वर्चुअल होता कालाधन

जिस तरह पानी अपना तल खोज लेता है, वैसी ही तासीर कालाधन की भी है. इस पर रोक लगाने की तमाम कोशिशों के बावजूद बेईमानी की कमाई अपने छुपने-खपने के ठिकाने खोज ही लेती है. उसका नया ठिकाना बिटक्वाॅइन यानी वर्चुअल करेंसी हो सकती है. देश में नौ बड़े बिटक्वाॅइन एक्सचेंज सेंटरों की जांच से […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 15, 2017 6:58 AM
जिस तरह पानी अपना तल खोज लेता है, वैसी ही तासीर कालाधन की भी है. इस पर रोक लगाने की तमाम कोशिशों के बावजूद बेईमानी की कमाई अपने छुपने-खपने के ठिकाने खोज ही लेती है. उसका नया ठिकाना बिटक्वाॅइन यानी वर्चुअल करेंसी हो सकती है. देश में नौ बड़े बिटक्वाॅइन एक्सचेंज सेंटरों की जांच से इस आशंका को बल मिला है. आयकर विभाग को शक है कि बिटक्वाॅइन के लेन-देन के जरिये कालाधन छुपाया जा रहा है. रिपोर्टों के मुताबिक, जांच में विभाग को बड़ी आमदनी वाले लाखों गुप्त खातों का पता चला है.
आगे की जांच में और भी खाताधारकों के नाम सामने आ सकते हैं. आयकर विभाग के लिए बिटक्वाॅइन लेन-देन से निबटना तो एक बड़ी चुनौती है ही, कालाधन पर लगाम लगाने की कोशिशों पर भी नये सिरे से विचार की जरूरत है. इसका कारण है बिटक्वाॅइन नाम की आभासी मुद्रा की प्रकृति. अमूमन हमलोग धन-संपदा को सोना-चांदी, जमीन-जायदाद या फिर नकदी के रूप में सोचने-देखने के आदी हैं. देश में ऐसी मुद्रा के संचय, संचालन और निगरानी से संबंधित विशाल ढांचा मौजूद है, लेकिन सूचना-प्रौद्योगिकी के विस्तार के साथ डिजिटल होते भारत में धन ने भी अपना रूप बदल लिया है. बिटक्वाॅइन एक क्रिप्टोकरेंसी (आभासी मुद्रा) है. इसे कोई बैंक, वित्तीय संस्था या सरकार नहीं जारी करती है.
यह विशुद्ध रूप से इंटरनेट पर जारी की जानेवाली डिजिटल मुद्रा है, जिसे कंप्यूटर फाइल के रूप में डिजिटल वॉलेट में रखा जाता है. इसे हासिल करने के मुख्य तौर पर तीन तरीके हैं. कोई चाहे तो एक्सचेंज सेंटर में असल मुद्रा का भुगतान करके इसे खरीद सकता है या फिर सेवा और वस्तु को बेचकर बिटक्वाॅइन अर्जित कर सकता है.
बिटक्वाॅइन जैसी वर्चुअल मुद्रा जारी करनेवाली कुछ ऑनलाइन कंपनियां है, जिनसे वर्चुअल मुद्रा खरीदी जा सकती है. संचय और संचालन के लिहाज से पूरी तरह इंटरनेट पर आधारित होने के कारण बिटक्वाॅइन का पूरा बाजार निजी निवेशकों के नियंत्रण में है. इस पर किसी सरकार या मान्य अंतरराष्ट्रीय संस्था का कोई नियम नहीं चलता है. अलग-अलग रिपोर्टों में कहा गया है कि वर्चुअल मुद्रा का बाजार तेजी से बढ़ रहा है.
बिटक्वाॅइन का मोल पिछले एक साल के भीतर 1200 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुका है. इस बढ़त की वजह जानना बहुत मुश्किल नहीं है. मशहूर अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जोसेफ स्टिग्लिट्ज का कहना है कि बिटक्वाॅइन जैसी वैकल्पिक मुद्रा खरीदने के पीछे असली कारण यह है कि लोग इसके जरिये मनी लॉउंड्रिंग और टैक्स बचाने जैसे काम करना चाहते हैं.
संतोष की बात है कि भारत सरकार ने कालाधन छुपाने के इस नये अड्डे की जांच का काम शुरू कर दिया है तथा उम्मीद है कि बिटक्वाॅइन पर निगरानी लगातार जारी रहेगी. लोगों को भी बिना किसी वैधता के प्रचलन में आयी आभासी मुद्रा के फेर में पड़ने से बचना चाहिए.

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