राजनीतिक दलों की बढ़ती तकरार

राजनीति में कुर्सी कभी स्थायी नहीं रहती है. इसलिए सभी राजनीतिक दल कुर्सी के मोह में नैतिकता को ताक पर रख देते हैं. वर्तमान में सभी दलों में देशभक्त कहलाने की होड़ मची है. कोई दल नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक के गुण गा रहा है, तो कोई दल इसे देश के लिए घातक बता रहा […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 10, 2017 5:52 AM
राजनीति में कुर्सी कभी स्थायी नहीं रहती है. इसलिए सभी राजनीतिक दल कुर्सी के मोह में नैतिकता को ताक पर रख देते हैं. वर्तमान में सभी दलों में देशभक्त कहलाने की होड़ मची है.
कोई दल नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक के गुण गा रहा है, तो कोई दल इसे देश के लिए घातक बता रहा है. विडंबना यह है कि इन सबके बीच जनता पिस रही है और इसकी इन्हें सुध भी नहीं है.
हमारी सहनशीलता का राजनीतिक दल बेजा फायदा उठाते हैं. अभी नोटबंदी के एक साल पूरे होने पर देश को हुए नफा-नुकसान पर इनमें घमसान हो रहा है. नोटबंदी के समय जो रोते और परेशान चेहरे सरकार को कोसते नजर आते थे, एक वर्ष बाद वही चेहरे इसका कोई दूसरा कारण बतायेंगे. अभी कुर्सी बरकरार रखने के लिए ऐसे ही मुद्दों पर टीवी और सोशल मीडिया में गैरजरूरी बहस हो रही है. सभी राजनीतिक दलों से आग्रह है कि वे बेकार की बहसबाजी छोड़ जनोपयोगी कार्य करें.
राजन राज, रांची

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