सदन में हो सार्थक बहस
अलग-अलग दलों के सांसदों के बीच मनमुटाव होना या विचारधारा को लेकर रिश्ते में तल्खी होना लोकतंत्र के लिए आम बात है. मगर जब सदन में सार्थक बहसों के स्थान पर केवल तू-तू मैं-मैं होने लगे, तो इससे देशवासियों का नुकसान होता है. प्रधानमंत्री को कल सदन में सुना. ऐसा लगा मानो वे सिर्फ और […]
अलग-अलग दलों के सांसदों के बीच मनमुटाव होना या विचारधारा को लेकर रिश्ते में तल्खी होना लोकतंत्र के लिए आम बात है. मगर जब सदन में सार्थक बहसों के स्थान पर केवल तू-तू मैं-मैं होने लगे, तो इससे देशवासियों का नुकसान होता है. प्रधानमंत्री को कल सदन में सुना.
ऐसा लगा मानो वे सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की कमियां गिनवाने के लिए खड़े हुए हैं. अरे कांग्रेस में कमी थी, तभी तो उसे लोगों ने 44 पर लाकर गिरा दिया. विपक्ष भी केवल विरोध करने के लिए सदन में पहुंचे थे.
वे चाहते तो सरकार को बजट में किये गये प्रावधानों पर घेर सकते थे, जैसे किसानों की आय 2022 में कैसे दोगुना हो जायेगा? उन्हें कैसे लागत पर 50 फीसदी लाभ दिया जायेगा? 50 करोड़ लोगों के चिकित्सा बीमा के लिए पैसा कहां से आयेगा? पहले किये गये वादों का क्या हुआ आदि-आदि. जब ये लोग विपक्ष में थे तो आधार, एफडीआइ व निजीकरण का विरोध करते थे और अब उनके बिना एक पल नहीं रह पा रहें हैं.
जंग बहादुर सिंह, इमेल से