पद्मावती की ज्वैलरी

आलोक पुराणिक व्यंग्यकार पद्मावती उर्फ दीपिका पादुकोण बड़े से पोस्टर में बहुत से गहने पहने हुए हैं, नीचे एक नामी ज्वैलरी के ब्रांड का नाम दर्ज है. आशय यह है कि पद्मावती इसी ब्रांड के गहने पहनती थीं. इतने गहने कोई पहने तो पक्के तौर पर चेन स्नैचरों को निमंत्रण देने जैसा लगता है. कहीं […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 30, 2017 2:38 AM

आलोक पुराणिक

व्यंग्यकार

पद्मावती उर्फ दीपिका पादुकोण बड़े से पोस्टर में बहुत से गहने पहने हुए हैं, नीचे एक नामी ज्वैलरी के ब्रांड का नाम दर्ज है. आशय यह है कि पद्मावती इसी ब्रांड के गहने पहनती थीं. इतने गहने कोई पहने तो पक्के तौर पर चेन स्नैचरों को निमंत्रण देने जैसा लगता है.

कहीं ऐसा तो नहीं कि अल्लाउद्दीन खिलजी बहुत बड़ा चेन स्नैचर ही था, और पद्मावती के गहनों के चक्कर में ही वह पद्मावती के किले के पास पहुंच गया था.

खैर उस ज्वैलरी के ब्रांड के बिना तो कोई सौंदर्य संभव ही नहीं है. सो पद्मावती भी उसी ब्रांड का इस्तेमाल कर रही थीं, ऐसा माना जा सकता है. अभी इतिहास पर विवाद हो रहा है. इसमें ब्रांड अभी कूदे नहीं हैं. वरना बहस अलग ही तरह की हो जाये. एक ब्रांड कहेगा कि हमारी ज्वैलरी का ही प्रयोग करती थीं पद्मावती. सदी के महानायक इससे असहमत हो सकते हैं, उनका पसंदीदा ज्वैलरी ब्रांड अलग है.इतिहासकारों में बहस छिड़ सकती है कि आखिरकार पद्मावती किस ब्रांड की ज्वैलरी का प्रयोग करती थीं.

पद्मावती किस ब्रांड की ज्वैलरी का प्रयोग करती थीं, इस बात का फैसला इस आधार पर होगा कि बहस को स्पांसर कौन सा ब्रांड कर रहा है. जो ब्रांड स्पांसर करेगा, पद्मावती उसी की ज्वैलरी का प्रयोग करती हुई बतायी जायेंगी.

स्पांसर यानी जो रकम देगा, उसी को क्रेडिट जायेगा. पद्मावती जब थीं, तब ज्वैलरी का क्या किसी भी चीज का ब्रांड नहीं होता था. पर, अब बिना ब्रांड के कुछ नहीं हो सकता. क्रिकेट मैच खेलना है, तो ब्रांड लगता है. मैच से पहले ब्रांड का नाम जाता है.

फील्ड में उस पान मसाले के ब्रांड का नाम बिखरा रहता है. कोई चौका लगता है, तो चौका कम उस पान मसाले का ब्रांड ज्यादा दिखाया जाता है. तात्पर्य है कि इसका उद्देश्य पान मसाला दिखाने का होता है, चौका तो बस दिख जाता है, उस ब्रांड के बहाने से.

तो दिखाना तो ब्रांड को है, उस बहाने थोड़ी सी पद्मावती भी दिख जाती है. ब्रांड को ही दिखाना है.

मैं ऐतिहासिक फिल्मों को देखते हुए डरता हूं. कहीं ये न दिखा दें- फलां राजा ने फलां रानी को अपने उस डियो की खुशबू से इम्प्रेस कर दिया. स्पांसर कह रहा है- मेरे डियो को ही क्रेडिट मिलना चाहिए. प्रोड्यूसर-डायरेक्टर कह रहे हैं- ओरिजनल तथ्य यह है कि उस राजा की वीरता से वह रानी प्रभावित हुई थी. डियोवाला फौरन डपट सकता है- पैसे मुझसे ले रहे हो, या उस राजा की वीरता से ले रहे हो.

तात्पर्य यह है कि जो पैसे देगा, उसी को क्रेडिट देना पड़ेगा. पद्मावती उस ब्रांड के गहने कैसे पहन सकती हैं, जब वह ब्रांड उनके वक्त में था ही नहीं, वह कैसे पहन सकती हैं. तर्क की बात यह है कि वह नहीं पहन सकतीं.पर ना ना ना, पद्मावती के डायरेक्टर मुझसे पूछ सकते हैं- पैसे तुम्हारे तर्क से आ रहे हैं या उस ज्वैलरी के ब्रांड से?

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