बीमार होते बैंक

फंसे हुए कर्जों की समस्या से बैंक लंबे समय से जूझ रहे हैं, पर डूबी पूंजी की वसूली का कोई उपाय खास कारगर नहीं हो पाया है. समस्या कितनी विकराल हो चुकी है, इसका अंदाजा रिजर्व बैंक के हाल के रुख से लगाया जा सकता है. देश के केंद्रीय बैंक ने इस हफ्ते सख्त रवैया […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 15, 2018 6:50 AM

फंसे हुए कर्जों की समस्या से बैंक लंबे समय से जूझ रहे हैं, पर डूबी पूंजी की वसूली का कोई उपाय खास कारगर नहीं हो पाया है. समस्या कितनी विकराल हो चुकी है, इसका अंदाजा रिजर्व बैंक के हाल के रुख से लगाया जा सकता है. देश के केंद्रीय बैंक ने इस हफ्ते सख्त रवैया अपनाते हुए फंसे कर्ज के निपटारे की मौजूदा प्रणाली में बड़े संशोधन किये हैं.

संशोधित नियमों के मुताबिक, बैंकों को दबाव वाली परिसंपत्तियों की जल्द पहचान करनी होगी और इनके निपटारे की समयबद्ध योजना तैयार करनी पड़ेगी. अगर तय समय के भीतर बैंक परिसंपत्तियों की वसूली में विफल रहते हैं, तो रिजर्व बैंक उन पर जुर्माना लगायेगा. लेकिन, असल सवाल संशोधित नियमों के समुचित अनुपालन की है. नियम बदलने से ऐसी कोई गारंटी नहीं मिल जाती है कि बैंक कर्ज वसूली में कामयाब होंगे. जुर्माने के प्रावधान से यह उम्मीद जरूर की जा सकती है कि बैंक बड़े कर्जे देने में ज्यादा सतर्कता बरतेंगे.

लेकिन, बड़ी जरूरत डूबे कर्ज की वसूली की है. बैड लोन की वृद्धि का नया चक्र संकेत करता है कि 5,000 करोड़ या उससे ज्यादा के उद्यम यानी बड़े काॅरपोरेट भी कर्ज तुरंत लौटा पाने में असमर्थ हैं. हालत यह है कि कुछ कर्जदार काॅरपोरेट के पास मौजूद कुल संपदा का बाजार मूल्य आज उतना भी नहीं है, जितना कि उनकी देनदारी है. बैंकों को उबारने के लिए सरकार की मदद का भरोसा वित्त व्यवस्था के लिए घातक है.

बीते अक्तूबर में सरकार ने घोषणा की थी कि वह अगले दो सालों में सरकारी बैंकों में विभिन्न उपायों से 2.11 लाख करोड़ रुपये का निवेश करेगी, ताकि वे घटते मुनाफे की चिंता से निकल कर नये कर्ज देने का साहस जुटा पायें. साल 2015 में भी सरकारी बैकों में निवेश की ऐसी घोषणा हुई थी. लेकिन, बैड लोन घटा पाने में यह कदम कारगर नहीं हुआ, समस्या बस आगे के लिए टल गयी. साल 2008 से 2014 के बीच बैंकों ने खूब कर्ज बांटा. इस दौरान सरकारी बैंकों का कर्ज बढ़कर 34 लाख करोड़ रुपये हो गया और अब इसका एक बड़ा हिस्सा बैड लोन बन गया है. साल 2014 के बाद भी इस चलन पर अंकुश नहीं लग सका.

सरकारी क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने 2016-17 में 20,339 करोड़ रुपये के फंसे कर्ज को बट्टे खाते में डाल दिया. सरकारी बैंकों के लिहाज से बट्टे खाते में डाली जानेवाली यह सबसे बड़ी राशि है. बीते वित्त वर्ष (2016-17) में बैंकों के बट्टे खाते में 81,683 करोड़ रुपये की राशि डाली गयी थी. साल 2012-13 से तुलना करें, तो पांच सालों में सरकारी बैंकों में बट्टा खाते में डाली गयी रकम तीन गुना बढ़ी है.

बैड लोन का बढ़ता हुआ आकार बैकिंग व्यवस्था में सुधार के बड़े नीतिगत उपाय की मांग करता है, छिटपुट उपायों के दिन अब बीत चुके हैं. यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि बैंकों की बेहतर सेहत के बगैर न तो टिकाऊ अर्थव्यवस्था मुमकिन है और न ही आर्थिक विकास की गति को सुनिश्चित किया जा सकता है.

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