पद्मावती तुम लौट जाओ !

पद्मावती आयी तो थी मनोरंजन के लिए, मगर उसे क्या पता था कि उसके आने से लोगों को ठेस लग जायेगी. ठेस भी क्या बला है, जब चाहो तब ही लगती है. वरना इतिहास के पन्नों में दबी धूल में सनी पद्मावती कहां पड़ी थी किसे पता था. जायसी की रचनाओं से उपजी पद्मावती की […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 21, 2017 6:59 AM
पद्मावती आयी तो थी मनोरंजन के लिए, मगर उसे क्या पता था कि उसके आने से लोगों को ठेस लग जायेगी. ठेस भी क्या बला है, जब चाहो तब ही लगती है. वरना इतिहास के पन्नों में दबी धूल में सनी पद्मावती कहां पड़ी थी किसे पता था. जायसी की रचनाओं से उपजी पद्मावती की जाने कितनी हकीकत और कितना फसाना है.
मगर हमारी भावनाएं ऐसी भड़की कि शिक्षा, रोजगार, भुखमरी सारे मुद्दे छोड़ कानून और संविधान के सामने तलवारें तन गयीं. हमारे बीच आज भी कई पद्मावतियां हैं, जो अपनी अस्मिता के लिए चीख-चिल्ला रही है. तब तो हमें ठेस नहीं लगती. महिलाओं के भोंडे विज्ञापनों पर किसी की उफ तक नहीं निकलती. इस से पहले कि इतिहास से छेड़-छाड़ हो जाये, पद्मावती! तुम लौट जाओ, वरना हमारे समाज की करनी के आगे तुम्हारी घूमर फीकी पड़ जायेगी. तुम्हारी नाक कटे न कटे, हमारी नाक कट जायेगी.
एमके मिश्रा, रातू, रांची

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