बगल में छोरी

सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार मुंह में राम रखने के लिए बगल में छुरी रखना बहुत पहले से जरूरी होता आया है और उतना ही जरूरी होता आया है बगल में छुरी रखने के लिए मुंह में राम रखना. पता नहीं क्यों, राम और छुरी एक-दूसरे को सहारा देते रहे. या क्या पता, वे देते न […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 2, 2017 6:31 AM
सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
मुंह में राम रखने के लिए बगल में छुरी रखना बहुत पहले से जरूरी होता आया है और उतना ही जरूरी होता आया है बगल में छुरी रखने के लिए मुंह में राम रखना. पता नहीं क्यों, राम और छुरी एक-दूसरे को सहारा देते रहे. या क्या पता, वे देते न रहे हों, फिर भी दूसरे ले लेते रहे हों? पर फिर ऐसे में यह तो पूछना बनता था कि जब हमने दिया नहीं, तो तुमने लिया क्यों. जैसे गोविंदा एक फिल्म में पूछता है कि मैंने अगर गाली दी भी, तो तूने ली क्यों?
बहरहाल, राम और छुरी ने एक-दूसरे को सहारा दिया हो या नहीं, पर उनसे एक-दूसरे को सहारा मिला खूब. इसी का परिणाम है कि आम आदमी किसी धर्मगुरु, नेता या निखालिस गुंडे के मुंह से रामनाम सुनकर न केवल समझ जाता है कि जरूर इसकी बगल में छुरी भी होगी, बल्कि उसके मुंह से रामनाम के उच्चारण की प्रामाणिकता की जांच भी वह उनकी बगल में छुरी देखकर ही करता है. इस तरह राम का नाम लेनेवालों ने राम और छुरी का काफी घनिष्ठ संबंध स्थापित करने में सफलता पायी है.
संयोग से सबसे तेज चाकू होने का गौरव भी राम के नाम पर बने रामपुर में निर्मित रामपुरी चाकू को ही रहा है. एक जमाना था, जब फिल्मों के विलेन एक अदद रामपुरी चाकू के बल पर ही अपना रोबदाब कायम कर लेते थे.
वह चाकू न केवल अदा से बनाया जाता था, बल्कि अदा से ही चलाया भी जाता था. विलेन उसे एक खटके के साथ खोलते और हीरो या पुलिस के खिलाफ हवा में लहरा देते. हीरो और पुलिस का तो कुछ नहीं बिगड़ता था, पर दर्शक दहशत में आ जाता था.
किसी दूसरे भगवान के साथ चाकू-छुरी का ऐसा संबंध नहीं जुड़ा, जैसा भगवान राम के साथ जुड़ गया. और यह कोई एकतरफा संबंध नहीं रहा. यानी केवल ऐसा नहीं रहा कि मुंह से राम कहनेवाला ही बगल में छुरी रखे या बगल में छुरी रखनेवाला ही मुंह से राम कहे, बल्कि ऐसा भी होने लगा कि बगल में छुरी रखनेवाला उसे बगल में रखे ही न रहे, मौका मिलते ही उसे विरोधी के पेट में घुसेड़ भी दे, जिसके परिणामस्वरूप बगल में छुरी न रखनेवाले उस विरोधी के मुंह से बेसाख्ता ‘राम’ या ‘हे राम’ जैसा कुछ निकल पड़े!
लेकिन समय बदला और मुंह में राम रखनेवाला बगल में छुरी के बजाय छोरी रखने लगा.
छुरी रखने का काम उसने अपने चेलों-चपाटों को दे दिया, जिसे दिखाकर वे उसके खिलाफ बोलनेवालों को चुप कराने लगे और जो चुप न हो, उसे बोलने लायक क्या, कुछ भी करने लायक न छोड़ने का काम भी वे उसी छुरी से करने लगे. कुछ मामलों में छुरी के बजाय तमंचा रखने की छूट भी उसने उदारतावश दे दी. खुद बगल में छुरी के बजाय छोरी रखते हुए उसने इस बात का ध्यान जरूर रखा कि वह छोरी भी किसी छुरी से कम न हो, और हो सके तो पूरी छप्पन छुरी ही हो. जरूर वह छप्पन छुरी उसे राम में ध्यान लगाने में मदद करती होगी.

Next Article

Exit mobile version