दिल्ली में जहरीली धुंध

कहानी है कि चूहे बिल्ली की गले में घंटी बांधने की सोचते हैं, जुगत लगाते हैं कि घंटी बंधे, तो जान बचाने में सहूलियत हो. अधितकम उत्पादन और उपभोग पर चलनेवाली आधुनिक सभ्यता की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. इस सभ्यता का हर हिस्सेदार व्यक्ति, समुदाय और राष्ट्र के रूप में जानता है कि […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 9, 2017 4:47 AM

कहानी है कि चूहे बिल्ली की गले में घंटी बांधने की सोचते हैं, जुगत लगाते हैं कि घंटी बंधे, तो जान बचाने में सहूलियत हो. अधितकम उत्पादन और उपभोग पर चलनेवाली आधुनिक सभ्यता की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

इस सभ्यता का हर हिस्सेदार व्यक्ति, समुदाय और राष्ट्र के रूप में जानता है कि उसके रहन-सहन के तौर-तरीकों के कारण जल-थल-आकाश लगातार धुंधला और गंदला हो रहा है. परिवेश में जहर घुल रहा है जो दिन-रात किसी बिल्ली के मानिंद उसे दबे पांव दबोच रहा है. आधुनिक सभ्यता को भी इस जहरीले परिवेश की बिल्ली के गले में घंटी बांधने की फिक्र है. लेकिन, सबके कदम यह सोच ठिठक जाते हैं कि आखिर बिल्ली गले में घंटी बांधे कौन? दिल्ली इस ठिठक की एक मिसाल है. यहां जहरीले होते प्रकृति-परिवेश की चेतावनी देने वाली घंटी बंधी हुई है. प्रदूषण ट्रैकर की सूचनाओं के हिसाब से दिल्ली की हवा में अतिसूक्ष्म कणों की मात्रा बीते दो दशकों में सर्वाधिक है. ये कण फेफड़ा ही नहीं, खून में मिलकर शरीर के हर अंग को नुकसान पहुंचाते हैं. सांसों में घुलता यह जहर आगे चलकर गंभीर बीमारी का रूप ले सकता है.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने हेल्थ इमर्जेंसी घोषित कर रखी है, स्कूल बंद हो गये हैं और सार्वजनिक हिदायत है कि लोग खुले में घूमना-टहलना, आना-जाना बंद करें. यह खुद पर लाद ली गयी सजा के बराबर है और दिल्ली को ऐसे हालात का सामना बीते कुछ सालों से हर बार करना होता है. पॉल्यूशन ट्रैकर की घंटी तो है, लेकिन प्रदूषण को रोकने या कम करने और नागरिकों को बचा पाना मुमकिन नहीं हो पा रहा है. वजह, देश की राजधानी में तीन (नगर निगम, राज्य और केंद्र) तरह का शासन है और तीनों मिलकर तय नहीं कर पा रहे हैं कि दिल्ली की हवा मे साल-दर-साल घुलते जा रहे जहर की मुख्य वजह क्या है?

क्या यह अंधाधुंध बढ़ते वाहनों की देन है या इसकी वजह हरियाणा-पंजाब के खेतों में जलायी जा रही फसलों की छाड़न है? क्या दिल्ली में बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माण कार्य को इसकी वजह माना जाये या कल-करखानों के धुएं को? बहस इसी पर फंस कर रह जाती है कि इसकी वजहें क्या हैं. यह समस्या का समाधान न करने की एक युक्ति भी हो सकती है या फिर नीतिगत लाचारी भी. कारण जो हो, दिल्ली अगर ‘गैस-चैंबर’ बन कर रह गयी है, तो इससे पहले कि दम घुट जाये, दिल्ली के तीनों शासनों को साथ मिल काम करना होगा. राजधानी दिल्ली आम दिनों में भी दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में गिनी जाती है.

मौजूदा संकट को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता था, यदि वायु प्रदूषण की रोकथाम के उपायों को ईमानदारी से पहले ही अमल में लाया जाता. बाकी देश को भी दिल्ली से सबक लेते हुए समुचित कदम उठाने शुरू कर देने चाहिए. प्रदूषण की घातक समस्या के समाधान के बगैर स्वस्थ एवं समृद्ध शहरों की कल्पना नहीं की जा सकती है.

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