर्चे पर नये सिरे से सोच-विचार की मांग करता है. समस्या के समाधान के लिए यह तर्क नाकाफी है कि पहले की तुलना में नक्सलियों के हमलों की तादाद में कमी आयी है.
हाल में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने एक सम्मेलन(राइजिंग इंडिया) में कहा था कि 1980 के दशक के आखिर के सालों में माओवादी हमले की तकरीबन 3,000 घटनाएं हुई थीं, जो अब घटकर हजार हो गयी हैं. बेशक ये आंकड़े नक्सली हिंसा में कमी का संकेत करते हैं, लेकिन तादाद अब भी बहुत ज्यादा है.
छत्तीसगढ़ की स्थिति इस लिहाज से विशेष इंतजाम की मांग करती है कि वहां मार्च के पहले पखवाड़े में नक्सली हमलावरों ने बीजापुर की ही तरह एक पुलिस-वाहन को विस्फोट के जरिये उड़ा दिया था और इस हमले में नौ जवान शहीद हो गये थे.
सरकार बेशक मानती है कि नक्सली हिंसा से प्रभावित इलाकों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है और ठीक इसी कारण इलाके के ग्रामीणों तथा आदिवासियों में विरोध के भाव भड़काने में नक्सलवादियों को मदद मिलती है, लेकिन बुनियादी अभावों को दूर करने की कोशिशों में तेजी लाना भी जरूरी है.
नक्सल-प्रभावित इलाके में वंचित तबके के सशक्तीकरण की खास कोशिशों के अंतर्गत वनाधिकार कानून पर कारगर तरीके से अमल और विस्थापन की शिकार जनजातियों के पुनर्वास की बेहतर व्यवस्था करना समाधान की दिशा में एक जरूरी कदम साबित हो सकता है.

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