ठंड के मौसम में स्वाद के चटखारे

जाड़े के मौसम में भूख खुल जाती है और गरिष्ठ भोजन को पचाना आसान होता है. इसी कारण देश के सभी हिस्सों में इस मौसम में तले पकवान, मेवे-मिठाई आदि खाने का चलन है. यह दीपावली से ही शुरू हो जाता है और होली तक चलता है, जब तक गर्मी दस्तक न देने लगे. आज […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 3, 2017 8:53 AM

जाड़े के मौसम में भूख खुल जाती है और गरिष्ठ भोजन को पचाना आसान होता है. इसी कारण देश के सभी हिस्सों में इस मौसम में तले पकवान, मेवे-मिठाई आदि खाने का चलन है. यह दीपावली से ही शुरू हो जाता है और होली तक चलता है, जब तक गर्मी दस्तक न देने लगे. आज जाड़े के कुछ कुछ रोचक जायकों के बारे में हम आपको बता रहे हैं…

ग इस गलतफहमी के शिकार हैं कि देश के पूरबी भाग- बिहार और झारखंड में, जहां शहरी कम, देहाती संस्कार अधिक झलकता है- खाना बहुत सादा होता है. वहां मौसम के बदलाव का कोई असर नहीं होता और वहां की थाली में मौसम के हिसाब से खाना नहीं दिखता. लेकिन, यह सोचना बिल्कुल गलत है. मिथिलांचल हो या भोजपुर अथवा मगध वाला इलाका, अंग क्षेत्र हो या आज का झारखंड, सभी जगह कुछ ऐसे व्यंजन हैं, जो न केवल जायका बदलते हैं, वरन रोजमर्रा के खाने को मौसम के अनुकूल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते.

वैसे तो लिट्टी-चोखा सालोंभर खाये जाते हैं, पर अलाव की आंच तापते राख में सिकती लिट्टी का क्या कहना? चोखे का तीखापन ठिठुरने के कष्ट को तत्काल दूर कर देता है. ‘मकुनी’ को ही लीजिये- सत्तू को पराठे की शक्ल में तलकर परोसते ही मकुनी फौरन आम से खास बन जाती है. सत्तू की जगह चने की दाल भरी पूड़ी प्रवासी भारतवंशी गिरमिटियों के साथ जाने कहां-कहां तक पहुंच चुकी है! मॉरीशस से लेकर वैलेंटाइन इंडीज तक इसके दर्शन होते हैं.

कुछ ऐसा ही ‘पीठे’ के साथ भी होता है. कहीं-कहीं सत्तू की खस्ता कचौरी भी मिल जाती है. चावल के आटे की गुझिया के भीतर चने की दाल की पिट्ठी को मिर्च-मसाले से स्वादिष्ट बनाकर भाप से या तलकर चटनी या आलू-टमाटर की तरीवाली सब्जी के साथ खाते- खिलाते हैं. मीठे और नमकीन पीठे पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में भी बनाये जाते हैं, पर बिहारी-झारखंडी पीठे का कोई जवाब नहीं, क्योंकि यहां पीठे अनूठे आकर्षण और बेहद सादगी से बनाये जाते हैं. ताजे गुड़ को भरकर जो पीठा बनाया जाता है, वह नूतन गुड़वाले संदेश और महाराष्ट्र के मोदक की याद दिलाता है.

‘धुस्का’ भी एक शानदार जायका है. इसे डोसे जैसे घोल से गहरा तलकर पकाया जाता है, जिसे चावल के आटे और बेसन को मिलाकर तैयार किया जाता है. इसका आनंद आप रसदार आलू के दम या काले चने की घुघनी के साथ ले सकते हैं.

जाड़े की एक और सौगात है मीठा हरा मटर. ‘बकार’ नामक पकवान मटर के मुलायम दानों को पीसकर और उसमें हींग-जीरे का पुट देकर पकाया जाता है. इसका शोरबा बहुत गाढ़ा होता है और इसे आप अवध के निमोने का पुरखा कह सकते हैं.

‘रिकौंच’ की तरकारी अरबी के पत्तों में चने की दाल को पीसकर भरने के बाद तलकर या किसी बड़े बरतन में भाप से पकायी जाती है. इस कड़ी में मिथिला का ‘सुखुवा’ कैसे भुला सकते हैं भला? जाड़े में दुर्लभ सब्जियों को पहले से सुखाकर रखा जाता है, फिर उनका उपयोग इच्छानुसार भजिया या सब्जी के रूप में किया जाता है.

ठंड का प्रकोप बढ़ने के साथ ही मन कुछ मीठा खाने को मचलने लगता है. इसलिए सर्दियों में शकरकंद से लेकर मखाने-मेवे तक की खीर पकायी जाती है. इस मौसम में तिलकुट, तिल और रामदाने के लड्डू ललचाते हैं तथा छोटी रोट के आकार वाला मीठे-कड़े बिस्कुट का मजा देनेवाला ठेकुआ अभी हाल तक घर-घर में बनाया जाता था.

बिहार-झारखंड में एक और मिठाई लोकप्रिय है और वह है खाजा. यह अपने खास स्वाद को लेकर बेहद प्रसिद्ध है. दिलचस्प बात यह है कि इस क्षेत्र में मालपुआ को तलने के बाद चीनी की चाशनी में डुबोने का रिवाज नहीं. हल्के मीठे मालपुए को रसदार तरकारी के साथ भी लोग बड़े ही चाव से खाते हैं.

पुष्पेश पंत

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